Difference between revisions of "अकबर की दक्षिण विजय"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' भारत का महानतम मुग़ल श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
Line 1: Line 1:
'''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। [[अकबर]] को अकबर--आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।
+
'''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। [[अकबर]] को '''अकबर--आज़म''', '''शहंशाह अकबर''' तथा '''महाबली शहंशाह''' के नाम से भी जाना जाता है।
  
 
[[बहमनी राज्य]] के विखण्डन के उपरान्त बने राज्यों [[ख़ानदेश]], [[अहमदनगर]], [[बीजापुर]] एवं [[गोलकुण्डा]] को अकबर ने अपने अधीन करने के लिए 1591 ई. में एक दूतमण्डल को दक्षिण की ओर भेजा। मुग़ल सीमा के सर्वाधिक नज़दीक होने के कारण ‘ख़ानदेश’ ने मुग़ल अधिपत्य को स्वीकार कर लिया। ‘ख़ानदेश’ को [[दक्षिण भारत]] का ‘प्रवेश द्वार’ भी माना जाता है।
 
[[बहमनी राज्य]] के विखण्डन के उपरान्त बने राज्यों [[ख़ानदेश]], [[अहमदनगर]], [[बीजापुर]] एवं [[गोलकुण्डा]] को अकबर ने अपने अधीन करने के लिए 1591 ई. में एक दूतमण्डल को दक्षिण की ओर भेजा। मुग़ल सीमा के सर्वाधिक नज़दीक होने के कारण ‘ख़ानदेश’ ने मुग़ल अधिपत्य को स्वीकार कर लिया। ‘ख़ानदेश’ को [[दक्षिण भारत]] का ‘प्रवेश द्वार’ भी माना जाता है।
  
 
==अहमदनगर विजय==
 
==अहमदनगर विजय==
1593 ई. में अकबर ने अहमदनगर पर आक्रमण हेतु अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना एवं मुराद को दक्षिण भेजा। 1594 ई. में यहाँ के शासक बुरहानुलमुल्क की मृत्यु के कारण अहमदनगर के क़िले का दायित्व [[बीजापुर]] के शासक [[अली आदिलशाह प्रथम]] की विधवा [[चाँदबीबी]] पर आ गया। चाँदबीबी ने इब्राहिम के अल्पायु पुत्र बहादुरशाह को सुल्तान घोषित किया एवं स्वयं उसकी संरक्षिका बन गई। 1595 ई. में मुग़ल आक्रमण का इसने लगभग 4 महीने तक डटकर सामना किया। अन्ततः दोनों पक्षों में 1596 ई. में समझौता हो गया। समझौते के अनुसार [[बरार]] मुग़लों को सौंप दिया गया एवं बुरहानुलमुल्क के पौत्र बहादुरशाह को अहमदनगर के शासक के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई। इसी युद्ध के दौरान मुग़ल सर्वप्रथम [[मराठा|मराठों]] के सम्पर्क में आये। कुछ दिन बाद चाँदबीबी ने अपने को अहमदनगर प्रशासन से अलग कर दिया। वहाँ के सरदारों ने संधि का उल्लंघन करते हुए बरार को पुनः प्राप्त करना चाहा। अकबर ने [[अबुल फ़ज़ल]] के साथ मुराद को अहमदनगर पर आक्रमण के लिए भेजा। 1597 ई. में मुराद की मृत्यु हो जाने के कारण [[अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना|अब्दुर्रहीम ख़ानखाना]] एवं [[शहज़ादा दानियाल]] को आक्रमण के लिए भेजा। अकबर ने भी दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। मुग़ल सेना ने 1599 ई. में [[दौलताबाद]] एवं 1600 ई. में अहमदनगर क़िले पर अधिकार कर लिया। चाँदबीबी ने आत्महत्या कर ली।
+
1593 ई. में अकबर ने अहमदनगर पर आक्रमण हेतु [[अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] एवं मुराद को दक्षिण भेजा। 1594 ई. में यहाँ के शासक बुरहानुलमुल्क की मृत्यु के कारण अहमदनगर के क़िले का दायित्व [[बीजापुर]] के शासक [[अली आदिलशाह प्रथम]] की विधवा [[चाँदबीबी]] पर आ गया। चाँदबीबी ने इब्राहिम के अल्पायु [[पुत्र]] बहादुरशाह को सुल्तान घोषित किया एवं स्वयं उसकी संरक्षिका बन गई। 1595 ई. में मुग़ल आक्रमण का इसने लगभग 4 [[महीना|महीने]] तक डटकर सामना किया। अन्ततः दोनों पक्षों में 1596 ई. में समझौता हो गया। समझौते के अनुसार [[बरार]] मुग़लों को सौंप दिया गया एवं बुरहानुलमुल्क के पौत्र बहादुरशाह को अहमदनगर के शासक के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई। इसी युद्ध के दौरान मुग़ल सर्वप्रथम [[मराठा|मराठों]] के सम्पर्क में आये। कुछ दिन बाद चाँदबीबी ने अपने को अहमदनगर प्रशासन से अलग कर दिया। वहाँ के सरदारों ने संधि का उल्लंघन करते हुए बरार को पुनः प्राप्त करना चाहा। अकबर ने [[अबुल फ़ज़ल]] के साथ मुराद को अहमदनगर पर आक्रमण के लिए भेजा। 1597 ई. में मुराद की मृत्यु हो जाने के कारण [[अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना|अब्दुर्रहीम ख़ानखाना]] एवं [[शहज़ादा दानियाल]] को आक्रमण के लिए भेजा। अकबर ने भी दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। मुग़ल सेना ने 1599 ई. में [[दौलताबाद]] एवं 1600 ई. में अहमदनगर क़िले पर अधिकार कर लिया। चाँदबीबी ने आत्महत्या कर ली।
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=सभी धर्मों के सार संग्रह के रूप में अकबर ने 1582 ई. में [[दीन-ए-इलाही]] (तौहीद-ए-इलाही) या दैवी एकेश्वरवाद नामक धर्म का प्रवर्तन किया तथा उसे राजकीय धर्म घोषित कर दिया। इस धर्म का प्रधान [[पुरोहित]] [[अबुल फ़ज़ल]] था।|विचारक=}}
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=सभी धर्मों के सार संग्रह के रूप में अकबर ने 1582 ई. में [[दीन-ए-इलाही]] (तौहीद-ए-इलाही) या दैवी एकेश्वरवाद नामक धर्म का प्रवर्तन किया तथा उसे राजकीय धर्म घोषित कर दिया। इस धर्म का प्रधान [[पुरोहित]] [[अबुल फ़ज़ल]] था।|विचारक=}}
 
==असीरगढ़ विजय==
 
==असीरगढ़ विजय==
ख़ानदेश की राजधानी [[बुरहानपुर]] पर स्वयं अकबर ने 1599 ई. में आक्रमण किया। इस समय वहाँ का शासक मीरन बहादुर था। उसने अपने को [[असीरगढ़]] के क़िले में सुरक्षित कर लिया। अकबर ने असीरगढ़ के क़िले का घेराव कर उसके दरवाज़े को ‘सोने की चाभी’ से खोला अर्थात अकबर ने दिल खोलकर ख़ानदेश के अधिकारियों को रुपये बांटे और उन्हें कपटपूर्वक अपनी ओर मिला लिया। [[21 दिसम्बर]], 1600 ई. को मीरन बहादुर ने अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, परन्तु अकबर ने अन्तिम रूप से इस [[दुर्ग]] को अपने क़ब्ज़े में 6 जनवरी 1601 ई. को किया। असीरगढ़ की विजय अकबर की अन्तिम विजय थी। मीरन बहादुर को बन्दी बना कर [[ग्वालियर]] के क़िले में क़ैद कर लिया गया। 4000 अशर्फ़ियाँ उसके वार्षिक निर्वाह के लिए निश्चित की गयीं। इन विजयों के पश्चात् अकबर ने दक्षिण के सम्राट की उपाधि धारण की।
+
ख़ानदेश की राजधानी [[बुरहानपुर]] पर स्वयं अकबर ने 1599 ई. में आक्रमण किया। इस समय वहाँ का शासक मीरन बहादुर था। उसने अपने को [[असीरगढ़]] के क़िले में सुरक्षित कर लिया। अकबर ने असीरगढ़ के क़िले का घेराव कर उसके दरवाज़े को ‘सोने की चाभी’ से खोला अर्थात अकबर ने दिल खोलकर ख़ानदेश के अधिकारियों को रुपये बांटे और उन्हें कपटपूर्वक अपनी ओर मिला लिया। [[21 दिसम्बर]], 1600 ई. को मीरन बहादुर ने अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, परन्तु अकबर ने अन्तिम रूप से इस [[दुर्ग]] को अपने क़ब्ज़े में 6 जनवरी 1601 ई. को किया। असीरगढ़ की विजय अकबर की अन्तिम विजय थी। मीरन बहादुर को बन्दी बना कर [[ग्वालियर]] के क़िले में क़ैद कर लिया गया। 4000 अशर्फ़ियाँ उसके वार्षिक निर्वाह के लिए निश्चित की गयीं। इन विजयों के पश्चात अकबर ने दक्षिण के सम्राट की उपाधि धारण की।
  
 
अकबर ने [[बरार]], [[अहमदनगर]] एवं [[ख़ानदेश]] की सूबेदारी शाहज़ादा दानियाल को प्रदान कर दी। [[बीजापुर]] एवं [[गोलकुण्डा]] पर अकबर अधिकार नहीं कर सका। इस तरह अकबर का साम्राज्य [[कंधार]] एवं [[काबुल]] से लेकर [[बंगाल]] तक और [[कश्मीर]] से लेकर [[बरार]] तक फैला था।
 
