बरसाना: Difference between revisions
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ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़ीलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। [[चित्र:barsana-holi-1.jpg|लट्ठामार होली, बरसाना<br />Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px | ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़ीलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। [[चित्र:barsana-holi-1.jpg|लट्ठामार होली, बरसाना<br />Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px]] स्वागत देखकर पांडे ख़ुशी से नाचने लगते हैं। [[राधा]] कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। लोगों द्वारा लाये गये लड्डूओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं। कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूपों ने आकर अपने क़दम बढ़ा दिया। बरसानावासी राधा पक्ष वालों ने समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं और मुक़ाबला रोचक हो जाता है। लट्ठा-मार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच जोरदार मुक़ाबला होता है। नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है। मेहमान-नवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुक़ाबला होता है। गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं। यहाँ सुघड़ हुरियारी अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलती हैं। दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर-कर छेडते हैं। ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहाँ है। इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ उसे जिया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। | ||
निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक दूसरे के यहाँ वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती है। बरसाना के लोह-हर्ष से भरकर मुक़ाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें। यहाँ गायन का एक बार फिर कड़ा मुक़ाबला होगा। [[यशोदा]] कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठा-मार होली। | निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक दूसरे के यहाँ वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती है। बरसाना के लोह-हर्ष से भरकर मुक़ाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें। यहाँ गायन का एक बार फिर कड़ा मुक़ाबला होगा। [[यशोदा]] कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठा-मार होली। | ||
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[[चित्र:barsana-temple-3.jpg|राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana|thumb|250px]]
बरसाना मथुरा से 42 कि.मी., कोसी से 21 कि.मी. छाता तहसील का एक छोटा-सा गाँव है। बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। यहाँ लाड़लीजी का बहुत बड़ा मंदिर है। यहाँ की अधिकांश पुरानी इमारत 300 वर्ष पुरानी है। राधा को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती है। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे।
बरसाना का पुराना नाम ब्रह्मासरिनि था। राधाष्टमी के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है।
बरसाना कृष्ण की प्रेयसी राधा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत् पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में बृहत्सानु कहा जाता था (बृहत् सानु=पर्वत शिखर) इसका प्राचीन नाम ब्रहत्सानु, ब्रह्मसानु अथवा व्रषभानुपुर है। इसके अन्य नाम ब्रह्मसानु या वृषभानुपुर (वृषभानु, राधा के पिता का नाम है) भी कहे जाते हैं। जयपुर मंदिर, बरसाना
Jaipur Temple, Barsana|thumb|250px|left बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल और पीले पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परम भव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चल कर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि औरंगजेब जिसने मथुरा व निकटवर्ती स्थानों के मंदिरों को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था, बरसाने तक न पहुंच सका था।
thumb|250px|राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana
राधा श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुच्जेश्वरी मानी जाती है। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्णा तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान)
यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता हैं। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।
बसंत पंचमी से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है। टेसू (पलाश) के फूल तोड़कर और उन्हें सुखा कर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है। गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं- "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे।" शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है। सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। बारहसिंघा की खाल से बनी ढ़ाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं। बरसानावासी उन्हें रुपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मद-मस्त होकर पहुंचते हैं। राधा-कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं ।
लट्ठामार होली
ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़ीलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। लट्ठामार होली, बरसाना
Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px स्वागत देखकर पांडे ख़ुशी से नाचने लगते हैं। राधा कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। लोगों द्वारा लाये गये लड्डूओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं। कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूपों ने आकर अपने क़दम बढ़ा दिया। बरसानावासी राधा पक्ष वालों ने समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं और मुक़ाबला रोचक हो जाता है। लट्ठा-मार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच जोरदार मुक़ाबला होता है। नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है। मेहमान-नवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुक़ाबला होता है। गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं। यहाँ सुघड़ हुरियारी अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलती हैं। दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर-कर छेडते हैं। ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहाँ है। इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ उसे जिया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।
निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक दूसरे के यहाँ वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती है। बरसाना के लोह-हर्ष से भरकर मुक़ाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें। यहाँ गायन का एक बार फिर कड़ा मुक़ाबला होगा। यशोदा कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठा-मार होली।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
वीथिका
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राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
जयपुर मंदिर, बरसाना
Jaipur Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
जयपुर मंदिर, बरसाना
Jaipur Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana
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