आमिर ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर

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Template:साँचा:सूचना बक्सा आमिर ख़ान आमिर ख़ान भारतीय फ़िल्म अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, टेलीविज़न हस्ती, सामाजिक कार्यकर्त्ता, चलचित्र लेखक और मानव प्रेमी है। उनके करियर में उन्हें कई सारे पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिसमे चार राष्ट्रिय फ़िल्म पुरस्कार और सात फ़िल्मफेयर अवार्ड भी शामिल है। भारत सरकार की तरफ से उन्हें 2003 में पद्मश्री और 2010 में उन्हें पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया था। मुख्य अभिनेता के तौर पर उन्होंने फ़िल्म 'कयामत से कयामत तक' से शुरूआत की जो कि उस समय की बड़ी हिट फ़िल्मों में से एक है। इसके बाद आमिर ने कई फ़िल्में की जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए पैमाने बनाए।[1]

फ़िल्मी सफर

आमिर ख़ान सबसे पहले एक बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म जगत में आये. और बाद में उनका पहला फ़िल्म अभिनय 1984 की होली फ़िल्म शुरू हुआ था. उन्हें अपने भाई मंसूर खान के साथ फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक (1988) के लिए अपनी पहली कमर्शियल सफलता मिली और इसके लिए उन्हें फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ट मेल नवोदित पुरस्कार भी दिया गया। उस समय उनकी एक और थ्रिलर फ़िल्म राख (1989) ने कई पुरस्कार अपने नाम किये। 1990 के दौर में एक से बढ़कर एक सफल फ़िल्में देकर उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना नाम स्वर्णक्षरो से लिख दिया था। उस समय उनकी सबसे सफल फ़िल्मो में रोमांटिक ड्रामा 'दिल' (1990), रोमांटिक 'राजा हिन्दुस्तानी' (1996), इसके लिए उन्हें फ़िल्मफेयर की तरफ से बेस्ट एक्टर का पुरस्कार भी मिला, और ड्रामा फ़िल्म 'सरफरोश' (1999) भी शामिल है। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने एक कैनेडियन-भारतीय फ़िल्म 'अर्थ' (Earth) (1998) में भी अभिनय किया है।[1]

2001 में, आमिर ख़ान ने एक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की, और अपने प्रोडक्शन में पहली फ़िल्म ‘लगान’ रिलीज़ की। यह फ़िल्म आलोचकों और कमर्शियल लोगो की नज़र से सफल रही और साथ ही इसे सर्वश्रेष्ट विदेशी भाषा फ़िल्म (Best Foreign Language Film) के लिए 74 वे अकादमी पुरस्कार में भारत की अधिकारिक सुची में चुन लिया गया। इस फ़िल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला और ‘लगान’ को साल की सर्वश्रेष्ट फ़िल्म का दर्जा दिया गया। इसके बाद फ़िल्म से 4 सालो तक दूर रहने के बाद इन्होंने प्रेरणादायक भूमिका अदा करना शुरू की और 2005 में केतन मेहता की 'मंगल पांडे' में वे एक सिपाही के रूप में दिखे, और 4 साल के आराम के बाद 2006 में उन्होंने दो सुपरहिट फ़िल्म 'फना' और 'रंग दे बसंती' रिलीज़ की, उसी साल उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुवात एक निर्माता के रूप में भी की और 2007 में 'तारे जमीन पर' का निर्माण किया। जिसे दर्शको की अच्छी प्रतिक्रिया मिली, और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट निर्देशक (Best Director) का भी पुरस्कार मिला। कमर्शियली ख़ान की सबसे सफल फ़िल्मो में 'गजनी' (2008), '3-इडियट्स' (2009), 'धुम-3' (2013), 'पीके' (2014) शामिल है, जिनके रिलीज़ होते ही बॉलीवुड के कई रिकार्ड्स धराशाही हो गये थे।[1]


आमिर ख़ान कुछ प्रसिद्ध डायलोग्स
  • जिंदगी जीने के दो ही तरीके होते है…एक जो हो रहा है होने दो, बरदाश्त करते रहो … या फिर जिम्मेदारी उठाओ उसे बदलने की - फ़िल्म 'रंग दे बसंती'
  • लाढ़ोंगे तो खून बहेगा… और नहीं लाढ़ोंगे तो ये लोग खून चूस लेगे - फिल्म 'गुलाम'
  • दावा भी काम ना आये, कोई दुआ ना लगे… मेरे खुदा किसी को प्यार की हवा ना लगे - फिल्म 'सरफ़रोश'
  • बच्चो काबिल बनो, काबिल… कमियाबी तो साली झक मार के पीछे भागेंगी - फिल्म '3 इडियट्स'[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 आमिर खान खान की जीवनी (हिन्दी) gyanipandit.com। अभिगमन तिथि: 4 जुलाई, 2017।

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