वह सोभा समाज सुख

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वह सोभा समाज सुख
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
दोहा

वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस।
बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस॥12 क॥

भावार्थ

हे पक्षीराज गरुड़ जी ! वह शोभा, वह समाज और वह सुख मुझसे कहते नहीं बनता। सरस्वती जी, शेषजी और वेद निरंतर उसका वर्णन करते हैं, और उसका रस (आनंद) महादेव जी ही जानते हैं॥12 (क)॥


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दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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