बिसमय हरष रहित रघुराऊ: Difference between revisions
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जीव करम बस सुख | जीव करम बस सुख दु:ख भागी। जाइअ अवध देव हित लागी॥2॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
बिसमय हरष रहित रघुराऊ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥ |
- भावार्थ
श्री रघुनाथजी विषाद और हर्ष से रहित हैं। आप तो श्री रामजी के सब प्रभाव को जानती ही हैं। जीव अपने कर्मवश ही सुख-दुःख का भागी होता है। अतएव देवताओं के हित के लिए आप अयोध्या जाइए॥2॥
left|30px|link=सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती|पीछे जाएँ | बिसमय हरष रहित रघुराऊ | right|30px|link=बार बार गहि चरन सँकोची|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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