Difference between revisions of "शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की रक्षा"
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{{महाराणा प्रताप विषय सूची}} | {{महाराणा प्रताप विषय सूची}} | ||
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+ | |चित्र=Maharana-Pratap-5.jpg | ||
+ | |चित्र का नाम=महाराणा प्रताप | ||
+ | |पूरा नाम=महाराणा प्रताप | ||
+ | |अन्य नाम= | ||
+ | |जन्म=[[9 मई]], 1540 ई. | ||
+ | |जन्म भूमि=[[कुम्भलगढ़]], [[राजस्थान]] | ||
+ | |मृत्यु तिथि=[[29 जनवरी]], 1597 ई. | ||
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+ | |पिता/माता=[[पिता]]- [[महाराणा उदयसिंह]], [[माता]]- रानी जीवत कँवर | ||
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+ | |राज्य सीमा=[[मेवाड़]] | ||
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+ | |धार्मिक मान्यता=[[हिंदू धर्म]] | ||
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+ | |सुधार-परिवर्तन= | ||
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+ | |पूर्वाधिकारी=[[महाराणा उदयसिंह]] | ||
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+ | |मक़बरा= | ||
+ | |संबंधित लेख=[[राजस्थान का इतिहास]], [[राजपूत साम्राज्य]], [[राजपूत काल]], [[महाराणा उदयसिंह]], [[सिसोदिया राजवंश]], [[उदयपुर]], [[मेवाड़]], [[अकबर]], [[मानसिंह]]। | ||
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[[महाराणा प्रताप]] का सबसे प्रिय घोड़ा [[चेतक]] था। [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दीघाटी के युद्ध]] में घायल होने के बाद वे बिना किसी सहायक के अपने पराक्रमी चेतक पर सवार होकर पहाड़ की ओर चल पड़े। उनके पीछे दो [[मुग़ल]] सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। | [[महाराणा प्रताप]] का सबसे प्रिय घोड़ा [[चेतक]] था। [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दीघाटी के युद्ध]] में घायल होने के बाद वे बिना किसी सहायक के अपने पराक्रमी चेतक पर सवार होकर पहाड़ की ओर चल पड़े। उनके पीछे दो [[मुग़ल]] सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। | ||
==शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की सुरक्षा== | ==शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की सुरक्षा== | ||
चेतक नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी- "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उनका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर [[अकबर]] का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को [[यमलोक]] पहुँचाने के लिए। | चेतक नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी- "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उनका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर [[अकबर]] का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को [[यमलोक]] पहुँचाने के लिए। | ||
− | जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहे थे, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था। प्रताप को विदा करके शक्तिसिंह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर वापस लौट आया। सलीम ([[जहाँगीर]]) को उस पर कुछ सन्देह पैदा हुआ। जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रताप ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुग़ल सैनिकों को मार डाला अपितु मेरा घोड़ा भी छीन लिया। इसलिए मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर आना पड़ा। सलीम ने वचन दिया कि अगर तुम सत्य बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। तब शक्तिसिंह ने कहा, "मेरे भाई के कन्धों पर [[मेवाड़]] राज्य का बोझा है। इस संकट के समय उसकी सहायता किए बिना मैं कैसे रह सकता था।" सलीम ने अपना वचन निभाया, परन्तु शक्तिसिंह को अपनी सेवा से हटा दिया। | + | जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहे थे, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था।[[चित्र:Pratap-Singh-And-Chetak-Attacking-Man-Singh.jpg|thumb|left|250px|[[मान सिंह]] पर हमला करते हुए [[महाराणा प्रताप]] और [[चेतक]]]] प्रताप को विदा करके शक्तिसिंह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर वापस लौट आया। सलीम ([[जहाँगीर]]) को उस पर कुछ सन्देह पैदा हुआ। जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रताप ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुग़ल सैनिकों को मार डाला अपितु मेरा घोड़ा भी छीन लिया। इसलिए मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर आना पड़ा। सलीम ने वचन दिया कि अगर तुम सत्य बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। तब शक्तिसिंह ने कहा, "मेरे भाई के कन्धों पर [[मेवाड़]] राज्य का बोझा है। इस संकट के समय उसकी सहायता किए बिना मैं कैसे रह सकता था।" सलीम ने अपना वचन निभाया, परन्तु शक्तिसिंह को अपनी सेवा से हटा दिया। |
