पश्चिमी पहाड़ी बोली: Difference between revisions

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Revision as of 08:53, 14 October 2011

  • पश्चिमी पहाड़ी बोली 'पहाड़ी' की पश्चिमी बोलियों का एक सामूहिक नाम है।
  • ग्रियर्सन के भाषा - सर्वेक्षण के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या लगभग 8,53,468 थी।
  • इसका भौगोलिक विस्तार पंजाब के उत्तरी - पूर्वी पहाड़ी भाग में भद्रवाह, चंबा, मंडी, शिमला, चकराता और लाहौल - स्पिति आदि में तथा इनके आस - पास है।
  • पश्चिमी पहाड़ी की प्रमुख बोलियाँ जौनसारी, सिरमौरी, बघाटी, चमेआली तथा क्योंठली हैं।
  • इनके अतिरिक्त सतलुज वर्ग की बोलियाँ बाहरी सिराजी, शोदोची[1], कुल्लू वर्ग की बोलियाँ कुलूई, भीतरी सिराजी[2], मंडी वर्ग की बोलियाँ मंडेआली, मंडेआली पहाड़ी, सुकेती[3] तथा भद्रवाह वर्ग की बोलियाँ पाडरी, भलेसी, भद्रवाही[4] भी इसी अंतर्गत आती हैं।
  • ग्रियर्सन ने ये तो उल्लेख नहीं किया है, किंतु 'लाहुली' और 'हमीरपुर' का भी, मेरे विचार में स्वतंत्र उपबोली के रूप में उल्लेख किया जा सकता है। लोक- साहित्य इन बोलियों में पर्याप्त मात्रा में है।
  • इस क्षेत्र में 'टाकरी' लिपि तथा उसके विभिन्न रूपों का पर्याप्त प्रचार रहा है, किंतु अब देवनागरी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। टाकरी लिपि का प्रचार केवल दुकानदारों आदि में बहीखाता आदि लिखने तक ही अब सीमित है।
  • कुछ लोग उर्दू लिपि का भी प्रयोग करते हैं, यद्यपि अब उनकी संख्या घट रही है।



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टीका टिप्पणी

  1. बाहरी सिराजी, शोदोची
  2. कुलूई, भीतरी सिराजी
  3. मंडेआली, मंडेआली पहाड़ी, सुकेती
  4. पाडरी, भलेसी, भद्रवाही

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