मराठा संघ

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  • इसका सूत्रपात दूसरे पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.) के शासनकाल में हुआ।
  • एक ओर सेनापति दाभाड़े के नेतृत्व में मराठा क्षत्रिय सरदारों के विरोध तथा दूसरी ओर उत्तर तथा दक्षिण में मराठा साम्राज्य का शीघ्रता से विस्तार होने के कारण पेशवा बाजीराव प्रथम को अपने उन स्वामीभक्त समर्थकों पर अधिक निर्भर रहना पड़ा, जिनकी सैनिक योग्यता युद्ध भूमि में प्रमाणित हो चुकी थी।
  • फलस्वरूप उसने अपने बड़े-बड़े क्षेत्र इन समर्थकों के अधीन कर दिये।
  • उसके समर्थकों में रघूजी भोंसले, रानोजी शिन्दे, मल्हारराव होल्कर तथा दाभाजी गायकवाड़ मुख्य थे।
  • दत्ताजी शिन्दे एक मराठा सेनापति था, जो 1759 ई. में पेशवा बालाजी राव की ओर से पंजाब का शासक था।
  • इन नेताओं ने मिलकर मराठासंघ का निर्माण किया।
  • बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.) तथा उसके पुत्र बालाजी बाजीराव (1740-61 ई.) के शासनकाल में इस संघ पर पेशवा का कड़ा नियंत्रण रहा।
  • फलस्वरूप मराठा सेनाओं ने दिल्ली तथा पंजाब तक विजय यात्राएँ कीं। परंतु 1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई में पेशवा की सेना की ज़बर्दस्त हार तथा उसके बाद ही पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो जाने तथा उसके बाद पेशवाई के लिए होने वाले उत्तराधिकार युद्ध के कारण मराठा संघ के महत्त्वकांक्षी सरदारों पर पेशवा का नियंत्रण ढीला पड़ गया।
  • फलस्वरूप मराठा संघ मराठा राज्य के विघटन का एक प्रमुख कारण बन गया।
  • मराठा संघ के सरदारों के आपसी द्वेष तथा उनकी प्रतिद्वन्द्विता के कारण, विशेषरूप से होल्कर तथा शिन्दे की प्रतिद्वन्द्विता के कारण, उनके लिए संयुक्त होकर कार्य करना असंभव हो गया।
  • यह मराठा साम्राज्य, स्वतंत्रता के ह्रास तथा पतन का मुख्य कारण बना।


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