शीतलनाथ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''शीतलनाथ''' जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर थे। भगवान श...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 5: Line 5:
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठिन तप करने के बाद भद्रिकापुर में ही 'प्लक्ष' वृक्ष के नीचे [[पौष माह|पौष]] कृष्ण पक्ष की [[चतुर्दशी]] तिथि को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति इन्हें हुई।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठिन तप करने के बाद भद्रिकापुर में ही 'प्लक्ष' वृक्ष के नीचे [[पौष माह|पौष]] कृष्ण पक्ष की [[चतुर्दशी]] तिथि को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति इन्हें हुई।
*[[जैन]] मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
*[[जैन]] मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
*पूर्व [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने [[भक्त|भक्तों]] और मानव समाज को [[सत्य]] और [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
*पूर्व [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने [[भक्त|भक्तों]] और मानव समाज को [[सत्य]] और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
*शीतलनाथ ने [[वैशाख मास|वैशाख]] कृष्ण पक्ष [[द्वितीया]] को [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Sheetalnath|title=श्री पुष्पदंत जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
*शीतलनाथ ने [[वैशाख मास|वैशाख]] कृष्ण पक्ष [[द्वितीया]] को [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Sheetalnath|title=श्री पुष्पदंत जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>



Revision as of 12:13, 27 February 2012

शीतलनाथ जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर थे। भगवान शीतलनाथ का जन्म भद्रिकापुर में इक्ष्वाकु वंश के राजा दृढ़रथ की पत्नी माता सुनंदा के गर्भ से माघ मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था। इनका वर्ण सुवर्ण जबकि चिह्न कल्प वृक्ष था।

  • शीतलानाथ के यक्ष का नाम ब्रह्मेश्वर और यक्षिणी का नाम अशोका देवी था।
  • भगवान शीतलनाथ ने भद्रिकापुर में माघ कृष्ण पक्ष की द्वादशी को दीक्षा प्राप्ति की थी।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठिन तप करने के बाद भद्रिकापुर में ही 'प्लक्ष' वृक्ष के नीचे पौष कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति इन्हें हुई।
  • जैन मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • पूर्व तीर्थंकरों की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने भक्तों और मानव समाज को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
  • शीतलनाथ ने वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया को सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री पुष्पदंत जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

संबंधित लेख