श्लोक: Difference between revisions

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संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है। [[छंद]] के रूप में होने के कारण ये आसानी से याद हो जाते हैं। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करके रखने की प्रथा न होने के कारण ही इस प्रकार का प्रावधान किया गया था।
[[चित्र:Valmiki-shlok.jpg|thumb|[[वाल्मीकि]] और बहेलिया|250px]]
संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है। [[छंद]] के रूप में होने के कारण ये आसानी से याद हो जाते हैं। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करके रखने की प्रथा न होने के कारण ही इस प्रकार का प्रावधान किया गया था।


==दस्युकर्म के मध्य कथा==
==वाल्मीकि की कथा==
[[वाल्मीकि]] दस्युकर्म के मध्य एक बार उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी| उसके इस विलाप को सुन कर रत्नाकर की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
[[वाल्मीकि]] दस्युकर्म के मध्य एक बार उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर रत्नाकर की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।


मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।'
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।'


(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी|)
(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी।)


इस घटना के पश्चात दस्युकर्म से उन्हें विरक्ति हो गई ज्ञान की प्राप्ति में अनुरक्त हो गये| ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य [[रामायण]] (जिसे कि "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये|
इस घटना के पश्चात् दस्युकर्म से उन्हें विरक्ति हो गई ज्ञान की प्राप्ति में अनुरक्त हो गये। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य [[रामायण]] (जिसे कि "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये।


==अन्य श्लोक==
==अन्य श्लोक==


<poem>
<poem>
करपूर गौरम करूणावतारम
'''परं ब्रह्रा परं धाम पवित्रं परमं  भवान् ।'''
संसार सारम भुजगेन्द्र हारम|
'''पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ।।'''
सदा वसंतम हृदयारविंदे
'''आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।'''
भवम भवानी सहितं नमामि||</poem>
'''असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।'''</poem>
 


<poem>
<poem>
मंगलम भगवान् विष्णु
'''कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।'''
मंगलम गरुड़ध्वजः |
'''केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ।।'''</poem>
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरि ||</poem>


<poem>
सर्व मंगल मांग्लयै
शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी
नारायणी नमोस्तुते ||</poem>


<poem>
<poem>
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
'''प्रह्रादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।'''
त्वमेव बंधू सखा त्वमेव
'''मृगाणां मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।।'''</poem>
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव</poem>


<poem>
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ||</poem>


<poem>
<poem>
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
'''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।'''
हे नाथ नारायण वासुदेव |
'''मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।'''</poem>
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
गोविन्द दामोदर माधवेती ||</poem>


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{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==संबंधित लेख==
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[[Category:संस्कृत साहित्य]]
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Latest revision as of 07:33, 7 November 2017

[[चित्र:Valmiki-shlok.jpg|thumb|वाल्मीकि और बहेलिया|250px]] संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है। छंद के रूप में होने के कारण ये आसानी से याद हो जाते हैं। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करके रखने की प्रथा न होने के कारण ही इस प्रकार का प्रावधान किया गया था।

वाल्मीकि की कथा

वाल्मीकि दस्युकर्म के मध्य एक बार उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर रत्नाकर की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।'

(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी।)

इस घटना के पश्चात् दस्युकर्म से उन्हें विरक्ति हो गई ज्ञान की प्राप्ति में अनुरक्त हो गये। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण (जिसे कि "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये।

अन्य श्लोक

परं ब्रह्रा परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ।।
आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।


कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ।।


प्रह्रादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।


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