नादिरशाह: Difference between revisions
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नादिरशाह अफ़्शार (या नादिर कोली बेग़) (1688-1747) फ़ारस का शाह था (1736-1747) और उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। वो [[भारत]] विजय के अभियान पर भी निकला था। [[दिल्ली]] की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह आलम को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें [[कोहिनूर हीरा]] भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन 1747 में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया। | नादिरशाह अफ़्शार (या नादिर कोली बेग़) (1688-1747) फ़ारस का शाह था (1736-1747) और उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। वो [[भारत]] विजय के अभियान पर भी निकला था। [[दिल्ली]] की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह आलम को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें [[कोहिनूर हीरा]] भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन 1747 में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया। | ||
नादिरशाह का आक्रमण:− मुहम्मद शाह के शासन काल की एक अत्यंत दु:खान्त घटना नादिरशाह का भारत पर आक्रमण करना था। मुग़ल शासन के आरंभ से अब किसी बाहरी शत्रु का इस देश पर आक्रमण नहीं हुआ था; किंतु उस काल में दिल्ली की शासन−सत्ता इतनी दुर्बल हो गई थी, कि [[ईरान]] के एक | नादिरशाह का आक्रमण:− मुहम्मद शाह के शासन काल की एक अत्यंत दु:खान्त घटना नादिरशाह का भारत पर आक्रमण करना था। मुग़ल शासन के आरंभ से अब किसी बाहरी शत्रु का इस देश पर आक्रमण नहीं हुआ था; किंतु उस काल में दिल्ली की शासन−सत्ता इतनी दुर्बल हो गई थी, कि [[ईरान]] के एक महत्त्वाकांक्षी लुटेरे शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण करने का साहस किया था। उसने मुग़ल सम्राट् द्वारा शासित [[क़ाबुल]]−कंधार प्रदेश पर अधिकार कर पेशावर स्थित मुग़ल सेना का विध्वंस कर डाला। <br /> | ||
जब मुहम्मदशाह को नादिरशाह के आक्रमण की बात बतलाई गई, तो उसने उसे हँसी में उड़ा दिया। उसकी आँखे तब खुली जब नादिर की सेना पंजाब को रौंधती हुई करनाल तक आ पहुँची थी। मुहम्मदशाह ने अपनी सेना उसके विरुद्ध भेजी; किंतु सं. 1769 (24 फ़रवरी, 1739) में उसकी पराजय हो गई। नादिर से पहले 2 करोड़ रुपया हर्जाना देने की माँग की थी, किंतु उसके स्वीकार होने पर वह 20 करोड़ माँगने लगा।<br /> | जब मुहम्मदशाह को नादिरशाह के आक्रमण की बात बतलाई गई, तो उसने उसे हँसी में उड़ा दिया। उसकी आँखे तब खुली जब नादिर की सेना पंजाब को रौंधती हुई करनाल तक आ पहुँची थी। मुहम्मदशाह ने अपनी सेना उसके विरुद्ध भेजी; किंतु सं. 1769 (24 फ़रवरी, 1739) में उसकी पराजय हो गई। नादिर से पहले 2 करोड़ रुपया हर्जाना देने की माँग की थी, किंतु उसके स्वीकार होने पर वह 20 करोड़ माँगने लगा।<br /> | ||
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नादिरशाह
Nadir Shah|thumb|200px
नादिरशाह अफ़्शार (या नादिर कोली बेग़) (1688-1747) फ़ारस का शाह था (1736-1747) और उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। वो भारत विजय के अभियान पर भी निकला था। दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाह आलम को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन 1747 में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया।
