बलराम: Difference between revisions

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*जब [[कंस]] ने [[देवकी]]-[[वसुदेव]] के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। [[योगमाया]] ने उन्हें आकर्षित करके [[नन्द]] बाबा के यहाँ निवास कर रही श्री [[रोहिणी]] जी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिये उनका एक नाम '''संकर्षण''' पड़ा।  
*जब [[कंस]] ने [[देवकी]]-[[वसुदेव]] के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। [[योगमाया]] ने उन्हें आकर्षित करके [[नन्द]] बाबा के यहाँ निवास कर रही श्री [[रोहिणी]] जी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिये उनका एक नाम '''संकर्षण''' पड़ा।  
*बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें '''बलभद्र''' भी कहा जाता है। बलराम जी साक्षात '''शेषावतार''' थे। बलराम जी बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्री [[कृष्ण]] उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे।  
*बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें '''बलभद्र''' भी कहा जाता है। बलराम जी साक्षात '''शेषावतार''' थे। बलराम जी बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्री [[कृष्ण]] उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे।  

Revision as of 05:24, 4 September 2010

[[चित्र:Krishna-Balarama.jpg|thumb|कृष्ण-बलराम]]

  • जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहाँ निवास कर रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिये उनका एक नाम संकर्षण पड़ा।
  • बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलराम जी साक्षात शेषावतार थे। बलराम जी बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्री कृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे।
  • ब्रजलीला में शंखचूड़ का वध करके श्रीकृष्ण ने उसका शिरोरत्न बलराम भैया को उपहार स्वरूप प्रदान किया।
  • कंस की मल्लशाला में श्रीकृष्ण ने चाणूर को पछाड़ा तो मुष्टिक बलरामजी के मुष्टिक प्रहार से स्वर्ग सिधारा।
  • जरासन्ध को बलराम जी ही अपने योग्य प्रतिद्वन्द्वी जान पड़े। यदि श्रीकृष्ण ने मना न किया होता तो बलराम जी प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते।
  • बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था।
  • महाभारत युद्ध में बलराम तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिये चले गये।
  • यदुवंश के उपसंहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया।
  • श्रीमद्भागवत की कथाएँ शेषावतार बलरामजी के शौर्य की सुन्दर साक्षी हैं।

बलराम जी का मन्दिर

  • श्री दाऊजी या बलराम जी का मन्दिर मथुरा से 21 कि.मी. दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है।
  • श्री दाऊजी की मूर्ति देवालय में पूर्वाभिमुख 2 फुट ऊँचे संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित है।
  • पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र श्री वज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में तथा उनके उपासना क्रम को संस्थापित करने हेतु 4 देव विग्रह तथा 4 देवियों की मूर्तियाँ निर्माण कर स्थापित की थीं जिनमें से श्री बलदेव जी का यही विग्रह है जो कि द्वापर युग के बाद कालक्षेप से भूमिस्थ हो गया था।
  • पुरातत्ववेत्ताओं का मत है यह मूर्ति पूर्व कुषाण कालीन है जिसका निर्माण काल 2 सहस्र या इससे अधिक होना चाहिये।

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