Difference between revisions of "ध्रुपद"

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आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि ध्रुपद का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। अधिकांश विद्वानों का मत यह है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया ।
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'''ध्रुपद''' [[भारत]] की समृद्ध गायन शैली हैं। ध्रुपद का शब्दश: अर्थ होता हैं ध्रुव+पद अर्थात- जिसके नियम निश्चित हो, अटल हो, जो नियमों में बंधा हुआ हो।
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==ध्रुपद की उत्पत्ति==
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आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि ध्रुपद का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। अधिकांश विद्वानों का मत यह है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया। उन्होंने ध्रुपद का शिक्षण देने हेतु विद्यालय भी खोला।
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[[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागर, [[बैजू बावरा|नायक बैजू]] और [[गोपाल नायक|गोपाल]] आदि प्रख्यात गायक ही गाते थे।
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==ध्रुपद की विशेषता==
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ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और फेफड़े पर बल पड़ता है। इसलिये लोग इसे मर्दाना गीत कहते हैं। [[नाट्यशास्त्र भरतमुनि|नाट्यशास्र]] के अनुसार [[वर्ण]], [[अलंकार]], गान- क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ ध्रुव रूप में परस्पर संबद्ध रहें, उन गीतों को ध्रुवा कहा गया है। जिन पदों में उक्त नियम का निर्वाह हो रहा हो, उन्हें ध्रुवपद अथवा ध्रुपद कहा जाता है।
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शास्रीय संगीत के पद, [[ख़याल]], ध्रुपद आदि का जन्म [[ब्रज|ब्रजभूमि]] में होने के कारण इन सबकी भाषा [[ब्रजभाषा|ब्रज]] है और ध्रुपद का विषय समग्र रूप ब्रज का रास ही है। कालांतर में मुग़लकाल में ख़्याल [[उर्दू]] की शब्दावली का प्रभाव भी ध्रुपद रचनाओं पर पड़ा। [[वृन्दावन]] के [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] निकुंज निवासी स्वामी हरिदास ने इनके वर्गीकरण और शास्त्रीयकरण का सबसे पहले प्रयास किया।  स्वामी हरिदास की रचनाओं में गायन, वादन और नृत्य संबंधी अनेक पारिभाषिक शब्द, वाद्ययंत्रों के बोल एवं नाम तथा नृत्य की तालों व मुद्राओं के स्पष्ट संकेत प्राप्त होते हैं। [[सूरदास]] द्वारा रचित ध्रुवपद अपूर्व नाद-सौंदर्य, गमक एवं विलक्षण शब्द- योजना से ओतप्रोत दिखाई देते हैं।<br />
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[[हिंदुस्तानी संगीत]] में चार भागों में बंटा पुरातन स्वर संगीत, जिसमें सबसे पहले विस्तृत परिचयात्मक [[आलाप]] किया जाता है और फिर उस लय, ताल और धुन की बढ़त से फैलाया जाता है। यह बाद में प्रचलित छोटे ख़याल से संबंधित है, जिसने कुछ हद तक ध्रुपद की लोकप्रियता को कम कर दिया है, शास्त्रीय ध्रुपद की गुरु गंभीर राजसी शैली के लिए अत्यधिक श्वास नियंत्रण की आवश्यकता होती थी। इसका गायन नायकों, ईश्वरों और राजाओं की प्रशंसा में किया जाता था। 
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==समृद्ध गायन शैली==
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भारत की समृद्ध गायन शैली हैं। ध्रुपद में आलापचारी का महत्त्व होता है। सुंदर और संथ आलाप ध्रुपद के प्राण हैं। नोम-तोम की आलापचारी ध्रुपद गायन की विशेषता है। प्राचीनकाल में तू ही अनंत हरी जैसे शब्दों का प्रयोग होता था। बाद में इन्ही शब्दों का स्थान नोम-तोम ने ले लिया। शब्द अधिकांशत: ईश्वर आराधना से युक्त होते हैं। गमक का विशेष स्थान होता हैं इस गायकी में। [[वीर रस|वीर]], [[भक्ति रस|भक्ति]], [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]] आदि [[रस]] भी होते हैं। पूर्व में ध्रुपद की चार बानियाँ मानी जाती थीं अर्थात ध्रुपद गायन की चार शैलियाँ। इन बानियों के नाम थे खनडारी, नोहरी, गौरहारी और डागुर। डागर बंधू के नाम से सभी परिचित हैं। उमाकांत रमाकांत गुंदेचा जी ने ध्रुपद गायकी में एक नई मिसाल कायम की हैं। इन्होंने ध्रुपद गायकी को परिपूर्ण किया है। इनका ध्रुपद गायन अत्यन्त ही मधुर, सुंदर और भावप्रद होता है। इन्होंने [[सूरदास]], [[मीरां]] आदि के पदों का गायन भी ध्रुपद में सम्मिलित किया है।<ref>{{cite web |url=http://surshree.blogspot.in/2008/08/blog-post_26.html |title=  ध्रुपद एक समृद्ध गायन शैली|accessmonthday= 20 जनवरी|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= html|publisher=surshree.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref>
  
[[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु [[हरिदास|स्वामी हरिदास]] डागर, [[बैजू बावरा|नायक बैजू]] और [[गोपाल नायक|गोपाल]] आदि प्रख्यात गायक ही गाते थे । ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और फेफड़े पर बल पड़ता है । इसलिये लोग इसे मर्दाना गीत कहते हैं ।
 
  
[[नाट्यशास्त्र भरतमुनि|नाट्यशास्र]] के अनुसार [[वर्ण]], [[अलंकार]], गान- क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ ध्रुव रूप में परस्पर संबद्ध रहें, उन गीतों को ध्रुवा कहा गया है । जिन पदों में उक्त नियम का निर्वाह हो रहा हो, उन्हें ध्रुवपद अथवा ध्रुपद कहा जाता है ।
 
 
शास्रीय संगीत के पद, [[ख़याल]], ध्रुपद आदि का जन्म [[ब्रज|ब्रजभूमि]] में होने के कारण इन सबकी भाषा ब्रज है और ध्रुपद का विषय समग्र रूप ब्रज का रास ही है । कालांतर में मुग़लकाल में ख़्याल उर्दू की शब्दावली का प्रभाव भी ध्रुपद रचनाओँ पर पड़ा । [[वृन्दावन]] के [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] निकुंज निवासी स्वामी हरिदास ने इनके वर्गीकरण और शास्त्रीयकरण का सबसे पहले प्रयास किया ।
 
 
स्वामी हरिदास की रचनाओं में गायन, वादन और नृत्य संबंधी अनेक पारिभाषिक शब्द, वाद्ययंत्रों के बोल एवं नाम तथा नृत्य की तालों व मुद्राओं के स्पष्ट संकेत प्राप्त होते हैं । [[सूरदास]] द्वारा रचित ध्रुवपद अपूर्व नाद- सौंदर्य, गमक एवं विलक्षण शब्द- योजना से ओतप्रोत दिखाई देते हैं ।
 
 
हिंदुस्तानी संगीत में चार भागों में बंटा पुरातन स्वर संगीत, जिसमें सबसे पहले विस्तृत परिचयात्मक [[आलाप]] किया जाता है और फिर उस लय, ताल और धुन की बढ़त से फैलाया जाता है। यह बाद में प्रचलित छोटे ख़याल से संबंधित है, जिसके कुछ हद तक ध्रुपद की लोकप्रियता को कम कर दिया है, शास्त्रीय ध्रुपद की गुरु गंभीर राजसी शैली के लिए अत्यधिक श्वास नियंत्रण की आवश्यकता होती थी।
 
 
इसका गायन नायकों, ईश्वरों और राजाओं की प्रशंसा में किया जाता था। 
 
  
 
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Revision as of 14:16, 20 January 2016

dhrupad bharat ki samriddh gayan shaili haian. dhrupad ka shabdash: arth hota haian dhruv+pad arthat- jisake niyam nishchit ho, atal ho, jo niyamoan mean bandha hua ho.

