सोहगोर: Difference between revisions
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सोहगोर [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[गोरखपुर]] शहर से 14 मील दूर इस ग्राम में [[1874]] ई. में एक ताम्रपट्ट प्राप्त हुआ था जिस पर महत्त्वपूर्ण अभिलेख अंकित था। इसमें श्रावस्ती के कुछ राज्यअधिकारियों के सरकारी अन्नभंडार के रक्षकों के प्रति आदेश सन्निहित है। इसमें कहा गया है कि इस प्रदेश में अकाल पड़ने के कारण सरकारी भंडार से अकाल-पीड़ितों को बराबर अन्न बांटा जाए। अन्न के समभक्त किए जाने के विषय में दिव्यावदान <ref>(प्रथम शती ई.)</ref> में [[काशी]]-नरेश ब्रह्मदत्त द्वारा अकालपीड़ितों को समान मात्रा में अन्न बांटने का वर्णन है। स्वयं राजा ने एक भूखे निर्धन के साथ अपने द्विगुण भाग का बंटबारा कर लिया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी समभक्त के विषय में सूचना मिलती है। | सोहगोर [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[गोरखपुर]] शहर से 14 मील दूर इस ग्राम में [[1874]] ई. में एक ताम्रपट्ट प्राप्त हुआ था जिस पर महत्त्वपूर्ण अभिलेख अंकित था। इसमें श्रावस्ती के कुछ राज्यअधिकारियों के सरकारी अन्नभंडार के रक्षकों के प्रति आदेश सन्निहित है। इसमें कहा गया है कि इस प्रदेश में अकाल पड़ने के कारण सरकारी भंडार से अकाल-पीड़ितों को बराबर अन्न बांटा जाए। अन्न के समभक्त किए जाने के विषय में दिव्यावदान <ref>(प्रथम शती ई.)</ref> में [[काशी]]-नरेश ब्रह्मदत्त द्वारा अकालपीड़ितों को समान मात्रा में अन्न बांटने का वर्णन है। स्वयं राजा ने एक भूखे निर्धन के साथ अपने द्विगुण भाग का बंटबारा कर लिया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी समभक्त के विषय में सूचना मिलती है। | ||
Revision as of 07:40, 4 March 2011
thumb|200px|सोहगौर ताम्रपट (संभवतः ईसा पूर्व चौथी सदी) सोहगोर उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर शहर से 14 मील दूर इस ग्राम में 1874 ई. में एक ताम्रपट्ट प्राप्त हुआ था जिस पर महत्त्वपूर्ण अभिलेख अंकित था। इसमें श्रावस्ती के कुछ राज्यअधिकारियों के सरकारी अन्नभंडार के रक्षकों के प्रति आदेश सन्निहित है। इसमें कहा गया है कि इस प्रदेश में अकाल पड़ने के कारण सरकारी भंडार से अकाल-पीड़ितों को बराबर अन्न बांटा जाए। अन्न के समभक्त किए जाने के विषय में दिव्यावदान [1] में काशी-नरेश ब्रह्मदत्त द्वारा अकालपीड़ितों को समान मात्रा में अन्न बांटने का वर्णन है। स्वयं राजा ने एक भूखे निर्धन के साथ अपने द्विगुण भाग का बंटबारा कर लिया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी समभक्त के विषय में सूचना मिलती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (प्रथम शती ई.)