त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित: Difference between revisions
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दुनिया के सर्वाधिक प्राचीन जैन धर्म और दर्शन को श्रमणों का धर्म कहते हैं। कुलकरों की परम्परा के बाद जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 पुरुष हुए हैं। | |||
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'''बारह चक्रवर्ती''' - भरत, सगर, मघवा, सनतकुमार, शांति, कुन्थु, अरह, सुभौम, पदम, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त। | |||
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'''नौ बलभद्र''' - अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पदम और [[राम]]। | |||
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'''नौ वासुदेव''' - त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण और [[कृष्ण]]। | |||
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'''नौ प्रति वासुदेव''' - [[अश्वग्रीव]], तारक, मेरक, मुध, निशुम्भ, [[बलि]], [[प्रह्लाद]], [[रावण]] और [[जरासंध]]। | |||
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उक्त शलाका पुरुषों के द्वारा भूमि पर [[धर्म]], अर्थ, काम और [[मोक्ष]] के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को माना जाता है। उक्त में से अधिकतर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध है। [[जैन]] [[राम|भगवान राम]] को बलभद्र मानते हैं और [[कृष्ण|भगवान कृष्ण]] की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं। | |||
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Revision as of 10:07, 25 January 2020
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित तथा सीतारावणकथानकम्, इन दोनों ग्रन्थों की रचना हेमचन्द्र ने की थी। इनमें राम की कथा का उल्लेख मिलता है।
63 शलाका पुरुष
दुनिया के सर्वाधिक प्राचीन जैन धर्म और दर्शन को श्रमणों का धर्म कहते हैं। कुलकरों की परम्परा के बाद जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 पुरुष हुए हैं।
चौबीस तीर्थंकर - ॠषभनाथ तीर्थंकर, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुब्रनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ तीर्थंकर , पार्श्वनाथ तीर्थंकर, वर्धमान महावीर
बारह चक्रवर्ती - भरत, सगर, मघवा, सनतकुमार, शांति, कुन्थु, अरह, सुभौम, पदम, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त।
नौ बलभद्र - अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पदम और राम।
नौ वासुदेव - त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण।
नौ प्रति वासुदेव - अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मुध, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और जरासंध।
उक्त शलाका पुरुषों के द्वारा भूमि पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को माना जाता है। उक्त में से अधिकतर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध है। जैन भगवान राम को बलभद्र मानते हैं और भगवान कृष्ण की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं।
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