अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:17, 30 June 2017
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥ |
- भावार्थ
जिन्होंने (विष्णु रूप से) अत्यंत बलवान मधु और कैटभ (दैत्य) मारे और (वराह और नृसिंह रूप से) महान् शूरवीर दिति के पुत्रों (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) का संहार किया; जिन्होंने (वामन रूप से) बलि को बाँधा और (परशुराम रूप से) सहस्रबाहु को मारा, वे ही (भगवान) पृथ्वी का भार हरण करने के लिए (राम रूप में) अवतीर्ण (प्रकट) हुए हैं!
left|30px|link=नाथ बयरु कीजे ताही सों|पीछे जाएँ | अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे | right|30px|link=तासु बिरोध न कीजिअ नाथा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख