उत्तर रामचरित: Difference between revisions

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'''उत्तररामचरित''' महाकवि [[भवभूति]] का [[संस्कृत]] में लिखा गया प्रसिद्ध [[नाटक]] है, जिसके सात अंकों में भगवान [[श्रीराम]] के उत्तर जीवन की कथा है। जनापवाद के कारण श्रीराम न चाहते हुए भी अपनी पत्नी [[सीता]] का परित्याग कर देते हैं। सीता के त्याग के बाद विरही राम की दशा का 'उत्तररामचरित' के तृतीय अंक में करुण चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो [[काव्य]] की दृष्टि से इस नाटक की जान है।
;कथावस्तु
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==काव्य शैली==
;काव्यशैली
[[भवभूति]] ने इस दृश्य काव्य में दांपत्य प्रणय के आदर्श रूप को अंकित किया है। कोमल एवं कठोर भावों की रुचिर व्यंजना, रमणीय और भयावह प्रकृति चित्रों का कुशल अंकन इस [[नाटक]] की विशेषताएँ हैं। 'उत्तररामचरित' में नाटकीय व्यापार की गतिमत्ता अवश्य शिथिल है और यह कृति नाटकत्व की अपेक्षा काव्यतत्व और गीति नाट्यत्व की अधिक परिचायक है। भवभूति की भावुकता और पांडित्यपूर्ण शैली का चरम परिपाक इस कृति में पूर्णत: लक्षित होता है।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4|title=उत्तररामचरित |accessmonthday=04 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====टीकाएँ====
;टीकाएँ
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उत्तर रामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित 'निर्णयसागर' संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में [[मुम्बई|बंबई]] से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं। इनमें प्रसिद्ध संस्करण इस प्रकार हैं -
;संस्करण
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#सी.एच. टानी द्वारा [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद सहित प्रकाशित, [[कोलकाता]], [[1871]]।
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Revision as of 11:24, 4 February 2014

उत्तररामचरित महाकवि भवभूति का संस्कृत में लिखा गया प्रसिद्ध नाटक है, जिसके सात अंकों में भगवान श्रीराम के उत्तर जीवन की कथा है। जनापवाद के कारण श्रीराम न चाहते हुए भी अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर देते हैं। सीता के त्याग के बाद विरही राम की दशा का 'उत्तररामचरित' के तृतीय अंक में करुण चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो काव्य की दृष्टि से इस नाटक की जान है।

काव्य शैली

भवभूति ने इस दृश्य काव्य में दांपत्य प्रणय के आदर्श रूप को अंकित किया है। कोमल एवं कठोर भावों की रुचिर व्यंजना, रमणीय और भयावह प्रकृति चित्रों का कुशल अंकन इस नाटक की विशेषताएँ हैं। 'उत्तररामचरित' में नाटकीय व्यापार की गतिमत्ता अवश्य शिथिल है और यह कृति नाटकत्व की अपेक्षा काव्यतत्व और गीति नाट्यत्व की अधिक परिचायक है। भवभूति की भावुकता और पांडित्यपूर्ण शैली का चरम परिपाक इस कृति में पूर्णत: लक्षित होता है।[1]

टीकाएँ

'उत्तररामचरित' पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं, जिनमें 'घनश्याम', 'वीरराघव', 'नारायण' और 'रामचंद्र बुधेंद्र' की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें अधिक प्रचलित 'निर्णयसागर' संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में मुम्बई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं।

संस्करण

अन्य प्रसिद्ध संस्करण इस प्रकार हैं-

  1. सी.एच. टानी द्वारा अंग्रेज़ी अनुवाद सहित प्रकाशित, कोलकाता, 1871
  2. फ्रेंच अनुवाद सहित फ़ेलीनेव द्वारा ब्रूसेल्स तथा पेरिस से 1880 में प्रकाशित।
  3. डॉ. बेल्वेलकर द्वारा केवल अंग्रेज़ी अनुवाद तथा भूमिका के रूप में हार्वर्ड ओरिएंटल सीरीज़ में संपादित, 1915 ई.।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तररामचरित (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 फ़रवरी, 2014।

संबंधित लेख