प्रयोग:कविता बघेल 4: Difference between revisions
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||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई। | ||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई। | ||
{भीमबेटका गुफ़ा के चित्रों की खोज सर्वप्रथम किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-5 | {[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका गुफ़ा]] के चित्रों की खोज सर्वप्रथम किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-5 | ||
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-श्री राय कृष्ण दास | -श्री राय कृष्ण दास | ||
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||विष्ण्य श्रीधर वाकड़कर ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष [[1958]] में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 पर्वत श्रेणियां अवस्थित हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 1365 फ़ीट (410 मी.) से 2000 फ़ीट (600 मी.) तक है। इन्हीं के ऊपर एक ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन स्थापित किया गया था,जहां गत शताब्दी में सर्वेक्षण किए गए थे। इन पर्वत श्रेणियों की शिलाएं बलुआ पत्थर की हैं। | ||विष्ण्य श्रीधर वाकड़कर ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष [[1958]] में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 पर्वत श्रेणियां अवस्थित हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 1365 फ़ीट (410 मी.) से 2000 फ़ीट (600 मी.) तक है। इन्हीं के ऊपर एक ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन स्थापित किया गया था,जहां गत शताब्दी में सर्वेक्षण किए गए थे। इन पर्वत श्रेणियों की शिलाएं बलुआ पत्थर की हैं। | ||
{पाल शैली के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8 | {[[पाल चित्रकला|पाल शैली]] के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8 | ||
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+[[बौद्ध]] | +[[बौद्ध]] | ||
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-रागमाला | -रागमाला | ||
-श्रृंगार | -श्रृंगार | ||
||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र [[बौद्ध धर्म]] एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||
{कौन-सा केंद्र [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21 | {कौन-सा केंद्र [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21 | ||
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-[[ग्वालियर]] | -[[ग्वालियर]] | ||
-[[सतना ज़िला|सतना]] | -[[सतना ज़िला|सतना]] | ||
||[[एम. एफ. हुसैन]] का पूरा नाम मक़बूल फ़िदा हुसैन है। इनका जन्म पंढ़रपुर, [[महाराष्ट्र]] में [[17 सितंबर]], [[1915]] को हुआ था। बचपन में हुसैन की मां का देहांत हो गया। इसके बाद एम. एफ. हुसैन अपने पिता के साथ [[इंदौर]] चले गए, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, आगे की शिक्षा उन्होंने बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में ली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) [[भारत सरकार]] ने एम. एस. हुसैन को [[पद्मश्री |पद्मश्री]], [[पद्म भूषण]] और [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया। (2) इनके द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर' (चित्रकार की दृष्टि से) को बर्लिन उत्सव में दिखाया गया और उसे 'गोल्डन बियर' पुरस्कार प्राप्त हुआ। (3) इनके द्वारा बनाई भारतीय देवी-देवताओं की विवादित पेंटिंग के विरोध की वजह से उन्होंने वर्ष [[2006]] में [[भारत]] छोड़ दिया। (4) वर्ष [[2010]] में उन्हें कतर की नागरिकता प्राप्त हो गयी। वर्ष [[2011]] में इनकी मृत्यु [[लंदन]] में हो गई। (5) [[17 सितंबर]], [[2015]] को एम. एफ. हुसैन का 100वां जन्म दिन मनाया गया। | ||[[एम. एफ. हुसैन]] का पूरा नाम मक़बूल फ़िदा हुसैन है। इनका जन्म पंढ़रपुर, [[महाराष्ट्र]] में [[17 सितंबर]], [[1915]] को हुआ था। बचपन में हुसैन की मां का देहांत हो गया। इसके बाद [[एम. एफ. हुसैन]] अपने पिता के साथ [[इंदौर]] चले गए, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, आगे की शिक्षा उन्होंने [[बंबई]] के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में ली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) [[भारत सरकार]] ने एम. एस. हुसैन को [[पद्मश्री |पद्मश्री]], [[पद्म भूषण]] और [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया। (2) इनके द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर' (चित्रकार की दृष्टि से) को बर्लिन उत्सव में दिखाया गया और उसे 'गोल्डन बियर' पुरस्कार प्राप्त हुआ। (3) इनके द्वारा बनाई भारतीय देवी-देवताओं की विवादित पेंटिंग के विरोध की वजह से उन्होंने वर्ष [[2006]] में [[भारत]] छोड़ दिया। (4) वर्ष [[2010]] में उन्हें कतर की नागरिकता प्राप्त हो गयी। वर्ष [[2011]] में इनकी मृत्यु [[लंदन]] में हो गई। (5) [[17 सितंबर]], [[2015]] को एम. एफ. हुसैन का 100वां जन्म दिन मनाया गया। | ||
{सैंड्रो बोत्तिचेल्ली कहाँ | {सैंड्रो बोत्तिचेल्ली कहाँ का प्रसिद्ध कलाकार था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-112,प्रश्न-71 | ||
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-फ्लोरेंस | -फ्लोरेंस | ||
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+[[इटली]] | +[[इटली]] | ||
-स्पेन | -स्पेन | ||
||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में [[इटली]] के चित्रकार सैंड्रो बोत्तिचेल्ली द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। यह कैनवास पर टेम्परा शैली का चित्र है। वर्तमान में यह चित्र इटली के उफीजी गैलरी में सुरक्षित है। | ||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में [[इटली]] के चित्रकार सैंड्रो बोत्तिचेल्ली द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। यह कैनवास पर टेम्परा शैली का चित्र है। वर्तमान में यह चित्र [[इटली]] के उफीजी गैलरी में सुरक्षित है। | ||
{किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1 | {किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1 | ||
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-मिस्किन | -मिस्किन | ||
||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख [[बाबर]] ने अपनी आत्मकथा [[तुजुक-ए-बाबरी]] में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन मुग़लकालीन दरबारी चित्रकार थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मंसूर एवं मनोहर [[जहांगीर]] के दरबार से संबद्ध चित्रकार थे। (2) मिस्किन अकबर कालीन यूरोपीय शैली का चित्रकार था। (3) [[अबुल फ़ज़ल]] ने अपनी पुस्तक '[[आइना-ए-अकबरी|आइने अकबरी]]' में मिस्किन का उल्लेख किया है। | ||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख [[बाबर]] ने अपनी आत्मकथा [[तुजुक-ए-बाबरी]] में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन मुग़लकालीन दरबारी चित्रकार थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मंसूर एवं मनोहर [[जहांगीर]] के दरबार से संबद्ध चित्रकार थे। (2) मिस्किन अकबर कालीन यूरोपीय शैली का चित्रकार था। (3) [[अबुल फ़ज़ल]] ने अपनी पुस्तक '[[आइना-ए-अकबरी|आइने अकबरी]]' में मिस्किन का उल्लेख किया है। | ||
{राष्ट्रीय ललित कला अकादमी 'रबीन्द्र भवन' किस शहर में स्थित है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-91 | {[[ललित कला अकादमी|राष्ट्रीय ललित कला अकादमी]] 'रबीन्द्र भवन' किस शहर में स्थित है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-91 | ||
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-[[मुंबई]] | -[[मुंबई]] | ||
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-[[लखनऊ]] | -[[लखनऊ]] | ||
-[[कलकत्ता|कोलकाता]] | -[[कलकत्ता|कोलकाता]] | ||
||ललित कला अकादमी स्वतंत्र [[भारत]] में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो [[5 अगस्त]], [[1954]] को [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय [[नई दिल्ली]] के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त [[भुवनेश्वर]], [[चेन्नई]], गढ़ी (दिल्ली), [[कलकत्ता|कोलकत्ता]], [[लखनऊ]] एवं [[शिमला]] में क्षेत्रीय कार्यालय है। वर्तमान में डॉ. अशोक वाजपेयी ([[अप्रैल]], [[2008]]-[[दिसंबर]], [[2011]]) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती ([[12 फरवरी]], [[2012]] से) इसके अध्यक्ष हैं। | ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र [[भारत]] में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो [[5 अगस्त]], [[1954]] को [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो [[भारत सरकार]] द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय [[नई दिल्ली]] के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त [[भुवनेश्वर]], [[चेन्नई]], गढ़ी (दिल्ली), [[कलकत्ता|कोलकत्ता]], [[लखनऊ]] एवं [[शिमला]] में क्षेत्रीय कार्यालय है। वर्तमान में डॉ. अशोक वाजपेयी ([[अप्रैल]], [[2008]]-[[दिसंबर]], [[2011]]) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती ([[12 फरवरी]], [[2012]] से) इसके अध्यक्ष हैं। | ||
{[[अजंता]] की चैत्य गुफ़ा क्या थी?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-365 | {[[अजंता]] की चैत्य गुफ़ा क्या थी?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-365 | ||
Line 102: | Line 102: | ||
{[[नील नदी]] की घाटी में कौन-सी सभ्यता पनपी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-18 | {[[नील नदी]] की घाटी में कौन-सी सभ्यता पनपी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-18 | ||
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-सिंधु सभ्यता | -[[सिंधु सभ्यता]] | ||
-चीनी सभ्यता | -चीनी सभ्यता | ||
+मिस्त्र की सभ्यता | +मिस्त्र की सभ्यता | ||
Line 108: | Line 108: | ||
||मिस्त्र की सभ्यता का विकास [[नील नदी]] की द्रोणि में हुआ। नील नदी विश्व की इस प्राचीन सभ्यता का आधार थी। मिस्त्र को 'नील नदी का उपहार' भी कहा जाता है क्योंकि इस नदी के अभाव में यह भू-भाग [[रेगिस्तान]] होता। मिस्त्र [[अफ्रीका महाद्वीप]] में स्थित है। इसकी समकालीन सभ्यताएं सिंधु घाटी सभ्यता ([[भारत]]) तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता (इराक) थी। | ||मिस्त्र की सभ्यता का विकास [[नील नदी]] की द्रोणि में हुआ। नील नदी विश्व की इस प्राचीन सभ्यता का आधार थी। मिस्त्र को 'नील नदी का उपहार' भी कहा जाता है क्योंकि इस नदी के अभाव में यह भू-भाग [[रेगिस्तान]] होता। मिस्त्र [[अफ्रीका महाद्वीप]] में स्थित है। इसकी समकालीन सभ्यताएं सिंधु घाटी सभ्यता ([[भारत]]) तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता (इराक) थी। | ||
{'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में कितनी गुफ़ाएं प्राप्त हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-2 | {'[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]]' नामक पहाड़ी में कितनी गुफ़ाएं प्राप्त हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-2 | ||
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-30 | -30 | ||
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||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। | ||भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार [[मध्य प्रदेश]] में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफ़ाएं प्राप्त हुई हैं। इन गुफ़ाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफ़ाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बने चित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है। | ||
{पाल पोथी चित्रों का विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-5 | {पाल पोथी चित्रों का विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-5 | ||
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+[[बुद्ध]] का जीवन चरित | +[[बुद्ध]] का जीवन चरित | ||
-[[चैतन्य महाप्रभु]] का जीवन चरित | -[[चैतन्य महाप्रभु]] का जीवन चरित | ||
||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||पाल शैली एक प्रमुख [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों [[धर्मपाल]] और [[देवपाल]] के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला '[[पाल चित्रकला|पाल शैली]]' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं। (2) पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, [[महात्मा बुद्ध]] के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा [[जातक कथा|जातक कथाओं]] से संबंधित हैं। (3) धर्मपाल ने [[गंगा]] के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया। (4) महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ। (5) इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं। (6) स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं। इन चित्रों की शैली में [[अजंता]] की परंपरा विद्यमान है। (7) इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण महात्मा बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है। (8) पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करन देवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'। | ||
{[[राजस्थानी चित्रकला]] किस अवधि में विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-17 | {[[राजस्थानी चित्रकला]] किस अवधि में विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-17 | ||
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-11वीं-12वीं शताब्दी | -11वीं-12वीं शताब्दी | ||
-16वीं शताब्दी | -16वीं शताब्दी | ||
||[[राजपूत चित्रकला|राजपूत शैली]] को '[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]] और हिंदू शैली' के नाम से भी जाना जाता है। 16वीं शताब्दी की [[चित्रकला]] और साहित्य पर [[वैष्णव संप्रदाय]] का गहरा प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन के कारण राजस्थानी कला में काव्य की अत्यधिक नवीन सुमधुर कल्पना, भावुकता और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कार्ल खंडालवाला ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग माना है। (2) 17वीं शताब्दी में राजपूत चित्रकला (राजस्थानी चित्रकला) नवीन दिशा में अग्रसर हुई। (3) 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस शैली के चित्रों में भाव-चित्रण की निर्जीविता आने लगी। | ||[[राजपूत चित्रकला|राजपूत शैली]] को '[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]] और हिंदू शैली' के नाम से भी जाना जाता है। 16वीं शताब्दी की [[चित्रकला]] और साहित्य पर [[वैष्णव संप्रदाय]] का गहरा प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन के कारण [[राजस्थानी कला]] में काव्य की अत्यधिक नवीन सुमधुर कल्पना, भावुकता और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कार्ल खंडालवाला ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग माना है। (2) 17वीं शताब्दी में राजपूत चित्रकला (राजस्थानी चित्रकला) नवीन दिशा में अग्रसर हुई। (3) 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस शैली के चित्रों में भाव-चित्रण की निर्जीविता आने लगी। | ||
{[[मुग़ल चित्रकला]] किस [[मुग़ल]] के समय में विकसित हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-17 | {[[मुग़ल चित्रकला]] किस [[मुग़ल]] के समय में विकसित हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-17 | ||
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-[[हुमायूं]] | -[[हुमायूं]] | ||
||[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सल्तनत]] का संस्थापक [[बाबर]] [[कला]] प्रेमी था। कला की अभिरुचि [[हुमायूं]] को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। [[अकबर]] ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि [[ईरान]] तथा [[यूरोप]] तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र [[जहांगीर]] ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र [[शाहजहां]] ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही। | ||[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सल्तनत]] का संस्थापक [[बाबर]] [[कला]] प्रेमी था। कला की अभिरुचि [[हुमायूं]] को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। [[अकबर]] ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि [[ईरान]] तथा [[यूरोप]] तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र [[जहांगीर]] ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र [[शाहजहां]] ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही। | ||
{महाराजा संसारचंद किस शैली की चित्रकला के महान संरक्षक थे?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-6 | {महाराजा संसारचंद किस शैली की चित्रकला के महान संरक्षक थे?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-6 | ||
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-मुकुल डे | -मुकुल डे | ||
||रथिन मित्रा कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार थे जबकि विकल्पों में दिए गए अन्य बंगाल शैली के कलाकार हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार हैं- नीरोद मज़ूमदार, शुभो टैगोर, गोपाल धोष, परितोष सेन, रथिन मित्रा, प्राण कृष्ण पाल, प्रदोष दासगुप्ता और कमला दासगुप्ता आदि। (2) [[कलकत्ता]] के आठ कलाकारों ने मिलकर लगभग वर्ष [[1942]]-[[1943]] में कलकत्ता ग्रुप की स्थापना की। (3) इस ग्रुप के कलाकारों ने बंगाल शैली की 'नास्टेल्जिक' भावुकता से मुक्त होने की कोशिश की और एक नई विचारधारा का प्रचार किया तथा इसमें पूर्व-पश्चिम का संश्लेषण किया। | ||रथिन मित्रा कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार थे जबकि विकल्पों में दिए गए अन्य बंगाल शैली के कलाकार हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार हैं- नीरोद मज़ूमदार, शुभो टैगोर, गोपाल धोष, परितोष सेन, रथिन मित्रा, प्राण कृष्ण पाल, प्रदोष दासगुप्ता और कमला दासगुप्ता आदि। (2) [[कलकत्ता]] के आठ कलाकारों ने मिलकर लगभग वर्ष [[1942]]-[[1943]] में कलकत्ता ग्रुप की स्थापना की। (3) इस ग्रुप के कलाकारों ने बंगाल शैली की 'नास्टेल्जिक' भावुकता से मुक्त होने की कोशिश की और एक नई विचारधारा का प्रचार किया तथा इसमें पूर्व-पश्चिम का संश्लेषण किया। | ||
Revision as of 11:12, 17 January 2018
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