कजली

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कजली - संज्ञा स्त्रीलिंग (हिन्दी काजल)[1]

1. कालिख।

2. एक साथ पिसे हुए पारे और गंधक की बुकनी।

3. गन्ने की एक जाति जो बर्दवान में होती है।

4. काली आँख वाली गाय

5. वह सफ़ेद भेड़ जिसकी आँखों के किनारे काले बाल होते हैं।

6. पोस्ते की फ़सल का एक रोग जिसमें फूलते समय फूलों पर काली धूल सी जम जाती है और फ़सल को हानि पहुँचती है।

7. एक प्रकार की मछली

कजली - संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कज्जली)

1. एक त्योहार।

विशेष- यह बुंदेलखंड में सावन की पूर्णिमा को और मिर्जापुर, बनारस आदि में भादो वदी तीज को मनाया जाता है। इसमें कच्ची मिट्टी के पिंडों में गोदे हुए जौ के अंकुर किसी ताल या पोखरे में डाले जाते हैं। इस दिन से कजली गाना बंद हो जाता है।

2. मिट्टी के पिंडों में गोदे हुए जौ से निकले हुए हरे हरे अंकुर या पौधे जिन्हें कजली के दिन स्त्रियाँ ताल या पोखरे में डालती हैं और अपने सम्बंधियों को बाँटती हैं।

3. एक प्रकार का गीत जो बरसात में सावन वदी तीज तक गाया जाता है।

मुहावरा- 'कजली खेलना' = स्त्रियों का झुंड या घेरा बनाकर घूम घूमकर झूमते हुए कजली गाना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 744 |

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