गंधमादन पर्वत: Difference between revisions
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Revision as of 11:37, 20 December 2011
- महाभारत की पुरा-कथाओं में गंधमादन पर्वत का ज़िक्र प्रमुखता से आता है।
- यहाँ देवता रमण करते हैं।
- पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ने तपस्या की। शेष ने भी यहाँ तप किया।
- हिमवत पार करके पाण्डव गंधमादन के पास पहुँचे।
- कुबेर के राजप्रासाद में गंधमादन की उपस्थिति देखी जाती है।
- इंद्र लोक में जाते समय अर्जुन को हिमवत और गंधमादन को पार करते दिखाया गया है।
- गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुँचा जा सकता।
- यहाँ पापात्मा नहीं पहुँच पाते। पापियों को विषैले सरीसृप, कीड़े-मकौड़े डस लेते हैं।
- गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गन्धर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहाँ निर्भीक विचरण करते हैं।
- गंधमादन पर भीमसेन हनुमान से मिलते हैं।
- भीमसेन ने यहाँ क्रोधवश्वत को पराजित किया।
- हिमवत पर गंधमादन के पास वृषपर्वन का आश्रम स्थित था।
- यहाँ नित्य सिद्ध, चारण, विद्याधर, किन्नर आदि परिभ्रमण करते दृष्टिगोचर होते हैं।
- इंद्रलोक से अर्जुन गंधमादन पर्वत पर आते हैं।
- मार्कण्डेय ने नारायण के उदर में गंधमादन के दर्शन किए थे।
- स्वर्ण नगरी लंका खोने पर कुबेर ने गंधमादन पर निवास किया।
- गंधमादन शिखर पर गुह्यों के स्वामी, कुबेर, राक्षस और अप्सराएं आनन्द पूर्वक रहते हैं।
- गंधमादन के पास कई छोटी स्वर्ण, मणि, मोतियों सी चमकती पर्वत मालाएं हैं।
- यहाँ मानव जीवन की अवधि 11,000 वर्ष है।
- यहाँ आदमी सर्वानंद प्राप्त करता है, स्त्रियाँ कमलवत् लावण्यमयी हैं।
- गंधमादन पर देवता और ऋषिगण आदि पितामह ब्रह्मा की साधना में साधनारत रहते हैं।
- यह देव पर्वत शिखर अमृत और अक्षय आनन्द अनुभूति का महास्त्रोत है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख