अनन्तनाथ: Difference between revisions

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*जैनियों के मतानुसार भगवान अनन्तनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 50 थी, जिनमें जस स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
*जैनियों के मतानुसार भगवान अनन्तनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 50 थी, जिनमें जस स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
*अनन्तनाथ जी ने अयोध्या में वैशाख कृष्ण पक्ष [[चतुर्दशी]] को दीक्षा प्राप्त की थी।
*अनन्तनाथ जी ने अयोध्या में वैशाख कृष्ण पक्ष [[चतुर्दशी]] को दीक्षा प्राप्त की थी।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात तीन वर्ष तक कठोर तप करने के बाद अयोध्या में ही [[अशोक वृक्ष]] के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन वर्ष तक कठोर तप करने के बाद अयोध्या में ही [[अशोक वृक्ष]] के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई।
*अनन्तनाथ जी ने जीवनभर [[सत्य]] और [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] के नियमों का पालन किया और मानव समाज को सत्य के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
*अनन्तनाथ जी ने जीवनभर [[सत्य]] और [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] के नियमों का पालन किया और मानव समाज को सत्य के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
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*चैत्र माह के शुक्ल पक्ष पंचमी को भगवान अनन्तनाथ ने [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Anantnath|title=श्री अनन्तनाथ जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>

Revision as of 07:41, 23 June 2017

अनन्तनाथ को जैन धर्म के चौदहवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। अनन्तनाथ जी का जन्म भारत की पतित्र पुरियों में से एक अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा सिंहसेन की पत्नी सुयशा देवी के गर्भ से वैशाख के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रेवती नक्षत्र में हुआ था।

  • अनन्तनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण और इनका चिह्न बाज था।
  • इनके यक्ष का नाम पाताल और यक्षिणी का नाम अंकुशा देवी माना गया है।
  • जैनियों के मतानुसार भगवान अनन्तनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 50 थी, जिनमें जस स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • अनन्तनाथ जी ने अयोध्या में वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को दीक्षा प्राप्त की थी।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन वर्ष तक कठोर तप करने के बाद अयोध्या में ही अशोक वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
  • अनन्तनाथ जी ने जीवनभर सत्य और अहिंसा के नियमों का पालन किया और मानव समाज को सत्य के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
  • चैत्र माह के शुक्ल पक्ष पंचमी को भगवान अनन्तनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री अनन्तनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

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