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[[राणा प्रताप]] की सेवा में पहुँचकर उन्हें अच्छी नज़र भेंट की जा सके, इस ध्येय से उसने भिनसोर नामक दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। [[उदयपुर]] पहुँचकर उस दुर्ग को भेंट में देते हुए शक्तिसिंह ने प्रताप का अभिवादन किया। प्रताप ने प्रसन्न होकर वह दुर्ग शक्तिसिंह को पुरस्कार में दे दिया। यह दुर्ग लम्बे समय तक उसके वंशजों के अधिकार में बना रहा।<ref>शक्तिसिंह की [[कथा]] भी अन्य प्रमाणों से सिद्ध नहीं होती। शक्तिसिंह पहले ही [[चित्तौड़]] के आक्रमण के समय काम आ चुका था। सम्भवतः दोनों भाइयों को मिलाने की कथा [[भाट|भाटों]] ने गढ़ ली है।</ref> [[संवत]] 1632 ([[जुलाई]], 1576 ई.) के [[सावन|सावन मास]] की [[सप्तमी]] का दिन [[मेवाड़ का इतिहास|मेवाड़ के इतिहास]] में सदा स्मरणीय रहेगा। उस दिन [[मेवाड़]] के अच्छे रुधिर ने हल्दीघाटी को सींचा था। प्रताप के अत्यन्त निकटवर्ती पाँच सौ कुटुम्बी और सम्बन्धी, [[ग्वालियर]] का भूतपूर्व राजा रामशाह और साढ़े तीन सौ [[तोमर]] वीरों के साथ रामशाह का बेटा खाण्डेराव मारा गया। स्वामिभक्त [[झाला मान|झाला मन्नाजी]] अपने डेढ़ सौ सरदारों सहित मारा गया और मेवाड़ के प्रत्येक घर ने बलिदान किया। | [[राणा प्रताप]] की सेवा में पहुँचकर उन्हें अच्छी नज़र भेंट की जा सके, इस ध्येय से उसने भिनसोर नामक दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। [[उदयपुर]] पहुँचकर उस दुर्ग को भेंट में देते हुए शक्तिसिंह ने प्रताप का अभिवादन किया। प्रताप ने प्रसन्न होकर वह दुर्ग शक्तिसिंह को पुरस्कार में दे दिया। यह दुर्ग लम्बे समय तक उसके वंशजों के अधिकार में बना रहा।<ref>शक्तिसिंह की [[कथा]] भी अन्य प्रमाणों से सिद्ध नहीं होती। शक्तिसिंह पहले ही [[चित्तौड़]] के आक्रमण के समय काम आ चुका था। सम्भवतः दोनों भाइयों को मिलाने की कथा [[भाट|भाटों]] ने गढ़ ली है।</ref> [[संवत]] 1632 ([[जुलाई]], 1576 ई.) के [[सावन|सावन मास]] की [[सप्तमी]] का दिन [[मेवाड़ का इतिहास|मेवाड़ के इतिहास]] में सदा स्मरणीय रहेगा। उस दिन [[मेवाड़]] के अच्छे रुधिर ने हल्दीघाटी को सींचा था। प्रताप के अत्यन्त निकटवर्ती पाँच सौ कुटुम्बी और सम्बन्धी, [[ग्वालियर]] का भूतपूर्व राजा रामशाह और साढ़े तीन सौ [[तोमर]] वीरों के साथ रामशाह का बेटा खाण्डेराव मारा गया। स्वामिभक्त [[झाला मान|झाला मन्नाजी]] अपने डेढ़ सौ सरदारों सहित मारा गया और मेवाड़ के प्रत्येक घर ने बलिदान किया। |
Latest revision as of 13:15, 31 December 2016
shaktisianh dvara rana pratap ki raksha
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poora nam | maharana pratap |
janm | 9 mee, 1540 ee. |
janm bhoomi | kumbhalagadh, rajasthan |
mrityu tithi | 29 janavari, 1597 ee. |
pita/mata | pita- maharana udayasianh, mata- rani jivat kanvar |
rajy sima | meva d |
shasan kal | 1568-1597 ee. |
sha. avadhi | 29 varsh |
dharmik manyata | hiandoo dharm |
yuddh | haldighati ka yuddh |
rajadhani | udayapur |
poorvadhikari | maharana udayasianh |
uttaradhikari | rana amar sianh |
rajagharana | rajapootana |
vansh | sisodiya rajavansh |
sanbandhit lekh | rajasthan ka itihas, rajapoot samrajy, rajapoot kal, maharana udayasianh, sisodiya rajavansh, udayapur, meva d, akabar, manasianh. |
maharana pratap ka sabase priy gho da chetak tha. haldighati ke yuddh mean ghayal hone ke bad ve bina kisi sahayak ke apane parakrami chetak par savar hokar paha d ki or chal p de. unake pichhe do mugal sainik lage hue the, parantu chetak ne pratap ko bacha liya. raste mean ek paha di nala bah raha tha. ghayal chetak phurti se use laangh gaya, parantu mugal use par n kar paye.
shaktisianh dvara rana pratap ki suraksha
chetak nala to laangh gaya, par ab usaki gati dhire-dhire kam hoti gee aur pichhe se mugaloan ke gho doan ki tapean bhi sunaee p dian. usi samay pratap ko apani matribhasha mean avaz sunaee p di- "ho, nila gho da ra asavar." pratap ne pichhe mu dakar dekha to unhean ek hi ashvarohi dikhaee p da aur vah tha, unaka bhaee shaktisianh. pratap ke sath vyaktigat virodh ne use deshadrohi banakar akabar ka sevak bana diya tha aur yuddhasthal par vah mugal paksh ki taraf se l d raha tha. jab usane nile gho de ko bina kisi sevak ke paha d ki taraf jate hue dekha to vah bhi chupachap usake pichhe chal p da, parantu keval donoan mugaloan ko yamalok pahuanchane ke lie.
jivan mean pahali bar donoan bhaee prem ke sath gale mile. is bich chetak zamin par gir p da aur jab pratap usaki kathi ko kholakar apane bhaee dvara prastut gho de par rakh rahe the, chetak ne pran tyag die. bad mean us sthan par ek chabootara kh da kiya gaya, jo aj tak us sthan ko iangit karata hai, jahaan par chetak mara tha.[[chitr:Pratap-Singh-And-Chetak-Attacking-Man-Singh.jpg|thumb|left|250px|man sianh par hamala karate hue maharana pratap aur chetak]] pratap ko vida karake shaktisianh khurasani sainik ke gho de par savar hokar vapas laut aya. salim (jahaangir) ko us par kuchh sandeh paida hua. jab shaktisianh ne kaha ki pratap ne n keval pichha karane vale donoan mugal sainikoan ko mar dala apitu mera gho da bhi chhin liya. isalie mujhe khurasani sainik ke gho de par savar hokar ana p da. salim ne vachan diya ki agar tum saty bat kah doge to maian tumhean kshama kar dooanga. tab shaktisianh ne kaha, "mere bhaee ke kandhoan par meva d rajy ka bojha hai. is sankat ke samay usaki sahayata kie bina maian kaise rah sakata tha." salim ne apana vachan nibhaya, parantu shaktisianh ko apani seva se hata diya.
rana pratap ki seva mean pahuanchakar unhean achchhi nazar bheant ki ja sake, is dhyey se usane bhinasor namak durg par akraman kar use jit liya. udayapur pahuanchakar us durg ko bheant mean dete hue shaktisianh ne pratap ka abhivadan kiya. pratap ne prasann hokar vah durg shaktisianh ko puraskar mean de diya. yah durg lambe samay tak usake vanshajoan ke adhikar mean bana raha.[1] sanvat 1632 (julaee, 1576 ee.) ke savan mas ki saptami ka din meva d ke itihas mean sada smaraniy rahega. us din meva d ke achchhe rudhir ne haldighati ko siancha tha. pratap ke atyant nikatavarti paanch sau kutumbi aur sambandhi, gvaliyar ka bhootapoorv raja ramashah aur sadhe tin sau tomar viroan ke sath ramashah ka beta khanderav mara gaya. svamibhakt jhala mannaji apane dedh sau saradaroan sahit mara gaya aur meva d ke pratyek ghar ne balidan kiya.
left|30px|link=haldighati ka yuddh|pichhe jaean | shaktisianh dvara rana pratap ki raksha | right|30px|link=maharana pratap ki manasianh se bheant|age jaean |
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