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प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम 'संवत्सर' है। दूसरा 'परिवत्सर', तीसरा 'इद्वत्सर', चौथा 'अनुवत्सर' और पांचवा 'युगवत्सर'  है। इनके पृथक-पृथक देवता होते हैं, जैसे संवत्सर के [[अग्निदेव|देवता अग्नि]] माने गए हैं ।
प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम 'संवत्सर' है। दूसरा 'परिवत्सर', तीसरा 'इद्वत्सर', चौथा 'अनुवत्सर' और पांचवा 'युगवत्सर'  है। इनके पृथक-पृथक् देवता होते हैं, जैसे संवत्सर के [[अग्निदेव|देवता अग्नि]] माने गए हैं ।


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Revision as of 13:27, 1 August 2017

युग हिन्दू सभ्यता के अनुसार, एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि है। भारतीय ज्योतिष और पुराणों की परंपरा के आधार पर सृष्टि के संपूर्ण काल को चार भागों में बांटा गया है-

  1. सत युग
  2. त्रेता युग
  3. द्वापर युग
  4. कलि युग

इस काल विभाजन को कुछ लोग जीवन की स्थितियों की लाक्षणिक अभिव्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार सोता हुआ कलि है, जम्हाई लेता हुआ द्वापर, उठता हुआ त्रेता और चलता हुआ सतयुग है। प्राचीन काल में युगों के अतिरिक्त काल का विभाजन युग, मन्वंतर और कल्प के क्रम से भी होता रहा है।

सत युग

चार प्रसिद्ध युगों में सतयुग पहला है। इसे कृतयुग भी कहते हैं। इसका आरंभ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसका परिमाण 17,28,000 वर्ष है। इस युग में भगवान के मत्स्य अवतार , कूर्म अवतार, वराह अवतार और नृसिंह अवतार ये चार अवतार हुए थे। उस समय पुण्य ही पुण्य था, पाप का नाम भी न था। कुरुक्षेत्र मुख्य तीर्थ था। लोग अति दीर्घ आयु वाले होते थे। ज्ञान-ध्यान और तप का प्राधान्य था। बलि, मांधाता, पुरूरवा, धुन्धमारिक और कार्तवीर्य ये सत्ययुग के चक्रवर्ती राजा थे। महाभारत के अनुसार कलि युग के बाद कल्कि अवतार द्वारा पुन: सत्ययुग की स्थापना होगी।

त्रेता युग

दूसरे युग त्रेता की अवधि बारह लाख छियानवे हज़ार वर्ष मानी जाती है। इस युग का आरंभ कार्तिक शुक्ल नौमी से होता है। मनु और सतरूपा के दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद इसी युग में हुए। ये पृथ्वी के सर्वप्रथम राजा थे। श्रीराम और परशुराम ने इसी युग में अवतार लिया। इस युग में पुण्य अधिक होता है। मनुष्य की आयु अधिक होती है।

द्वापर युग

यह चार युगों में तीसरा युग है। इसका आरंभ भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी से होता है। इसकी अवधि पुराणों में आठ लाख चौसठ हज़ार वर्ष मानी गई है। यह युद्ध प्रधान युग है और इसके लगते ही धर्म का क्षय आरंभ हो जाता है। भगवान कृष्ण ने इसी युग में अवतार लिया था।

कलि युग

आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3109 ई. पू. में हुआ था और उसके अंत के साथ ही कलयुग का आरंभ हो गया। इसे कलियुग भी कहते हैं। कुछ विद्वान् कलियुग का आरंभ महाभारत युद्व के 625 वर्ष पहले से मानते हैं। फिर भी सामान्यत: यही विश्वास किया जाता है कि महाभारत युद्ध के अंत, श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण और पांडवों के हिमालय में गलने के लिए जाने के साथ ही कलियुग का आरंभ हो गया। इस युग के प्रथम राजा परीक्षित हुए। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3109 ई. पू. में हुआ था और उसके अंत के साथ ही कलियुग का आरंभ हो गया।

बारह युग

बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं[1]-

  1. प्रजापति
  2. धाता
  3. वृष
  4. व्यय
  5. खर
  6. दुर्मुख
  7. प्लव
  8. पराभव
  9. रोधकृत
  10. अनल
  11. दुर्मति
  12. क्षय


प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम 'संवत्सर' है। दूसरा 'परिवत्सर', तीसरा 'इद्वत्सर', चौथा 'अनुवत्सर' और पांचवा 'युगवत्सर' है। इनके पृथक-पृथक् देवता होते हैं, जैसे संवत्सर के देवता अग्नि माने गए हैं ।


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संबंधित लेख

  1. काल का मान (हिन्दी) शास्त्रज्ञान। अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2016।