गुरु हरराय: Difference between revisions

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'''गुरु हरराय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Guru Har Rai'', जन्म: [[16 जनवरी]], 1630 ई.; मृत्यु: [[6 अक्टूबर]], 1661 ई.) [[सिक्ख|सिक्खों]] के सातवें गुरु थे। वे [[3 मार्च]], 1644 को गुरु नियुक्त हुए तथा इस पद पर [[6 अक्टूबर]], 1661 ई. तक रहे। गुरु हरराय अपने पितामह, महान् योद्धा [[गुरु हरगोविंद सिंह]] के विपरीत थे, गुरु हरराय शांति के समर्थक थे, जो [[मुग़ल]] उत्पीड़न का विरोध करने के लिए उपयुक्त नहीं था।
==जीवन परिचय==  
==जीवन परिचय==  
गुरु हरराय का जन्म सन् [[16 जनवरी]], 1630 ई. में [[पंजाब]] में हुआ था। गुरु हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे। गुरु हरराय सिखों के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। जिनका जन्म बाबा गुरुदिता जी के घर माता निहाल कौर की कोख से हुआ था।<ref>{{cite web |url=http://article.wn.com/view/WNATa4fd56d4e681078d21d1bd10be9f2da7/|title= हरराय साहब जी के गुरु गद्दी दिवस |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=वर्ल्ड न्यूज|language=[[हिन्दी]] }}</ref>गुरु हरगोविन्द साहिब जी ने ज्योति जोत समाने से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को “सप्तम नानक” के रूप में स्थापित किया।<ref name="धर्मचक्र" />गुरु हरराय साहिब जी का विवाह अनूप शहर, [[उत्तर प्रदेश]] के श्री दया राम जी की पुत्री किशन कौर जी के साथ सम्वत् 1697 में हुआ था। गुरु हरराय साहिब जी के दो पुत्र रामराय जी, [[गुरु हरकिशन|हरकिशन साहिब जी]] (गुरु) थे। गुरु हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरु हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया था।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Sikhism/Religious-Guru/GuruHarrai |title=गुरु हरराय |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format |publisher=रफ़्तार धर्म |language=[[हिन्दी]] }}</ref>गुरु हरराय एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे।<ref name="धर्मचक्र">{{cite web |url=http://dharmchakra.com/detail1.php?view=dharm&id=3 |title=गुरु हरराय |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=धर्मचक्र |language=[[हिन्दी]] }}</ref><br />
गुरु हरराय का जन्म सन् [[16 जनवरी]], 1630 ई. में [[पंजाब]] में हुआ था। गुरु हरराय जी एक महान् आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे। गुरु हरराय सिखों के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। जिनका जन्म बाबा गुरुदिता जी के घर माता निहाल कौर की कोख से हुआ था।<ref>{{cite web |url=http://article.wn.com/view/WNATa4fd56d4e681078d21d1bd10be9f2da7/|title= हरराय साहब जी के गुरु गद्दी दिवस |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=वर्ल्ड न्यूज|language=[[हिन्दी]] }}</ref>गुरु हरगोविन्द साहिब जी ने ज्योति जोत समाने से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को “सप्तम नानक” के रूप में स्थापित किया।<ref name="धर्मचक्र" />गुरु हरराय साहिब जी का विवाह अनूप शहर, [[उत्तर प्रदेश]] के श्री दया राम जी की पुत्री किशन कौर जी के साथ सम्वत् 1697 में हुआ था। गुरु हरराय साहिब जी के दो पुत्र रामराय जी, [[गुरु हरकिशन|हरकिशन साहिब जी]] (गुरु) थे। गुरु हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरु हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया था।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Sikhism/Religious-Guru/GuruHarrai |title=गुरु हरराय |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format |publisher=रफ़्तार धर्म |language=[[हिन्दी]] }}</ref>गुरु हरराय एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे।<ref name="धर्मचक्र">{{cite web |url=http://dharmchakra.com/detail1.php?view=dharm&id=3 |title=गुरु हरराय |accessmonthday=[[27 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=धर्मचक्र |language=[[हिन्दी]] }}</ref><br />


गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। इससे सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा।  
गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। इससे [[सिक्ख|सिक्खों]] की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा।  
==राजनीतिक भूल==
==राजनीतिक भूल==
मुग़ल बादशाह [[औरंगज़ेब]] के भाई [[दारा शिकोह]] की विद्रोह में मदद करके गुरु हरराय ने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की थी। दारा शिकोह [[संस्कृत भाषा]] के विद्वान थे। दारा शिकोह को भारतीय जीवन दर्शन प्रभावित करने लगा था। हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए हरराय को बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया।
मुग़ल बादशाह [[औरंगज़ेब]] के भाई [[दारा शिकोह]] की विद्रोह में मदद करके गुरु हरराय ने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की थी। दारा शिकोह [[संस्कृत भाषा]] के विद्वान् थे। दारा शिकोह को भारतीय जीवन दर्शन प्रभावित करने लगा था। हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए हरराय को बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया।
==उत्तराधिकारी==
==उत्तराधिकारी==
राम राय ने बादशाह के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता गुरु हरराय को क्षमा दिलाने के लिए राम राय को सिक्खों की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी थी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र [[गुरु हर किशन सिंह|हरिकिशन]] को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ई. में हुई थी।
राम राय ने बादशाह औरंगज़ेब के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता गुरु हरराय को क्षमा दिलाने के लिए राम राय को [[सिक्ख|सिक्खों]] की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी थी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र [[गुरु हर किशन सिंह|हरिकिशन]] को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ई. में हुई थी।


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Latest revision as of 05:23, 16 January 2018

गुरु हरराय
पूरा नाम गुरु हरराय
जन्म 16 जनवरी, 1630 ई.
जन्म भूमि पंजाब
मृत्यु 6 अक्टूबर, 1661 ई.
मृत्यु स्थान कीरतपुर साहिब, पंजाब
अभिभावक बाबा गुरुदिता और माता निहाल कौर
पति/पत्नी माता कृष्णन कौर
संतान बाबा रामराय और गुरु हर किशन सिंह
कर्म भूमि भारत
प्रसिद्धि सिक्खों के सातवें गुरु
नागरिकता भारतीय
पूर्वाधिकारी गुरु हरगोविंद सिंह
उत्तराधिकारी गुरु हर किशन सिंह
अन्य जानकारी गुरु हरराय जी एक महान् आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे।

गुरु हरराय (अंग्रेज़ी: Guru Har Rai, जन्म: 16 जनवरी, 1630 ई.; मृत्यु: 6 अक्टूबर, 1661 ई.) सिक्खों के सातवें गुरु थे। वे 3 मार्च, 1644 को गुरु नियुक्त हुए तथा इस पद पर 6 अक्टूबर, 1661 ई. तक रहे। गुरु हरराय अपने पितामह, महान् योद्धा गुरु हरगोविंद सिंह के विपरीत थे, गुरु हरराय शांति के समर्थक थे, जो मुग़ल उत्पीड़न का विरोध करने के लिए उपयुक्त नहीं था।

जीवन परिचय

गुरु हरराय का जन्म सन् 16 जनवरी, 1630 ई. में पंजाब में हुआ था। गुरु हरराय जी एक महान् आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे। गुरु हरराय सिखों के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। जिनका जन्म बाबा गुरुदिता जी के घर माता निहाल कौर की कोख से हुआ था।[1]गुरु हरगोविन्द साहिब जी ने ज्योति जोत समाने से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को “सप्तम नानक” के रूप में स्थापित किया।[2]गुरु हरराय साहिब जी का विवाह अनूप शहर, उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री किशन कौर जी के साथ सम्वत् 1697 में हुआ था। गुरु हरराय साहिब जी के दो पुत्र रामराय जी, हरकिशन साहिब जी (गुरु) थे। गुरु हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरु हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया था।[3]गुरु हरराय एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे।[2]

गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। इससे सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा।

राजनीतिक भूल

मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद करके गुरु हरराय ने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की थी। दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान् थे। दारा शिकोह को भारतीय जीवन दर्शन प्रभावित करने लगा था। हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए हरराय को बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया।

उत्तराधिकारी

राम राय ने बादशाह औरंगज़ेब के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता गुरु हरराय को क्षमा दिलाने के लिए राम राय को सिक्खों की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी थी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र हरिकिशन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ई. में हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हरराय साहब जी के गुरु गद्दी दिवस (हिन्दी) वर्ल्ड न्यूज। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010
  2. 2.0 2.1 गुरु हरराय (हिन्दी) धर्मचक्र। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010
  3. गुरु हरराय (हिन्दी) रफ़्तार धर्म। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010

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