भगति पच्छ हठ करि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "निरुपण" to "निरूपण") |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : ज्ञान-भक्ति-निरूपण</h4> | |||
{{सूचना बक्सा पुस्तक | {{सूचना बक्सा पुस्तक | ||
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg | |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg | ||
Line 31: | Line 32: | ||
|टिप्पणियाँ = | |टिप्पणियाँ = | ||
}} | }} | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
; | ;दोहा | ||
भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप। | भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप। | ||
मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥ | मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥ | ||
Line 44: | Line 43: | ||
मैं हठ करके [[भक्ति]] पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे [[लोमश ऋषि|महर्षि लोमश]] ने मुझे [[शाप]] दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो [[मुनि|मुनियों]] को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। [[भजन]] का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥ | मैं हठ करके [[भक्ति]] पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे [[लोमश ऋषि|महर्षि लोमश]] ने मुझे [[शाप]] दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो [[मुनि|मुनियों]] को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। [[भजन]] का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=ताते यह तन मोहि प्रिय |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=जे असि भगति जानि परिहरहीं}} | {{लेख क्रम4| पिछला=ताते यह तन मोहि प्रिय |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=जे असि भगति जानि परिहरहीं}} | ||
''' | '''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। | ||
Latest revision as of 07:55, 6 February 2021
रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : ज्ञान-भक्ति-निरूपण
भगति पच्छ हठ करि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप। |
- भावार्थ
मैं हठ करके भक्ति पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे महर्षि लोमश ने मुझे शाप दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो मुनियों को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। भजन का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥
left|30px|link=ताते यह तन मोहि प्रिय|पीछे जाएँ | भगति पच्छ हठ करि | right|30px|link=जे असि भगति जानि परिहरहीं|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-532
संबंधित लेख