अरस्तू: Difference between revisions
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अरस्तू का जन्म एथेंस के उत्तर में स्थित मेसेडोनिया के प्रसिद्ध नगर 'स्टेगीरस' में हुआ था। बचपन से ही अरस्तू को जीवनशास्त्र का कुछ ज्ञान विरासत में ही मिला। अरस्तू सत्रह वर्ष की आयु में प्लेटो की अकादमी में प्रवेश लेने एथेंस आ गये और बीस वर्ष तक वहीं पर रहे। अरस्तू प्लेटो के राजनितिक दर्शन को वैज्ञानिक रूप देने वाले पहले शिष्य थे। वैसे तो प्लेटो की अकादमी के पहले हकदार अरस्तू ही थे, लेकिन विदेशी होने के कारण उन्हें यह गौरव प्राप्त नहीं हो सका। अरस्तू प्लेटो की मंडली के सबसे बुद्धिमान और मेधावी युवकों में से एक थे। जब उनके गुरु की मृत्यु हो गयी, तब उन्होंने दु:खी होकर एथेंस को छोड़ दिया।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://hi.shvoong.com/humanities/history/2201833-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%B8-%E0%A4%A4/ |title=अरस्तु |accessmonthday=25 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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Latest revision as of 14:10, 30 June 2017
अरस्तू
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पूरा नाम | अरस्तू |
जन्म | 384 ई. पू. |
जन्म भूमि | स्टेगीरस, ग्रीस |
मृत्यु तिथि | 322 ई.पू. |
मृत्यु स्थान | ग्रीस |
पति/पत्नी | पीथीयस |
प्रसिद्धि | दार्शनिक तथा वैज्ञानिक |
गुरु | प्लेटो |
शिष्य | सिकन्दर महान |
अन्य जानकारी | अरस्तू ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर महत्त्वपूर्ण रचनाएँ की थीं। |
अरस्तू (जन्म- 384 ई. पू., स्टेगीरस, ग्रीस; मृत्यु-322 ई.पू., ग्रीस) एक प्रसिद्ध और महान् यूनानी दार्शनिक तथा वैज्ञानिक थे। उन्हें प्लेटो के सबसे मेधावी शिष्यों में गिना जाता था। विश्व विजेता कहलाने वाला सिकन्दर अरस्तू का ही शिष्य था। अरस्तू ने प्लेटो की शिष्यता 17 वर्ष की आयु में ग्रहण की थी। राजा फ़िलिप के निमंत्रण पर अरस्तू को अल्पवयस्क सिकन्दर का गुरु नियुक्त किया गया था। उन्होंने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचनाएँ की थीं।
जन्म तथा शिक्षा
अरस्तू का जन्म एथेंस के उत्तर में स्थित मेसेडोनिया के प्रसिद्ध नगर 'स्टेगीरस' में हुआ था। बचपन से ही अरस्तू को जीवनशास्त्र का कुछ ज्ञान विरासत में ही मिला। अरस्तू सत्रह वर्ष की आयु में प्लेटो की अकादमी में प्रवेश लेने एथेंस आ गये और बीस वर्ष तक वहीं पर रहे। अरस्तू प्लेटो के राजनितिक दर्शन को वैज्ञानिक रूप देने वाले पहले शिष्य थे। वैसे तो प्लेटो की अकादमी के पहले हकदार अरस्तू ही थे, लेकिन विदेशी होने के कारण उन्हें यह गौरव प्राप्त नहीं हो सका। अरस्तू प्लेटो की मंडली के सबसे बुद्धिमान और मेधावी युवकों में से एक थे। जब उनके गुरु की मृत्यु हो गयी, तब उन्होंने दु:खी होकर एथेंस को छोड़ दिया।[1]
सिकन्दर के गुरु
एथेंस को छोड़ने के बाद अरस्तू एशिया माइनर के एथेंस नगर में चले आये और वहाँ पर एक अकादमी की स्थापना की। यहीं पर हर्मियस की दूसरी बेटी पीथीयस से उनका विवाह हो गया। लगभग 343 ईसा पूर्व मैसीडोनिया के शासक फ़िलिप के निमन्त्रण पर सिकन्दर को शिक्षा देने के लिए उनकी राजधानी पेला आये और 7 वर्ष बाद प्रचुर धन अपने साथ लेकर वापस एथेंस आ गये।
रचनाएँ
अरस्तू को दर्शन, राजनीति, काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष आदि का काफ़ी अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे हुए ग्रन्थों की संख्या 400 तक बताई जाती है। अरस्तू राज्य को सर्वाधिक संस्था मानते थे। उनकी राज्य संस्था कृत्रिम नहीं, बल्कि प्राकृतिक थी। इसे वह मनुष्य के शरीर का अंग मानते थे और इसी आधार पर मनुष्य को प्राकृतिक प्राणी कहते थे।
मृत्यु
वापस आकर अरस्तू ने अपोलो के मन्दिर के पास एक विद्यापीठ की स्थापना की, जो की 'पर्यटक विद्यापीठ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अरस्तू का बाकी जीवन यहीं पर बीता। अपने महान् शिष्य सिकन्दर की मृत्यु के बाद अरस्तू ने भी विष पीकर आत्महत्या कर ली।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख