ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह: Difference between revisions

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चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah-1.jpg|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah-2.jpg|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah-2.jpg|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह

Revision as of 10:01, 29 October 2016

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
विवरण ख़्वाजा साहब या ख़्वाजा शरीफ़ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है।
राज्य राजस्थान
ज़िला अजमेर
निर्माता इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था।
निर्माण काल 13वीं शताब्दी
प्रसिद्धि यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद ख़ूबसूरत है।
चित्र:Map-icon.gif गूगल मानचित्र
संबंधित लेख मोईनुद्दीन चिश्ती, मक्का, उर्स


अन्य जानकारी ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर दस्तक देने ज़रूर आते हैं।

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह राजस्थान के शहर अजमेर में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इसे 'दरगाह अजमेर शरीफ़' भी कहा जाता है। ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, ख़्वाजा साहब या ख़्वाजा शरीफ़ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है। मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे भारत का मक्का भी कहा जाता हैं।

निर्माण

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह का निर्माण 13वीं शताब्दी का माना जाता हैं।

वास्तुकला

तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ़ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है। यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद ख़ूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग़्यासुद्दीन ख़िलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक़्क़ाशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख़्वाजा साहब की मज़ार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक ख़ूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ क़व्वाल ख़्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।[1]

धार्मिक सद्‍भाव की मिसाल

धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को ग़रीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए। ख़्वाजा के दर पर हिन्दू हो या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी ज़ियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रज्जब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है।[1] thumb|left|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह

विशेषताएँ

  • ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर दस्तक देने ज़रूर आते हैं।
  • दरगाह में अंदर सफ़ेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाज़ा और 2 अकबरकालीन देग हैं। इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और ग़रीबों में बाँटा जाता है।
  • ख़्वाजा साहब की पुण्य तिथि पर प्रतिवर्ष रज्जब के पहले दिन से छठे दिन तक यहाँ उर्स का आयोजन किया जाता हैं।
  • दरगाह का मुख्य धरातल सफ़ेद संगमरमर का बना हुआ है। इसके ऊपर एक आकर्षक गुम्बद हैं, जिस पर सुनहरा कलश हैं।
  • मज़ार पर मखमल की गिलाफ़ चढी हुई हैं। इसके चारों ओर परिक्रमा के स्थान पर चांदी के कटघरे बने हुए हैं।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 अजमेर की दरगाह शरीफ़ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 2 अप्रॅल, 2012।

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