आर्यभटीय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''आर्यभटीय''' (अंग्रेज़ी: ''Aryabhatiya'') नामक ग्रन्थ की रचना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Aryabhatiya-of-Aryabhata.jpg|thumb|आर्यभटीय ग्रंथ]]
'''आर्यभटीय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Aryabhatiya'') नामक ग्रन्थ की रचना महान गणितज्ञ [[आर्यभट]] ने की थी। यह [[संस्कृत]] भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में 121 [[श्लोक]] हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है।
'''आर्यभटीय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Aryabhatiya'') नामक ग्रन्थ की रचना महान गणितज्ञ [[आर्यभट]] ने की थी। यह [[संस्कृत]] भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में 121 [[श्लोक]] हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है।
==रचना काल==
==रचना काल==
Line 20: Line 21:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://archive.org/details/1874HKERNTheAryabhatiyaOfAryabhattaAryabhataIndianMathematicianAstronomerMathematics 1874 HKERN The Aryabhatiya of Aryabhata (Aryabhattiya of Aryabhatta) Indian Mathematician Astronomer Mathematics]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{संस्कृत साहित्य2}}
{{संस्कृत साहित्य2}}

Revision as of 11:36, 18 March 2018

thumb|आर्यभटीय ग्रंथ आर्यभटीय (अंग्रेज़ी: Aryabhatiya) नामक ग्रन्थ की रचना महान गणितज्ञ आर्यभट ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में 121 श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है।

रचना काल

आर्यभट ने अपने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना 499 ई. में की। इस छोटे-से ग्रंथ में उन्होंने गणित और ज्योतिष की प्रमुख बातें रखीं। इस ग्रंथ में हम पहली बार देखते हैं कि भारतीय विज्ञान ने धर्म से अपने को स्वतंत्र कर लिया है। आर्यभट ने यूनानियों का अनुकरण करते हुए, वर्णमाला के आधार पर एक नई अक्षरांक-पद्धति को जन्म दिया। उनकी मान्यता थी कि पृथ्वी स्थिर नहीं है, बल्कि यह अपने अक्ष पर घूमती है। किंतु बाद के भारतीय ज्योतिषियों ने उनके इस सिद्धांत की उपेक्षा की। आर्यभट ने यह भी कहा था कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण किसी राहु-केतु (राक्षसों) के कारण नहीं, बल्कि चंद्र और पृथ्वी की छायाओं के कारण घटित होते हैं। त्रिकोणमिति में आज भी आर्यभट की मूल विधियों का इस्तेमाल होती हैं।[1]

आर्यभटीय के खण्ड

आर्यभटीय प्राचीन भारत की एक महत्‍वपूर्ण संरक्षित कृति है। आर्यभट ने इसे पद्यबद्ध संस्‍कृत के श्‍लोकों के रूप में लिखा है। संस्‍कृत भाषा में रचित इस पुस्‍तक में गणित एवं खगोल विज्ञान से सम्‍बंधित क्रान्तिकारी सूत्र दिये। पुस्‍तक में कुल 121 श्‍लोक या बंध हैं। इनको चार पाद (खण्‍डों) में बाँटा गया है। इन खण्‍डों के नाम हैं: गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद एवं गोलपाद।

1. गीतिकापाद

आर्यभटीय के चारों खंडों में यह सबसे छोटा भाग है। इसमें कुल 13 श्‍लोक हैं। इस खण्‍ड का पहला श्‍लोक मंगलाचरण है। यह (तथा इस खण्‍ड के 9 अन्‍य श्‍लोक) गीतिका छंद में है। इसीलिए इस खण्‍ड को गीतिकापाद कहा गया है। इस खण्‍ड में ज्‍योतिष के महत्‍वपूर्ण सिद्धाँतों की जानकारी दी गयी है। इस खण्‍ड में संस्कृत अक्षरों के द्वारा संख्याएँ लिखने की एक ‘अक्षराँक पद्धति’ के बारे में भी जानकारी दी गयी है।

अक्षराँक पद्धति अक्षरों के द्वारा बड़ी संख्‍याओं को लिखने की एक अासान तकनीक है। इस पद्धति में आर्यभट ने '' से लेकर '' तक के अक्षरों को 1 से लेकर 1,00,00,00,00,00,00,00 तक शतगुणोत्‍तर मान, से तक के सभी अक्षरों को 1 से लेकर 25 संख्‍याओं के मान तथा से लेकर तक के व्‍यंजनों को 30, 40, 50 के क्रम में 100 तक के मान दिये। इस प्रकार उन्‍होंने छोटे शब्‍दों के द्वारा बड़ी संख्‍याओं को लिखने का एक आसान तरीका विकसित किया।

2. गणितपाद

इस खण्‍ड में गणित की चर्चा की गयी है। इसमें कुल 33 श्‍लोक हैं। यह खण्‍ड अंकगणित, बीजगणित एवं रेखागणित से सम्‍बंधित है, जिसके अन्‍तर्गत वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, वृत्त का क्षेत्रफल, विषम चतुर्भुज का क्षेत्रफल, प्रिज्म का आयतन, गोले का आयतन, वृत्त की परिधि, एक समकोण त्रिभुज का बाहु, कोटि आदि की चर्चा की गयी है।

3. कालक्रियापाद

कालक्रियापाद का अर्थ है काल गणना। इस खण्‍ड में 25 श्‍लोक हैं। यह खण्‍ड खगोल विज्ञान पर केन्द्रित है। इसमें काल एवं वृत्त का विभाजन, सौर वर्ष, चंद्र मास, नक्षत्र दिवस, अंतर्वेशी मास, ग्रहीय प्रणालियाँ एवं गतियों का वर्णन है।

4. गोलपाद

यह आर्यभटीय का सबसे वृहद एवं महत्‍वपूर्ण खण्‍ड है। इस खण्‍ड में कुल 50 श्‍लोक हैं। इस खण्‍ड के अन्‍तर्गत एक खगोलीय गोले में ग्रहीय गतियों के निरूपण की विधि समझाई गयी है। आर्यभट की खगोल विज्ञान सम्‍बंधी सभी प्रमुख धारणाओं का वर्णन भी इसी खण्‍ड में मिलता है।

आर्यभट जोर देकर कहते हैं कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र है और अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। वस्तुतः आर्यभट पहले भारतीय खगोल विज्ञानी थे जिन्होंने स्थिर तारों की दैनिक आभासी गति की व्याख्या करने के लिए पृथ्वी की घूर्णी गति का विचार सामने रखा। परंतु उनके इस विचार को न तो उनके समकालीनों ने मान्यता प्रदान की न ही उनके बाद के खगोल विज्ञानियों ने। यह अनपेक्षित भी नहीं था, क्योंकि उन दिनों आम मान्यता यह थी कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और यह स्थिर भी रहती है।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- भारत: इतिहास, संस्कृति और विज्ञान |लेखक- गुणाकर मुले |प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली | पृष्ठ संख्या- 158
  2. आर्यभटीय: दुनिया को गण‍ित एवं खगोल विज्ञान का पाठ पढ़ाने वाली महान कृति (हिंदी) सांईटिफिक वर्ल्ड। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख