सुभाष चंद्र बोस जयंती: Difference between revisions

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नेताजी ने उन्हें रोकते हुए कहा- "इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं। वही आगे बढ़े, जिसकी रगों में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिन्हें अपने प्राणों का मोह न हो, और जो आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हो़ं।"
नेताजी ने उन्हें रोकते हुए कहा- "इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं। वही आगे बढ़े, जिसकी रगों में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिन्हें अपने प्राणों का मोह न हो, और जो आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हों।"


नेताजी की बात सुनकर सबसे पहले सत्रह भारतीय युवतियाँ आगे आईं और अपनी कमर पर लटकी छुरियाँ निकाल कर, झट से अपनी उंगलियों पर छुरियाँ चलाकर अपने [[रक्त]] से प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने लगीं। महिलाओं के लिए 'रानी झांसी रेजिमेंट' का गठन किया गया, जिसकी कैप्टन बनी [[लक्ष्मी सहगल]]।
नेताजी की बात सुनकर सबसे पहले सत्रह भारतीय युवतियाँ आगे आईं और अपनी कमर पर लटकी छुरियाँ निकाल कर, झट से अपनी उंगलियों पर छुरियाँ चलाकर अपने [[रक्त]] से प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने लगीं। महिलाओं के लिए 'रानी झांसी रेजिमेंट' का गठन किया गया, जिसकी कैप्टन बनीं [[लक्ष्मी सहगल]]।
==बोस का राष्ट्रभाषा प्रेम==
==बोस का राष्ट्रभाषा प्रेम==
सुभाष बाबू [[हिन्दी]] पढ़ लिख सकते थे, बोल सकते थे, पर वह इसमें बराबर हिचकते और कमी महसूस करते थे। वह चाहते थे कि हिन्दी में वह हिन्दी भाषी लोगों की तरह ही सब काम कर सकें। एक दिन उन्होंने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा- "यदि देश में जनता के साथ राजनीति करनी है, तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है। [[बंगाल]] के बाहर मैं जनता में जाऊं तो किस [[भाषा]] में बोलूं। इसलिए [[काँग्रेस]] का सभापति बनकर मैं हिन्दी खूब अच्छी तरह न जानूं तो काम नहीं चलेगा। मुझे एक मास्टर दीजिए, जो मेरे साथ रहे और मेरा हिन्दी का सारा काम कर दे। इसके साथ ही जब मैं चाहूं और मुझे समय मिले, तब मैं उससे हिन्दी सीखता रहूँ।"
सुभाष बाबू [[हिन्दी]] पढ़ लिख सकते थे, बोल सकते थे, पर वह इसमें बराबर हिचकते और कमी महसूस करते थे। वह चाहते थे कि हिन्दी में वह हिन्दी भाषी लोगों की तरह ही सब काम कर सकें। एक दिन उन्होंने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा- "यदि देश में जनता के साथ राजनीति करनी है, तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है। [[बंगाल]] के बाहर मैं जनता में जाऊं तो किस [[भाषा]] में बोलूं। इसलिए [[काँग्रेस]] का सभापति बनकर मैं हिन्दी खूब अच्छी तरह न जानूं तो काम नहीं चलेगा। मुझे एक मास्टर दीजिए, जो मेरे साथ रहे और मेरा हिन्दी का सारा काम कर दे। इसके साथ ही जब मैं चाहूं और मुझे समय मिले, तब मैं उससे हिन्दी सीखता रहूँ।"


श्री जगदीशनारायण तिवारी को, जो मूक काँग्रेस कर्मी थे और हिन्दी के अच्छे शिक्षक थे, सुभाष बाबू के साथ रखा गया। हरिपुरा काँग्रेस में तथा सभापति के दौरे के समय वह बराबर सुभाष बाबू के साथ रहे। सुभाष बाबू ने बड़ी लगन से हिन्दी सीखी और वह सचमुच बहुत अच्छी हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने लगे। '[[आज़ाद हिंद फ़ौज]]' का काम और सुभाष बाबू के वक्तव्य प्राय: हिन्दी में होते थे। सुभाष बाबू भविष्यदृष्टा थे, जानते थे कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह खड़ा नहीं रह सकता।'
श्री जगदीश नारायण तिवारी को, जो मूक काँग्रेस कर्मी थे और हिन्दी के अच्छे शिक्षक थे, सुभाष बाबू के साथ रखा गया। हरिपुरा काँग्रेस में तथा सभापति के दौरे के समय वह बराबर सुभाष बाबू के साथ रहे। सुभाष बाबू ने बड़ी लगन से हिन्दी सीखी और वह सचमुच बहुत अच्छी हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने लगे। '[[आज़ाद हिंद फ़ौज]]' का काम और सुभाष बाबू के वक्तव्य प्राय: हिन्दी में होते थे। सुभाष बाबू भविष्यदृष्टा थे, जानते थे कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह खड़ा नहीं रह सकता।'


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Revision as of 06:00, 23 January 2018

सुभाष चंद्र बोस जयंती
विवरण सुभाष चंद्र बोस जयंती सुभाष चंद्र बोस के जन्म दिवस के दिन 23 जनवरी को मनायी जाती है।
जन्म तिथि 23 जनवरी, 1897
पुण्य तिथि 18 अगस्त, 1945
अन्य जानकारी सुभाष चंद्र बोस प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे।

सुभाष चंद्र बोस जयंती सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस के दिन 23 जनवरी को मनायी जाती है। भारत की स्वतंत्रता के लिए सुभाष चंद्र बोस ने क़रीब-क़रीब पूरे यूरोप में अलख जगाया। बोस प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे।

सुभाष चंद्र बोस

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

सुभाष चंद्र बोस (जन्म-23 जनवरी, 1897, कटक, उड़ीसा; मृत्यु-18 अगस्त, 1945, भारत) के अतिरिक्त हमारे देश के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ जो एक साथ महान् सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीतिज्ञ तथा चर्चा करने वाला हो।

नेताजी का ऐतिहासिक भाषण

रंगून के 'जुबली हॉल' में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया, जिसमें उन्होंने कहा था-

"स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियो! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।' खून भी एक दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूँ।"

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"

जब भारत स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था और नेताजी आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए सक्रिय थे। तब आज़ाद हिंद फ़ौज में भरती होने आए सभी युवक-युवतियों को संबोधित करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा- "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।"[1]


'हम अपना खून देने को तैयार हैं', सभा में बैठे हज़ारों लोग हामी भरते हुए प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने उमड़ पड़े।


नेताजी ने उन्हें रोकते हुए कहा- "इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं। वही आगे बढ़े, जिसकी रगों में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिन्हें अपने प्राणों का मोह न हो, और जो आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हों।"

नेताजी की बात सुनकर सबसे पहले सत्रह भारतीय युवतियाँ आगे आईं और अपनी कमर पर लटकी छुरियाँ निकाल कर, झट से अपनी उंगलियों पर छुरियाँ चलाकर अपने रक्त से प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने लगीं। महिलाओं के लिए 'रानी झांसी रेजिमेंट' का गठन किया गया, जिसकी कैप्टन बनीं लक्ष्मी सहगल

बोस का राष्ट्रभाषा प्रेम

सुभाष बाबू हिन्दी पढ़ लिख सकते थे, बोल सकते थे, पर वह इसमें बराबर हिचकते और कमी महसूस करते थे। वह चाहते थे कि हिन्दी में वह हिन्दी भाषी लोगों की तरह ही सब काम कर सकें। एक दिन उन्होंने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा- "यदि देश में जनता के साथ राजनीति करनी है, तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है। बंगाल के बाहर मैं जनता में जाऊं तो किस भाषा में बोलूं। इसलिए काँग्रेस का सभापति बनकर मैं हिन्दी खूब अच्छी तरह न जानूं तो काम नहीं चलेगा। मुझे एक मास्टर दीजिए, जो मेरे साथ रहे और मेरा हिन्दी का सारा काम कर दे। इसके साथ ही जब मैं चाहूं और मुझे समय मिले, तब मैं उससे हिन्दी सीखता रहूँ।"

श्री जगदीश नारायण तिवारी को, जो मूक काँग्रेस कर्मी थे और हिन्दी के अच्छे शिक्षक थे, सुभाष बाबू के साथ रखा गया। हरिपुरा काँग्रेस में तथा सभापति के दौरे के समय वह बराबर सुभाष बाबू के साथ रहे। सुभाष बाबू ने बड़ी लगन से हिन्दी सीखी और वह सचमुच बहुत अच्छी हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने लगे। 'आज़ाद हिंद फ़ौज' का काम और सुभाष बाबू के वक्तव्य प्राय: हिन्दी में होते थे। सुभाष बाबू भविष्यदृष्टा थे, जानते थे कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह खड़ा नहीं रह सकता।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

  1. सुभाष चंद्र बोस जयंती, 23 जनवरी (हिंदी) bharatdarshan.co.nz। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।