कोथू नृत्य

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कोथू नृत्य केरल के प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इस नृत्य का मंचन 'चकयार' जाति के पेशेवर कलाकारों द्वारा 'कोथामबम मंदिर' में किया जाता है। यह केरल की सबसें पुरानी एवं अजीब नाटकीय कला है। 'कोथू' शब्द का वास्तविक अर्थ कला के मूल रूप में नृत्य संलग्नता के महत्व के तौर पर समझा जा सकता है। कोथू नृत्य के अभिनेता द्वारा किये जाने वाले शारीरिक और चेहरें के हाव-भाव तथा चिन्ह एवं नियोजित इशारे सांस्कृतिक ग्रंथों में दिए गए सिंद्वातों पर ही आधारित हैं। इनकी विवेचना 'भरत नाट्यशास्त्र' में दिए गए विषय में बारीकी से की गई है।

अभिव्यक्ति तथा विषय

अभिनेता महाकाव्यों संस्कृत पाठ के आधार पर आधारित जिन कहानियों का मलयालम में समझकर पाठ करता है एवं थांडव नृत्य लय कला के माध्यम से जिसे इशारों, शारीरिक मुद्राओं और भाव भंगिमाओं से अभिव्यक्त करता है, वह स्पष्ट तौर पर 'नाट्यशास्त्र' से निकाली गई हैं। कोथू में हास्य तत्व का प्रभुत्व है। माइम और भाव के माध्यम से और सामयिक नृत्य के साथ चकयार की कथा मूलत: नाटकीय है। विनोदी, मजाकिया और संकेतों के विषय सामयिक, राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं पर ही केन्द्रित रहे हैं। कथन के भाव के दौरान नर्तकियों के पास यह पूर्ण सुविधा रहती है कि वे पुरूष और स्थानीय हित की बातों की पूरी तरह से आलोचना कर सकती हैं।

रूप सज्जा व उपकरण

वास्तविक प्रदर्शन में नर्तक कोथामबम के मंच पर अपनी विशेष प्रकार की टोपी और अजीबो-गरीब रूप सज्जा के साथ खडा होता है। इसके बाद जिस मंदिर में वह पूजा कर रहा होता है, वहाँ पर इष्टदेव की पूजा करने की प्रार्थना करता है। उसके बाद वह एक संस्कृत के पाठ की कविता के तौर पर व्याख्या करता है और फिर इसे मलयालम में बताता है। प्रार्थना में प्रयुक्त किये जाने वाले उपकरण झांझ और मंजीरे की जोड़ी होती है, जो कि एक बहुत बड़ा ताँबे का ड्रम होता है। नंबियार जाति का एक सदस्य एक निश्चित समय अंतराल पर मंजीरे को लय के साथ बजाता है। झांझ को हमेशा महिलाओं के द्वारा ही बजाया जाता है, जिन्हें 'ननगियार' कहते हैं।

एकल नृत्य

कोथू को एकल नृत्य के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है, जिसे 'प्रबंधा कोथू' के नाम से भी जाना जाता है। कभी-कभी इसे 'ननगियार' महिलाओं के द्वारा भी प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए इसे 'ननगियार कोथू' नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।


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