गुरु अर्जन देव: Difference between revisions
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'''गुरु अर्जुन देव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Guru Arjun Dev'', जन्म: [[15 अप्रैल]] सन् 1563 - मृत्यु: [[30 मई]] 1606) [[सिक्ख|सिक्खों]] के पाँचवें गुरु थे। ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे। गुरु अर्जुन देव का कई दृष्टियों से सिक्ख गुरुओं में विशिष्ट स्थान है। '[[गुरु ग्रंथ साहब]]' आज जिस रूप में उपलब्ध है, उसका संपादन इन्होंने ही किया था। गुरु अर्जुन देव सिक्खों के परम पूज्य चौथे [[गुरु रामदास]] के पुत्र थे। [[गुरु नानक]] से लेकर गुरु रामदास तक के चार गुरुओं की वाणी के साथ-साथ उस समय के अन्य [[संत]] महात्माओं की वाणी को भी इन्होंने 'गुरु ग्रंथ साहब' में स्थान दिया। | |||
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<blockquote>"दोहिता बाणी का बोहिथा"</blockquote> | |||
बीबी भानी जी ने जब पिता गुरु से यह बात सुनी तो बालक अर्जुन जी को उठाया और पिता के चरणों पर माथा टेक दिया। इस तरह अर्जन देव जी ननिहाल घर में अपने मामों श्री मोहन जी और श्री मोहरी जी के घर में बच्चों के साथ खेलते और शिक्षा ग्रहण की। जब आप की उम्र 16 वर्ष की हो गई तो 23 आषाढ़ संवत 1636 को आपकी शादी श्री कृष्ण चंद जी की सुपुत्री गंगा जी तहसील फिल्लोर के मऊ नामक स्थान पर हुई। आपकी शादी के स्थान पर एक सुन्दर गुरुद्वारा बना हुआ है। इस गाँव में पानी की कमी हो गई थी। आपने एक [[कुआं]] खुदवाया जो आज भी उपलब्ध है।<ref>{{cite web |url=http://www.spiritualworld.co.in/ten-gurus-of-sikhism/5-shri-guru-arjun-dev-ji/shri-guru-arjun-dev-ji-jeevan-parichay-an-introduction.html |title=श्री गुरु अर्जन देव जी जीवन-परिचय |accessmonthday= 14 अप्रॅल|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आध्यात्मिक जगत |language=हिंदी }}</ref> | |||
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*अर्जुन देव की रचना 'सुषमनपाठ' का सिक्ख नित्य पारायण करते हैं। | *अर्जुन देव की रचना 'सुषमनपाठ' का सिक्ख नित्य पारायण करते हैं। | ||
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Revision as of 09:54, 14 April 2013
गुरु अर्जन देव
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पूरा नाम | गुरु अर्जुन देव |
जन्म | 15 अप्रैल सन् 1563 |
मृत्यु | 30 मई, 1606 ई. |
मृत्यु स्थान | रावी |
पति/पत्नी | गंगा जी |
संतान | गुरु हरगोविंद सिंह |
भाषा | पंजाबी |
पुरस्कार-उपाधि | सिक्खों के पाँचवें गुरु |
नागरिकता | भारतीय |
पूर्वाधिकारी | गुरु रामदास |
उत्तराधिकारी | गुरु हरगोविंद सिंह |
गुरु अर्जुन देव (अंग्रेज़ी: Guru Arjun Dev, जन्म: 15 अप्रैल सन् 1563 - मृत्यु: 30 मई 1606) सिक्खों के पाँचवें गुरु थे। ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे। गुरु अर्जुन देव का कई दृष्टियों से सिक्ख गुरुओं में विशिष्ट स्थान है। 'गुरु ग्रंथ साहब' आज जिस रूप में उपलब्ध है, उसका संपादन इन्होंने ही किया था। गुरु अर्जुन देव सिक्खों के परम पूज्य चौथे गुरु रामदास के पुत्र थे। गुरु नानक से लेकर गुरु रामदास तक के चार गुरुओं की वाणी के साथ-साथ उस समय के अन्य संत महात्माओं की वाणी को भी इन्होंने 'गुरु ग्रंथ साहब' में स्थान दिया।
जीवन परिचय
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 18 वैशाख 7 संवत 1620 (15 अप्रैल सन् 1563) को श्री गुरु रामदास जी के घर बीबी भानी जी की पवित्र कोख से गोइंदवाल अपने ननिहाल घर में हुआ। अपने ननिहाल घर में ही पोषित और जवान हुए। इतिहास में लिखा है एक दिन ये अपने नाना श्री गुरु अमर दास जी के पास खेल रहे थे तो गुरु नाना जी के पलंग को आप पकड़कर खड़े हो गए। बीबी भानी जी आपको ऐसा देखकर पीछे हटाने लगी। गुरु जी अपनी सुपुत्री से कहने लगे बीबी! यह अब ही गद्दी लेना चाहता है मगर गद्दी इसे समय डालकर अपने पिताजी से ही मिलेगी। इसके पश्चात गुरु अमर दास जी ने अर्जुन जी को पकड़कर प्यार किया और ऊपर उठाया। आपका भारी शरीर देखकर वचन किया जगत में यह भारी गुरु प्रकट होगा। बाणी का जहाज़ तैयार करेगा और जिसपर चढ़कर अनेक प्रेमियों का उद्धार होगा। इस प्रकार आपका वरदान वचन प्रसिद्ध है-
"दोहिता बाणी का बोहिथा"
बीबी भानी जी ने जब पिता गुरु से यह बात सुनी तो बालक अर्जुन जी को उठाया और पिता के चरणों पर माथा टेक दिया। इस तरह अर्जन देव जी ननिहाल घर में अपने मामों श्री मोहन जी और श्री मोहरी जी के घर में बच्चों के साथ खेलते और शिक्षा ग्रहण की। जब आप की उम्र 16 वर्ष की हो गई तो 23 आषाढ़ संवत 1636 को आपकी शादी श्री कृष्ण चंद जी की सुपुत्री गंगा जी तहसील फिल्लोर के मऊ नामक स्थान पर हुई। आपकी शादी के स्थान पर एक सुन्दर गुरुद्वारा बना हुआ है। इस गाँव में पानी की कमी हो गई थी। आपने एक कुआं खुदवाया जो आज भी उपलब्ध है।[1]
विशेष बिंदु
- गुरु अर्जुन देव के स्वयं के लगभग दो हज़ार शब्द गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं।
- अर्जुन देव की रचना 'सुषमनपाठ' का सिक्ख नित्य पारायण करते हैं।
- अर्जुन देव ने अपने पिता द्वारा अमृतसर नगर के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया था।
- इन्होंने 'अमृत सरोवर' का निर्माण कराकर उसमें 'हरमंदिर साहब' का निर्माण कराया, जिसकी नींव सूफ़ी संत मियाँ मीर के हाथों से रखवाई गई थी।
- तरनतारन नगर भी गुरु अर्जुन देव के समय में बसा हुआ एक नगर है।
- मुग़ल सम्राट अकबर भी गुरु अर्जुन देव का सम्मान करता था।
- अर्जुन देव ने सार्वजनिक सुविधा के लिए जो काम किए उनसे अकबर बहुत प्रभावित था।
- अर्जुन देव के बढ़ते हुए प्रभाव को जहाँगीर सहन नहीं कर सका, और उसने अपने पुत्र खुसरों की सहायता से अर्जुन देव को क़ैद कर लिया।
- जहाँगीर द्वारा क़ैद में गुरु अर्जुन देव को तरह-तरह की यातनाएँ दी गईं। इन्हीं परिस्थितियों में 30 मई, 1606 ई. में रावी के तट पर आकार गुरु अर्जुन देव का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 234।
- ↑ श्री गुरु अर्जन देव जी जीवन-परिचय (हिंदी) आध्यात्मिक जगत। अभिगमन तिथि: 14 अप्रॅल, 2013।