dhrupad ki utpatti

aj tak sarv sammati se yah nishchit nahian ho paya hai ki dhrupad ka avishkar kab aur kisane kiya. is sambandh mean vidvanoan ke kee mat haian. adhikaansh vidvanoan ka mat yah hai ki pandrahavian shatabdi mean gvaliyar ke raja manasianh tomar ne isaki rachana ki. itana to nishchit roop se kaha ja sakata hai ki raja manasianh tomar ne dhrupad ke prachar mean bahut hath bantaya. unhoanne dhrupad ka shikshan dene hetu vidyalay bhi khola. akabar ke samay mean tanasen aur unake guru svami haridas dagar, nayak baijoo aur gopal adi prakhyat gayak hi gate the.

dhrupad ki visheshata

dhrupad ganbhir prakriti ka git hai. ise gane mean kanth aur pheph de par bal p data hai. isaliye log ise mardana git kahate haian. natyashasr ke anusar varn, alankar, gan- kriya, yati, vani, lay adi jahaan dhruv roop mean paraspar sanbaddh rahean, un gitoan ko dhruva kaha gaya hai. jin padoan mean ukt niyam ka nirvah ho raha ho, unhean dhruvapad athava dhrupad kaha jata hai. shasriy sangit ke pad, khayal, dhrupad adi ka janm brajabhoomi mean hone ke karan in sabaki bhasha braj hai aur dhrupad ka vishay samagr roop braj ka ras hi hai. kalaantar mean mugalakal mean khyal urdoo ki shabdavali ka prabhav bhi dhrupad rachanaoan par p da. vrindavan ke nidhivan nikuanj nivasi svami haridas ne inake vargikaran aur shastriyakaran ka sabase pahale prayas kiya. svami haridas ki rachanaoan mean gayan, vadan aur nrity sanbandhi anek paribhashik shabd, vadyayantroan ke bol evan nam tatha nrity ki taloan v mudraoan ke spasht sanket prapt hote haian. sooradas dvara rachit dhruvapad apoorv nad-sauandary, gamak evan vilakshan shabd- yojana se otaprot dikhaee dete haian.
hiandustani sangit mean char bhagoan mean banta puratan svar sangit, jisamean sabase pahale vistrit parichayatmak alap kiya jata hai aur phir us lay, tal aur dhun ki badhat se phailaya jata hai. yah bad mean prachalit chhote khayal se sanbandhit hai, jisane kuchh had tak dhrupad ki lokapriyata ko kam kar diya hai, shastriy dhrupad ki guru ganbhir rajasi shaili ke lie atyadhik shvas niyantran ki avashyakata hoti thi. isaka gayan nayakoan, eeshvaroan aur rajaoan ki prashansa mean kiya jata tha.

samriddh gayan shaili

bharat ki samriddh gayan shaili haian. dhrupad mean alapachari ka mahattv hota hai. suandar aur santh alap dhrupad ke pran haian. nom-tom ki alapachari dhrupad gayan ki visheshata hai. prachinakal mean too hi anant hari jaise shabdoan ka prayog hota tha. bad mean inhi shabdoan ka sthan nom-tom ne le liya. shabd adhikaanshat: eeshvar aradhana se yukt hote haian. gamak ka vishesh sthan hota haian is gayaki mean. vir, bhakti, shrriangar adi ras bhi hote haian. poorv mean dhrupad ki char baniyaan mani jati thian arthat dhrupad gayan ki char shailiyaan. in baniyoan ke nam the khanadari, nohari, gaurahari aur dagur. dagar bandhoo ke nam se sabhi parichit haian. umakaant ramakaant guandecha ji ne dhrupad gayaki mean ek nee misal kayam ki haian. inhoanne dhrupad gayaki ko paripoorn kiya hai. inaka dhrupad gayan atyant hi madhur, suandar aur bhavaprad hota hai. inhoanne sooradas, miraan adi ke padoan ka gayan bhi dhrupad mean sammilit kiya hai.[1]



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh


  1. dhrupad ek samriddh gayan shaili (hindi) (html) surshree.blogspot.in. abhigaman tithi: 20 janavari, 2016.