आरमेइक लिपि: Difference between revisions
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आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने उच्चारण कला मूवा बार-रेकब, ई.र्पू. तेइमा ई.पू. मिस्र ई. पाप्यरी ई.पू. आठवी शताब्दी पांचवीं-चौथी पू.पांचवी- (आस्वान),ई. नवीं-आठवीं का उत्तराध शताब्दी तीसरी ई.पू. पांचवी शताब्दी शताब्दी शताब्दी | आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने उच्चारण कला मूवा बार-रेकब, ई.र्पू. तेइमा ई.पू. मिस्र ई. पाप्यरी ई.पू. आठवी शताब्दी पांचवीं-चौथी पू.पांचवी- (आस्वान),ई. नवीं-आठवीं का उत्तराध शताब्दी तीसरी ई.पू. पांचवी शताब्दी शताब्दी शताब्दी | ||
<center>आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने<br />[[चित्र:आरमेइक-लिपि.jpg| | <center>आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने<br />[[चित्र:आरमेइक-लिपि.jpg|thumb|250px]]</center> | ||
फोनिशियन लिपि (द्र.) का भी विकास हुआ था। आरमेइक लिपि का प्रयोग सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, अरबिस्तान आदि स्थानों पर होता था। आरमेइक भाषा इसी आरमेइक लिपि में लिखी जाती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=421-22 |url=}}</ref> | फोनिशियन लिपि (द्र.) का भी विकास हुआ था। आरमेइक लिपि का प्रयोग सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, अरबिस्तान आदि स्थानों पर होता था। आरमेइक भाषा इसी आरमेइक लिपि में लिखी जाती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=421-22 |url=}}</ref> | ||
Latest revision as of 07:39, 15 June 2018
आरमेइक (लिपि) संसार की प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण लिपि है। इसका विकास प्राचीन सामी लिपि (द्र.) की उत्तरी शाखा से हुआ है, जिस शाखा से आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने उच्चारण कला मूवा बार-रेकब, ई.र्पू. तेइमा ई.पू. मिस्र ई. पाप्यरी ई.पू. आठवी शताब्दी पांचवीं-चौथी पू.पांचवी- (आस्वान),ई. नवीं-आठवीं का उत्तराध शताब्दी तीसरी ई.पू. पांचवी शताब्दी शताब्दी शताब्दी
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फोनिशियन लिपि (द्र.) का भी विकास हुआ था। आरमेइक लिपि का प्रयोग सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, अरबिस्तान आदि स्थानों पर होता था। आरमेइक भाषा इसी आरमेइक लिपि में लिखी जाती थी।[1]
आरमेइक के प्राचीनतम अभिलेख ज़र्जीन एवं ज़ेनज़ीरली में प्राप्त कलमू अथवा मिलामूवा के अभिलेख हैं जो ई.पू. नवीं-आठवीं शताब्दी के हैं। आरमेइक लिपि के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का पता बाररेकब (ई.पू. आठवीं शताब्दी), तेइमा (ई.पू. पांचवीं-चौथी शताब्दी), मिस्र अथवा ईजिप्ट (ई.पू. पांचवीं-तीसरी शताब्दी), एवं पाप्यरी (ई.पू. पांचवीं शताब्दी) के अभिलेखों से मिलता है। (द्र. आरमेइक लिपि संबंधी चित्र)।
ई.पू. तीसरी शताब्दी तक आरमेइक लिपि का निरंतर प्रयोग होता रहा। इसके पश्चात् यह लिपि विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गई। कालांतर में इस लिपि से अनेक लिपियों का विकास हुआ जिनमें से मुख्य हैं : बाद की हिब्रू (द्र.), पतलवी (द्र.), पालमेरेन (द्र.), सीरिअक (द्र.), अरबी (द्र.), आर्मेनियन (द्र.) आदि।[2]
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