अकबर ने [[बरार]], [[अहमदनगर]] एवं [[ख़ानदेश]] की सूबेदारी शाहज़ादा दानियाल को प्रदान कर दी। [[बीजापुर]] एवं [[गोलकुण्डा]] पर अकबर अधिकार नहीं कर सका। इस तरह अकबर का साम्राज्य [[कंधार]] एवं [[काबुल]] से लेकर [[बंगाल]] तक और [[कश्मीर]] से लेकर [[बरार]] तक फैला था।

Revision as of 12:16, 28 June 2016

jalaluddin muhammad akabar bharat ka mahanatam mugal shanhashah badashah tha. jisane mugal shakti ka bharatiy upamahadvip ke adhikaansh hissoan mean vistar kiya. akabar ko akabar-e-azam, shahanshah akabar tatha mahabali shahanshah ke nam se bhi jana jata hai.

bahamani rajy ke vikhandan ke uparant bane rajyoan khanadesh, ahamadanagar, bijapur evan golakunda ko akabar ne apane adhin karane ke lie 1591 ee. mean ek dootamandal ko dakshin ki or bheja. mugal sima ke sarvadhik nazadik hone ke karan ‘khanadesh’ ne mugal adhipaty ko svikar kar liya. ‘khanadesh’ ko dakshin bharat ka ‘pravesh dvar’ bhi mana jata hai.

ahamadanagar vijay

1593 ee. mean akabar ne ahamadanagar par akraman hetu abdurrahim khanakhana evan murad ko dakshin bheja. 1594 ee. mean yahaan ke shasak burahanulamulk ki mrityu ke karan ahamadanagar ke qile ka dayitv bijapur ke shasak ali adilashah pratham ki vidhava chaandabibi par a gaya. chaandabibi ne ibrahim ke alpayu putr bahadurashah ko sultan ghoshit kiya evan svayan usaki sanrakshika ban gee. 1595 ee. mean mugal akraman ka isane lagabhag 4 mahine tak datakar samana kiya. antatah donoan pakshoan mean 1596 ee. mean samajhauta ho gaya. samajhaute ke anusar barar mugaloan ko sauanp diya gaya evan burahanulamulk ke pautr bahadurashah ko ahamadanagar ke shasak ke roop mean manyata pradan kar di gee. isi yuddh ke dauran mugal sarvapratham marathoan ke sampark mean aye. kuchh din bad chaandabibi ne apane ko ahamadanagar prashasan se alag kar diya. vahaan ke saradaroan ne sandhi ka ullanghan karate hue barar ko punah prapt karana chaha. akabar ne abul fazal ke sath murad ko ahamadanagar par akraman ke lie bheja. 1597 ee. mean murad ki mrityu ho jane ke karan abdurrahim khanakhana evan shahazada daniyal ko akraman ke lie bheja. akabar ne bhi dakshin ki or prasthan kiya. mugal sena ne 1599 ee. mean daulatabad evan 1600 ee. mean ahamadanagar qile par adhikar kar liya. chaandabibi ne atmahatya kar li.

chitr:Blockquote-open.gif sabhi dharmoan ke sar sangrah ke roop mean akabar ne 1582 ee. mean din-e-ilahi (tauhid-e-ilahi) ya daivi ekeshvaravad namak dharm ka pravartan kiya tatha use rajakiy dharm ghoshit kar diya. is dharm ka pradhan purohit abul fazal tha. chitr:Blockquote-close.gif

asiragadh vijay

khanadesh ki rajadhani burahanapur par svayan akabar ne 1599 ee. mean akraman kiya. is samay vahaan ka shasak miran bahadur tha. usane apane ko asiragadh ke qile mean surakshit kar liya. akabar ne asiragadh ke qile ka gherav kar usake daravaze ko ‘sone ki chabhi’ se khola arthat akabar ne dil kholakar khanadesh ke adhikariyoan ko rupaye baante aur unhean kapatapoorvak apani or mila liya. 21 disambar, 1600 ee. ko miran bahadur ne akabar ke samaksh atmasamarpan kar diya, parantu akabar ne antim roop se is durg ko apane qabze mean 6 janavari 1601 ee. ko kiya. asiragadh ki vijay akabar ki antim vijay thi. miran bahadur ko bandi bana kar gvaliyar ke qile mean qaid kar liya gaya. 4000 asharfiyaan usake varshik nirvah ke lie nishchit ki gayian. in vijayoan ke pashchat akabar ne dakshin ke samrat ki upadhi dharan ki.

akabar ne barar, ahamadanagar evan khanadesh ki soobedari shahazada daniyal ko pradan kar di. bijapur evan golakunda par akabar adhikar nahian kar saka. is tarah akabar ka samrajy kandhar evan kabul se lekar bangal tak aur kashmir se lekar barar tak phaila tha.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh