श्वेताम्बर: Difference between revisions

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*दिगम्बर मान्यता के अनुसार [[उज्जैन]] में [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के राज्यकाल में [[भद्रबाहु|आचार्य भद्रबाहु]] की दुष्काल ([[अकाल]]) संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उनके शिष्य विशाखाचार्य अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गए, कुछ [[साधु]] [[सिंधु नदी|सिंधु]] में विहार कर आये। जब साधु [[उज्जयिनी]] लौटकर आए तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस समय संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढाँकने के लिए साधुओं को अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया; आगे चलकर कुछ साधुओं ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया और यही 'श्वेताम्बर' कहलाए।
*[[मथुरा]] के [[जैन]] [[शिलालेख|शिलालेखों]] से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन की प्रथम [[शताब्दी]] के आसपास एक दूसरे से पृथक हुए। [[गुजरात]] और [[काठियावाड़]] में अधिकतर श्वेताम्बर तथा [[दक्षिण भारत]] और [[उत्तर प्रदेश]] में अधिकतर [[दिगम्बर]] पाए जाते हैं।
*[[मथुरा]] के [[जैन]] [[शिलालेख|शिलालेखों]] से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन की प्रथम [[शताब्दी]] के आसपास एक दूसरे से पृथक् हुए। [[गुजरात]] और [[काठियावाड़]] में अधिकतर श्वेताम्बर तथा [[दक्षिण भारत]] और [[उत्तर प्रदेश]] में अधिकतर [[दिगम्बर]] पाए जाते हैं।
*दिगम्बर आचरण पालन करने में कठोर होते हैं, जबकि श्वेताम्बर उदार।
*दिगम्बर आचरण पालन करने में कठोर होते हैं, जबकि श्वेताम्बर उदार।
*दिगम्बर सम्प्रदाय यह मानता है कि स्त्री शरीर से '[[कैवल्य ज्ञान]]' संभव नहीं है और 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानता।
*दिगम्बर सम्प्रदाय यह मानता है कि स्त्री शरीर से '[[कैवल्य ज्ञान]]' संभव नहीं है और 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानता।

Revision as of 13:29, 1 August 2017

श्वेताम्बर जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। दूसरी शाखा को 'दिगम्बर' कहा जाता है। दिगम्बर जैन आचरण पालन में कठोर होते हैं, जबकि श्वेताम्बर जैन उदार होते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि 'आगम' ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी थी।

  • दिगम्बर मान्यता के अनुसार उज्जैन में चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल में आचार्य भद्रबाहु की दुष्काल (अकाल) संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उनके शिष्य विशाखाचार्य अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गए, कुछ साधु सिंधु में विहार कर आये। जब साधु उज्जयिनी लौटकर आए तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस समय संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढाँकने के लिए साधुओं को अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया; आगे चलकर कुछ साधुओं ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया और यही 'श्वेताम्बर' कहलाए।
  • मथुरा के जैन शिलालेखों से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन की प्रथम शताब्दी के आसपास एक दूसरे से पृथक् हुए। गुजरात और काठियावाड़ में अधिकतर श्वेताम्बर तथा दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश में अधिकतर दिगम्बर पाए जाते हैं।
  • दिगम्बर आचरण पालन करने में कठोर होते हैं, जबकि श्वेताम्बर उदार।
  • दिगम्बर सम्प्रदाय यह मानता है कि स्त्री शरीर से 'कैवल्य ज्ञान' संभव नहीं है और 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानता।
  • श्वेताम्बर ग्यारह अंगों को मुख्य धर्म मानते हैं और दिगम्बर अपने 24 पुराणों को।
  • महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि श्वेताम्बर लोग तीर्थंकरों की मूर्तियों को 'कच्छु' या 'लंगोट' पहनाते हैं, जबकि दिगम्बर लोग नंगी मूर्तियाँ ही रखते हैं।
  • उपरोक्त सभी बातों के अतिरिक्त दोनों सम्प्रदायों में तत्त्व या सिद्धांतों में कोई भेद नहीं पाया जाता है।
  • श्वेताम्बरों के के 45 'आगम' ग्रंथों को दिगम्बर स्वीकार नहीं करते। उनका कथन है कि 'जिन' भगवान द्वारा भाषित आगम काल-दोष से नष्ट हो गए हैं।
  • दिग्म्बरों के अनुसार 'विष्णु', 'नंदी', 'अपराजित', 'गोवर्धन' और 'भद्रबाहु' नामक पाँच 'श्रुतकेवली' हुए थे, जबकि श्वेताम्बर परंपरा में 'प्रभव', 'शय्यंभव', 'यशोभद्र', 'संभूतविजय' और 'भद्रवाहु' श्रुतकेवली माने गए हैं।
  • श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर के निर्वाण के 609 वर्ष बाद (ईसवी सन 83) रथवीपुर में शिवभूति द्वारा 'बोटिक मत' (दिगम्बर) की स्थापना हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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