गुरु अमरदास: Difference between revisions
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Revision as of 12:20, 17 November 2011
गुरू अमर दास|thumb|200px गुरु अमरदास (जन्म- 5 अप्रैल, 1479 बसरका गाँव, अमृतसर; मृत्यु- 1 सितम्बर 1574, अमृतसर) सिक्खों के तीसरे गुरु थे।
परिचय
गुरू अमर दास जी सिक्ख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरु नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 अमृतसर के बसरका गाँव में हुआ था। उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिन्दू थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। अमरदास की चार संतानें थी।
समाज सुधार
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यु एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन की छाप छोड़ी।[1]
गुरुपद
गुरु अमरदास आरंभ में वैष्णव मत के थे और खेती तथा व्यापार से अपनी जीविका चलाते थे। एक बार इन्हें गुरु नानक का पद सुनने को मिला उससे प्रभावित हो कर अमरदास सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद के पास गए और उनके शिष्य बन गए। गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी। परंतु अगंद के पुत्र दातू ने इनका अपमान किया।
रचना
अमरदास के कुछ पद गुरु ग्रंथ साहब में संगृहीत हैं। इनकी एक प्रसिद्ध रचना 'आनंद' है, जो उत्सवों में गाई जाती है। इन्ही के आदेश पर चौथे गुरु रामदास ने अमृतसर के निकट 'संतोषसर' नाम का तालाब खुदवाया था जो अब गुरु अमरदास के नाम पर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है।
निधन
गुरु अमरदास का निधन 1 सितम्बर 1574 को अमृतसर में हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 233।
- ↑ गुरू अमर दास जी (हिन्दी) संगत संसार। अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख