लौहजंघवन: Difference between revisions

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Latest revision as of 09:10, 23 July 2016

लौहजंघवन
विवरण 'लौहजंगवन' ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध द्वादश वनों में से एक है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की गौचारण स्थली के रूप में प्रसिद्ध है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
मार्ग स्थिति मथुरा-गोकुल मार्ग पर 2 कि.मी. उत्तर-पूर्व में स्थित।
प्रसिद्धि श्रीकृष्ण लीला स्थली
संबंधित लेख ब्रज, मथुरा, नंदगाँव, वृन्दावन, कृष्ण, राधा, अष्टसखी


अन्य जानकारी श्रीकृष्ण ने यहीं पर गोचारण करते समय लोहजंघासुर का वध किया था। यहाँ 'कृष्णकुण्ड', 'लोहजंघासुर की गुफ़ा' तथा 'श्रीगोपीनाथ जी' का दर्शन है।
बाहरी कड़ियाँ 2:32 23 जुलाई, 2016 (IST)

लौहवन अथवा लौहजंघवन ब्रज के द्वादश वनों में से एक है। यह स्थान मथुरा से यमुना पार होकर मथुरा-गोकुल मार्ग पर 2 कि.मी. उत्तर-पूर्व में स्थित है। नाना प्रकार के वृक्षों और पुष्पों से सुशोभित यह वन कृष्ण की गोचारण स्थली है। श्रीकृष्ण ने यहीं पर गोचारण करते समय लोहजंघासुर का वध किया था। इसलिए इस वन का नाम लौहजंघवन या लोहवन है।

लोहवन कृष्णेर अद्भुत-गोचारण ।।
नानापुष्प सुगन्धे व्यापित रम्यस्थान ।
एथा लोहजंघासुरे बधे भगवान्
लोहजंघवन नाम हयत इहार ।[1]

श्रीकृष्ण का नौकाविहार

यहाँ पास ही यमुना के घाट पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ नौकाविहार किया था। 'भक्तिरत्नाकर' ग्रन्थ में इसका सुन्दर एवं सरस वर्णन है-

यमुना-निकटे याइ श्रीनिवासे कय ।
एई घाटे कृष्ण नौका-क्रीड़ा आरम्भय ।।
से अति कौतुक राई सखीर सहिते ।
दुग्धादि लईया आईसेन पार हैते ।।
देखि, से अपूर्व शोभा कृष्ण मुग्ध हईया ।
एक भिते रहिलेन जीर्ण नौका लईया ।।
श्रीराधिका सखीसह कहे बारे-बारे ।
'पार कर नाविक-याईब शीघ्र पारे ।।

लोहवन नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित एक रमणीय स्थान है। पास में ही पुण्यतोया यमुना जी प्रवाहित होती हैं, जिसमें कृष्ण गोपियों के साथ नौकाविहार की लीला करते हैं। वे नाविक बनकर गोप-रमणियों को अपनी नौका में बिठाकर बीच प्रवाह में कहते मेरी नौका पुरानी और जीर्ण-शीर्ण है, इसमें पानी भर रहा है। तुम लोग अपने दूध, दही के बर्तनों को यमुना में फेंक दो अन्यथा मेरी नौका डूब जाएगी। गोपियाँ इस नाविक को जल्दी से पार करने के लिए पुन:-पुन: प्रार्थना करतीं। इस लीला को अपने हृदय में संजोए हुए यह लीलास्थली आज भी विराजमान है। यहाँ कृष्णकुण्ड, लोहासुर की गुफ़ा तथा श्रीगोपीनाथ जी का दर्शन है।

आयोरे ग्राम

लोहवन के पास ही आयोरे ग्राम है। इसका वर्तमान नाम अलीपुर है। जिस समय कृष्ण ने दन्तवक्र का वधकर यमुना पार कर गोकुल में पिता-माता सखा एवं गोप-गोपियों से मिलने के लिए जा रहे थे, उस समय ब्रजवासी लोग बड़े प्रेम से 'आयोरे-आयोरे कन्हैया' सम्बोधन कर यहीं पर उनसे मिले थे। 'भक्तिरत्नाकर' में इस स्थान के सम्बन्ध में लिखा है-

कृष्ण देखि धाय गोप आनन्दे विह्वल ।
'आयोरे आयोरे' बलि करे कोलाहल ।।
मिलिया सबारे कृष्ण, कृष्ण सबे लइया ।
निजालये आइला यमुनापार हईया ।।
हइला परमानन्द ब्रजे घरे-घरे ।
पूर्वमत सबा-सह श्रीकृष्ण विहरे ।।
'आयोरे' बलिया गोप येखाने मिलित ।
आयोरे नामेते ग्राम तथाय हईल ।।

गोराई या गौरवाईगाँव

आयोरे ग्राम के निकट ही गोराई ग्राम अवस्थित है। नन्द तथा गोपियाँ आदि कुरुक्षेत्र से लौटकर कुछ दिनों के लिए यहाँ रुके थे।


संबंधित लेख


  1. भक्तिरत्नाकर