नादिरशाह का आक्रमण:− मुहम्मद शाह के शासन काल की एक अत्यंत दु:खान्त घटना नादिरशाह का भारत पर आक्रमण करना था। मुग़ल शासन के आरंभ से अब किसी बाहरी शत्रु का इस देश पर आक्रमण नहीं हुआ था; किंतु उस काल में दिल्ली की शासन−सत्ता इतनी दुर्बल हो गई थी, कि ईरान के एक महत्त्वाकांक्षी लुटेरे शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण करने का साहस किया था। उसने मुग़ल सम्राट् द्वारा शासित क़ाबुल−कंधार प्रदेश पर अधिकार कर पेशावर स्थित मुग़ल सेना का विध्वंस कर डाला।
जब मुहम्मदशाह को नादिरशाह के आक्रमण की बात बतलाई गई, तो उसने उसे हँसी में उड़ा दिया। उसकी आँखे तब खुली जब नादिर की सेना पंजाब को रौंधती हुई करनाल तक आ पहुँची थी। मुहम्मदशाह ने अपनी सेना उसके विरुद्ध भेजी; किंतु सं. 1769 (24 फ़रवरी, 1739) में उसकी पराजय हो गई। नादिर से पहले 2 करोड़ रुपया हर्जाना देने की माँग की थी, किंतु उसके स्वीकार होने पर वह 20 करोड़ माँगने लगा।
मुग़लों का कारू का सा ख़ज़ाना भी उस काल में ख़ाली हो गया था, अत: 20 करोड़ कैसे दिया जा सकता था। फलत: नादिर ने दिल्ली को लूटने और वहाँ नर संहार करने की आज्ञा प्रदान कर दी। उससे बर्बर सैनिक राजधानी में घुस पड़े और उन्होंने लूटमार का बाज़ार गर्म कर दिया। उसके कारण दिल्ली के हज़ारों नागरिक मारे गये और वहाँ भारी लूट की गई। इस लूट में नादिरशाह को बेशुमार दौलत मिली थी। उसे 20 करोड़ की बजाय 30 करोड़ रुपया नक़द मिला। उसके अतिरिक्त ढेरो जवाहरात, बेगमों के बहुमूल्य आभूषण, सोने चाँदी के अगणित वर्तमान तथा अन्य वेश कीमती वस्तुएँ उसे मिली थी।
इनके साथ ही साथ दिल्ली की लूट में उसे कोहिनूर हीरा और शाहजहाँ का ‘तख्त-ए-ताऊस’ (मयूर सिंहासन) भी मिला था। वह बहुमूल्य मयूर सिंहासन अब भी ईरान में है, या नहीं इसका ज्ञान किसी को नहीं है। नादिरशाह के हाथ पड़ने वाली शाही हरम की सुंदरी बेगमों के अतिरिक्त मुहम्मदशाह की पुत्री शहनाज बानू भी थी, जिसका विवाह उसने अपने पुत्र नसरूल्ला ख़ाँ के साथ कर दिया।
नादिरशाह प्राय: दो महीने तक दिल्ली में लूटमार करता रहा था। उसके कारण मुग़लों की राजधानी उजाड़ और बर्बाद सी हो गई थी। जब वह यहाँ से जाने लगा, तब करोड़ो की संपदा के साथ ही साथ वह 1,000 हाथी, 7,000 घोड़े, 10,000 ऊँट, 100 खोजे, 130 लेखक, 200 संगतराश, 100 राज और 200 बढ़ई भी अपने साथ ले गया था। ईरान पहुँच कर उसे तख्त ताऊस पर बैठ कर बड़ा शानदार दरबार किया। भारत की अपार सम्पदा को भोगने के लिए वह अधिक काल तक जीवित नहीं रहा था। उसके कुकृत्यों का प्रायश्चित्त उसके सैनिकों के विद्रोह के रूप में हुआ था, जिसमें वह मारा गया। नादिरशाह की मृत्यु सं. 1804 में हुई थी।
मुहम्मदशाह नादिरशाह के आक्रमण के बाद भी कई वर्ष तक जीवित रहा था, किंतु उसका शासन दिल्ली की ओर−पास के भाग तक ही सीमित रह गया था। मुग़ल साम्राज्य के अधिकांश सूबे स्वतंत्र हो गये और विभिन्न स्थानों में साम्राज्य विरोधी शक्तियों का उदय हो गया था। मुहम्मदशाह उन्हें दबाने में असमर्थ था। वह स्वयं अपने मन्त्रियों और सेनापतियों की दया पर निर्भर था। उसकी मृत्यु सं. 1805 (26 अप्रेल, सन् 1748) में हुई थी। इस प्रकार उसने 20 वर्ष तक शासन किया था। वह किसी तरह अपने शासनकाल को पूरा तो कर गया; किंतु मुग़ल साम्राज्य को सर्वनाश के कगार पर खड़ा कर गया था।