गुरु हरराय: Difference between revisions
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==अंदरूनी विरोध== | ==अंदरूनी विरोध== | ||
गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा। | गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा। | ||
==राजनीतिक ग़लती== | ==राजनीतिक ग़लती== | ||
मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद करके उन्होंने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की। दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान थे। और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था। | मुग़ल बादशाह [[औरंगज़ेब]] के भाई [[दारा शिकोह]] की विद्रोह में मदद करके उन्होंने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की। दारा शिकोह [[संस्कृत भाषा]] के विद्वान थे। और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था। | ||
हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए उन्हें बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया। | हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए उन्हें बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया। | ||
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राम राय ने बादशाह के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके | राम राय ने बादशाह के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता को क्षमा दिलाने के लिए उन्हें सिक्खों की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र हरिकिशन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ई. में हुई थी। | ||
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गुरु हरराय सिक्खों के सातवें गुरु थे। (जन्म- 1630 ई. पंजाब, मृत्यु- 1661 ई.)। गुरु हरराय अपने पितामह, महान योद्धा गुरु हरगोविंद सिंह के विपरीत थे, गुरु हरराय शांति के समर्थक थे, जो मुग़ल उत्पीड़न का विरोध करने के लिए उपयुक्त नहीं था।
जीवन परिचय
गुरु हरराय का जन्म सन 1630 ई. में पंजाब में हुआ था। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे। गुरु हरराय सिखों के छटे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। जिनका जन्म बाबा गुरुदिता जी के घर माता निहाल कौर की कोख से हुआ था।[1]गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने ज्योति जोत समाने से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को “सप्तम नानक” के रूप में स्थापित किया।[2]गुरू हरराय साहिब जी का विवाह अनूप शहर, उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री किशन कौर जी के साथ सम्वत् 1697 में हुआ था। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र रामराय जी, हरकिशन साहिब जी (गुरू) थे। गुरू हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरू हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया था।[3]गुरु हरराय एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे।[2]
अंदरूनी विरोध
गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा।
राजनीतिक ग़लती
मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद करके उन्होंने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की। दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान थे। और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था। हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए उन्हें बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया।
उत्तराधिकारी
राम राय ने बादशाह के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता को क्षमा दिलाने के लिए उन्हें सिक्खों की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र हरिकिशन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ई. में हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हरराय साहब जी के गुरु गद्दी दिवस (हिन्दी) वर्ल्ड न्यूज। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010।
- ↑ 2.0 2.1 गुरु हरराय (हिन्दी) धर्मचक्र। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010।
- ↑ गुरू हरराय (हिन्दी) रफ़्तार धर्म। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2010।