अमरकंटक: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Narmada-Kund-And-Temple.jpg|thumb|250px|नर्मदाकुंड और मंदिर, अमरकंटक]]
[[चित्र:Narmada-Kund-And-Temple.jpg|thumb|250px|नर्मदा कुंड और मंदिर, अमरकंटक]]
'''अमरकंटक''' [[मध्य प्रदेश]] के [[अनूपपुर ज़िला|अनूपपुर ज़िले]] में स्थित है। अमरकंटक [[रीवा]] से 160 मील और पेंड्रा रेलवे स्टेशन से 15 मील दूर [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तथा [[सोन नदी|सोन]] नदी के उद्गम-स्थान के रूप में प्रख्यात है। अमरकंटक [[पठार]] समुद्रतट से 2500 फ़ुट से 3500 फ़ुट तक ऊँचा है। नर्मदा का [[उदगम]] एक पर्वतकुण्ड में बताया जाता है। अमरकंटक को [[आम्रकूट]] भी कहते हैं। यह [[तीर्थ]], [[श्राद्ध|श्राद्ध-स्थान]] और '''सिद्ध क्षेत्र''' के रूप में प्रसिद्ध है। अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम स्थान के [[पर्वत]] को '''सोम''' भी कहा गया है। अमरकंटक ऋक्षपर्वत का एक भाग है, जो [[पुराण|पुराणों]] में वर्णित '''सप्तकुल पर्वतों''' में से एक है।  
'''अमरकंटक''' [[मध्य प्रदेश]] के [[अनूपपुर ज़िला|अनूपपुर ज़िले]] में स्थित है। अमरकंटक [[रीवा]] से 160 मील और पेंड्रा रेलवे स्टेशन से 15 मील दूर [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तथा [[सोन नदी|सोन]] नदी के उद्गम-स्थान के रूप में प्रख्यात है। अमरकंटक [[पठार]] समुद्रतट से 2500 फ़ुट से 3500 फ़ुट तक ऊँचा है। नर्मदा का [[उदगम]] एक पर्वतकुण्ड में बताया जाता है। अमरकंटक को [[आम्रकूट]] भी कहते हैं। यह [[तीर्थ]], [[श्राद्ध|श्राद्ध-स्थान]] और '''सिद्ध क्षेत्र''' के रूप में प्रसिद्ध है। अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम स्थान के [[पर्वत]] को '''सोम''' भी कहा गया है। अमरकंटक ऋक्षपर्वत का एक भाग है, जो [[पुराण|पुराणों]] में वर्णित '''सप्तकुल पर्वतों''' में से एक है।  
==मन्दिर और मूर्तियाँ==
==मन्दिर और मूर्तियाँ==
अमरकंटक में अनेक मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध [[महाभारत]] के [[पाण्डव|पाण्डवों]] से बताया जाता है। किन्तु मूर्तियों में से अधिकांश पुरानी नहीं हैं। वास्तव में प्राचीन मन्दिर थोड़े ही हैं- इनमें से एक [[त्रिपुरी]] के [[कलचुरि वंश|कलचुरि]] [[कर्णदेव|नरेश कर्णदेव]] (1041-1073 ई.) का बनवाया हुआ है। इसे '''कर्णदहरिया''' का मन्दिर भी कहते हैं। यह तीन विशाल शिखरयुक्त मन्दिरों के समूह से मिलकर बना है। ये तीनों पहले एक महामण्डप से संयुक्त थे, किन्तु अब यह नष्ट हो गया है। इस मन्दिर के बाद का बना हुआ एक अन्य मन्दिर '''मच्छींद्र''' का भी है। इसका शिखर [[भुवनेश्वर]] के मन्दिर के शिखर की आकृति का है। यह मन्दिर कई विशेषताओं में कर्णदहरिया के मन्दिर का अनुकरण जान पड़ता है।  
अमरकंटक में अनेक मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध [[महाभारत]] के [[पाण्डव|पाण्डवों]] से बताया जाता है। किन्तु मूर्तियों में से अधिकांश पुरानी नहीं हैं। वास्तव में प्राचीन मन्दिर थोड़े ही हैं- इनमें से एक [[त्रिपुरी]] के [[कलचुरि वंश|कलचुरि]] [[कर्णदेव|नरेश कर्णदेव]] (1041-1073 ई.) का बनवाया हुआ है। इसे '''कर्णदहरिया''' का मन्दिर भी कहते हैं। यह तीन विशाल शिखरयुक्त मन्दिरों के समूह से मिलकर बना है। ये तीनों पहले एक महामण्डप से संयुक्त थे, किन्तु अब यह नष्ट हो गया है। इस मन्दिर के बाद का बना हुआ एक अन्य मन्दिर '''मच्छींद्र''' का भी है। इसका शिखर [[भुवनेश्वर]] के मन्दिर के शिखर की आकृति का है। यह मन्दिर कई विशेषताओं में कर्णदहरिया के मन्दिर का अनुकरण जान पड़ता है।  
==नर्मदा का उदगम==
==नर्मदा का उद्गम==
नर्मदा का वास्तविक उद्गम उपर्युक्त कुण्ड से थोड़ी दूर पर है। [[बाणभट्ट|बाण]] ने इसे '''चंद्रपर्वत''' कहा है। यहीं से आगे चलकर नर्मदा एक छोटे से नाले के रूप में बहती दिखाई पड़ती है। इस स्थान से प्रायः ढाई मील पर अरंडी संगम तथा एक मील और आगे नर्मदा की कपिलधारा स्थित है। कपिलधारा नर्मदा का प्रथम प्रपात है, जहाँ पर नदी 100 फ़ुट की ऊँचाई से नीचे गहराई में गिरती है। इसके थोड़ा और आगे '''दुग्धधारा''' है, जहाँ नर्मदा का शुभ्रजल [[दूध]] के श्वेत फेन के समान दिखाई देता है। [[शोण नदी|शोण]] या [[सोन नदी]] का उद्गम नर्मदा के उद्गम से एक मील दूर सोन-मूढ़ा नामक स्थान पर से हुआ है। यह भी नर्मदा स्रोत के समान ही पवित्र माना जाता है। [[वनपर्व महाभारत|महाभारत वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत]] 85,9</ref> में नर्मदा-शोण के उद्गम के पास ही वंशग़ुल्म नामक [[तीर्थ]] का उल्लेख है। यह स्थान प्राचीन काल में [[विदर्भ]] देश के अंतर्गत था। वंशग़ुल्म का अभिज्ञान [[वासिम]] से किया गया है।
नर्मदा का वास्तविक उद्गम उपर्युक्त कुण्ड से थोड़ी दूर पर है। [[बाणभट्ट|बाण]] ने इसे '''चंद्रपर्वत''' कहा है। यहीं से आगे चलकर नर्मदा एक छोटे से नाले के रूप में बहती दिखाई पड़ती है। इस स्थान से प्रायः ढाई मील पर अरंडी संगम तथा एक मील और आगे नर्मदा की कपिलधारा स्थित है। कपिलधारा नर्मदा का प्रथम प्रपात है, जहाँ पर नदी 100 फ़ुट की ऊँचाई से नीचे गहराई में गिरती है। इसके थोड़ा और आगे '''दुग्धधारा''' है, जहाँ नर्मदा का शुभ्रजल [[दूध]] के श्वेत फेन के समान दिखाई देता है। [[शोण नदी|शोण]] या [[सोन नदी]] का उद्गम नर्मदा के उद्गम से एक मील दूर सोन-मूढ़ा नामक स्थान पर से हुआ है। यह भी नर्मदा स्रोत के समान ही पवित्र माना जाता है। [[वनपर्व महाभारत|महाभारत वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत]] 85,9</ref> में नर्मदा-शोण के उद्गम के पास ही वंशग़ुल्म नामक [[तीर्थ]] का उल्लेख है। यह स्थान प्राचीन काल में [[विदर्भ]] देश के अंतर्गत था। वंशग़ुल्म का अभिज्ञान [[वासिम]] से किया गया है।


Line 13: Line 13:
{{मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
{{मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:मध्य प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल]]
[[Category:मध्य प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल]]
[[Category:पौराणिक_स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
[[Category:पौराणिक_स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थानावली]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 11:14, 3 May 2018

thumb|250px|नर्मदा कुंड और मंदिर, अमरकंटक अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में स्थित है। अमरकंटक रीवा से 160 मील और पेंड्रा रेलवे स्टेशन से 15 मील दूर नर्मदा तथा सोन नदी के उद्गम-स्थान के रूप में प्रख्यात है। अमरकंटक पठार समुद्रतट से 2500 फ़ुट से 3500 फ़ुट तक ऊँचा है। नर्मदा का उदगम एक पर्वतकुण्ड में बताया जाता है। अमरकंटक को आम्रकूट भी कहते हैं। यह तीर्थ, श्राद्ध-स्थान और सिद्ध क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम स्थान के पर्वत को सोम भी कहा गया है। अमरकंटक ऋक्षपर्वत का एक भाग है, जो पुराणों में वर्णित सप्तकुल पर्वतों में से एक है।

मन्दिर और मूर्तियाँ

अमरकंटक में अनेक मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध महाभारत के पाण्डवों से बताया जाता है। किन्तु मूर्तियों में से अधिकांश पुरानी नहीं हैं। वास्तव में प्राचीन मन्दिर थोड़े ही हैं- इनमें से एक त्रिपुरी के कलचुरि नरेश कर्णदेव (1041-1073 ई.) का बनवाया हुआ है। इसे कर्णदहरिया का मन्दिर भी कहते हैं। यह तीन विशाल शिखरयुक्त मन्दिरों के समूह से मिलकर बना है। ये तीनों पहले एक महामण्डप से संयुक्त थे, किन्तु अब यह नष्ट हो गया है। इस मन्दिर के बाद का बना हुआ एक अन्य मन्दिर मच्छींद्र का भी है। इसका शिखर भुवनेश्वर के मन्दिर के शिखर की आकृति का है। यह मन्दिर कई विशेषताओं में कर्णदहरिया के मन्दिर का अनुकरण जान पड़ता है।

नर्मदा का उद्गम

नर्मदा का वास्तविक उद्गम उपर्युक्त कुण्ड से थोड़ी दूर पर है। बाण ने इसे चंद्रपर्वत कहा है। यहीं से आगे चलकर नर्मदा एक छोटे से नाले के रूप में बहती दिखाई पड़ती है। इस स्थान से प्रायः ढाई मील पर अरंडी संगम तथा एक मील और आगे नर्मदा की कपिलधारा स्थित है। कपिलधारा नर्मदा का प्रथम प्रपात है, जहाँ पर नदी 100 फ़ुट की ऊँचाई से नीचे गहराई में गिरती है। इसके थोड़ा और आगे दुग्धधारा है, जहाँ नर्मदा का शुभ्रजल दूध के श्वेत फेन के समान दिखाई देता है। शोण या सोन नदी का उद्गम नर्मदा के उद्गम से एक मील दूर सोन-मूढ़ा नामक स्थान पर से हुआ है। यह भी नर्मदा स्रोत के समान ही पवित्र माना जाता है। महाभारत वनपर्व[1] में नर्मदा-शोण के उद्गम के पास ही वंशग़ुल्म नामक तीर्थ का उल्लेख है। यह स्थान प्राचीन काल में विदर्भ देश के अंतर्गत था। वंशग़ुल्म का अभिज्ञान वासिम से किया गया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 29-30| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

संबंधित लेख