षोडशोपचार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:36, 26 May 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''षोडशोपचार''' का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

षोडशोपचार का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व माना जाता है। किसी भी देवी-देवता के पूजन में इसे विशेष रूप से महत्त्व प्रदान किया जाता है। षोडशोपचार अर्थात वे सोलह तरीके, जिनसे देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। षोडशोपचार पूजन में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है-

  1. ध्यान-आवाहन - मन्त्रों और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है। आवाहन का अर्थ है पास लाना। ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है। ईष्ट देवता से निवेदन किया जाता है कि वे हमारे सामने हमारे पास आएँ। वह हमारे ईष्ट देवता की मूर्ति में वास करें तथा हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें।
  2. आसन - ईष्ट देवता की आदर के साथ प्रार्थना करें की वे आसन पे विराजमान होवें।
  3. पाद्य - पाद्यं, अर्ध्य दोनों ही सम्मान सूचक हैं। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं।
  4. अर्ध्य - पाद्यं, अर्ध्य दोनों ही सम्मान सूचक हैं। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं।
  5. आचमन - आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि। आचमन का अर्थ है अंजलि में जल लेकर पीना, यह शुद्धि के लिए किया जाता है। आचमन तीन बार किया जाता है। इससे मन की शुद्धि होती है।
  6. स्नान - ईष्ट देवता, ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है। एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है। जल से स्नान के उपरांत भगवान को पंचामृत स्नान कराया जाता है।
  7. वस्त्र - ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहे हैं, यह ईश्वर की सेवा है।
  8. यज्ञोपवीत - यज्ञोपवीत का अर्थ जनेऊ होता है। यह भगवान को समर्पित किया जाता है। यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता। यह सिर्फ़ देवताओं को ही अर्पण किया जाता है।
  9. गंधाक्षत - अक्षत (अखंडित चावल), रोली, हल्दी, चन्दन, अबीर, गुलाल
  10. पुष्प - फूल माला (जिस ईश्वर का पूजन हो रहा है, उसके पसंद के फूल और उसकी माला)।
  11. धूप - धूपबत्ती
  12. दीप - दीपक (घी का)
  13. नैवेद्य - भगवान को मिठाई का भोग लगाया जाता है। इसको ही नैवेद्य कहते हैं।
  14. ताम्बूल, दक्षिणा, जल आरती - तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है। दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ की अर्पित किया जा सकता है। आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
  15. मंत्र पुष्पांजलि - मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
  16. प्रदक्षिणा-नमस्कार, स्तुति - प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमाआरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा घड़ी की सूई के चलने की दिशा में करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।

इस तरह पूजन करने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः