कच्चा नील: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''कच्चा नील''' - संज्ञा पुल्लिंग (हिन्दी कच्चा+नी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
'''कच्चा नील''' - [[संज्ञा]] [[पुल्लिंग]] ([[हिन्दी]] कच्चा+नील)<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक= श्यामसुंदरदास बी. ए.|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=नागरी मुद्रण, वाराणसी |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=741|url=|ISBN=}}</ref>
'''कच्चा नील''' - [[संज्ञा]] [[पुल्लिंग]] ([[हिन्दी]] कच्चा+नील)<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक= श्यामसुंदरदास बी. ए.|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=नागरी मुद्रण, वाराणसी |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=741|url=|ISBN=}}</ref>


एक प्रकार का नील। नीलबरी।
*एक प्रकार का नील।  
*नीलबरी।


विशेष- कारखाने में मथाई के बाद हौज में परास का गोंद मिलाकर छोड़ दिया जाता है। जब वह नीचे जम जाता है, तब ऊपर का पानी हौज के किनारे के छेद से निकाल दिया जाता है। पानी के निकल जाने पर नीचे के गड्डे में नील के जमे हुए माँठ या कीचड़ को कपड़े में बाँधकर रातभर लटकाते हैं। सबेरे उसे खोलकर राख पर [[धूप]] में फैला देते हैं। सूखने पर इसी को कच्चा नील या नीलबरी कहते हैं। इसमें पक्के नील से कम मेहनत लगती है। इसी से यह सस्ता बिकता है।
'''विशेष''' - कारखाने में मथाई के बाद हौज में परास का गोंद मिलाकर छोड़ दिया जाता है। जब वह नीचे जम जाता है, तब ऊपर का [[पानी]] हौज के किनारे के छेद से निकाल दिया जाता है। पानी के निकल जाने पर नीचे के गड्ढ़े में नील के जमे हुए माँठ या कीचड़ को कपड़े में बाँधकर [[रात]] भर लटकाते हैं। सवेरे उसे खोलकर राख पर [[धूप]] में फैला देते हैं। सूखने पर इसी को '''कच्चा नील''' या '''नीलबरी''' कहते हैं। इसमें पक्के नील से कम मेहनत लगती है। इसी से यह सस्ता बिकता है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 05:50, 8 November 2021

कच्चा नील - संज्ञा पुल्लिंग (हिन्दी कच्चा+नील)[1]

  • एक प्रकार का नील।
  • नीलबरी।

विशेष - कारखाने में मथाई के बाद हौज में परास का गोंद मिलाकर छोड़ दिया जाता है। जब वह नीचे जम जाता है, तब ऊपर का पानी हौज के किनारे के छेद से निकाल दिया जाता है। पानी के निकल जाने पर नीचे के गड्ढ़े में नील के जमे हुए माँठ या कीचड़ को कपड़े में बाँधकर रात भर लटकाते हैं। सवेरे उसे खोलकर राख पर धूप में फैला देते हैं। सूखने पर इसी को कच्चा नील या नीलबरी कहते हैं। इसमें पक्के नील से कम मेहनत लगती है। इसी से यह सस्ता बिकता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 741 |

संबंधित लेख