शैताम नृत्य

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शैताम नृत्य बुंदेलखण्ड में प्रचलित लोक नृत्य है। यह नृत्य भोई जाति के लोगों द्वारा किया जाता है। शैताम नृत्य के समय जो गीत गाये जाते हैं, वे समाज सुधार आदि विविध विषयों को व्यक्त करने वाले होते हैं। मुख्यत: विवाह आदि के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।

बहुचर्चित नृत्य

भोई जाति का शैताम नृत्य बहुचर्चित एवं बहु प्रशंसित होने के कारण सभी जगह प्रसिद्ध है। ये लोग विवाह के शुभ अवसर पर इसका आयोजन अवश्य करते हैं। इस नृत्य का सूत्रधार एक ओझा होता है। नृत्य की तैयारी के लिये यह ढाँक लेकर बीच में खड़ा हो जाता है। ढाँक डमरू के आकार-प्रकार का होता है। यही नृत्य के समय बजाया जाने वाला एक बड़ा बाजा होता है, जो ढोल के बदले में बजाया जाता है।[1]

भोई जाति की स्त्रियाँ ओझा को मण्डलाकार में घेर कर खड़ी हो जाती हैं। स्त्रियों के हाथों में भी एक-एक चटकोरा रहता है। ओझा जैसे ही गीत गाना प्रारम्भ करता है, स्त्रियाँ उसे दुहराते हुये ‘चटकोरा’ बजाती हुई नाचती हैं। उस समय उच्च स्वर से गायन और उल्लास में थिरकता हुआ उनका नर्तन बड़ा मनमोहक होता है। शैताम नृत्य के समय जो गीत गाये जाते हैं, वे समाज सुधार आदि विविध विषयों को व्यक्त करने वाले होते हैं। आदिवासी समाज में 'बाल विवाह' की प्रथा बहुत प्रचलित है।

गीत

निम्न गीत में आदिवासी रमणी ने अपने बाल विवाह की कटु अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है-

'माई रे’, रामा को मैंने कहा बिगारो, बालम मिले नादान।'

उपर्युक्त गीत में आदिवासी रमणी ने हर एक गृहकार्य में अपने नादान पति को पीछे लगे रहने की शिकायत करते हुये कहा है- "पीसन जैहों संग लग जैहें, सखी री बालम मिले नादान" आदि। वह कहती है कि "मेरी समझ में नहीं आता कि मैंने ईश्वर का क्या बिगाड़ा था, जो उसने मुझ जैसी तरुणी को ऐसा नादान पति दिया"?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिवासियों के लोक नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 02 मई, 2014।

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