हरीश चंद्र महरोत्रा

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हरीश चंद्र महरोत्रा (अंग्रेज़ी: Harish Chandra Mehrotra, जन्म- 11 अक्टूबर, 1923; मृत्यु- 16 अक्टूबर, 1983) भारत के महान भौतिक वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे। जिस तरह रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया, उसी प्रकार हरीश चंद्र महरोत्रा ने भी गणितज्ञों के बीच बहुत नाम कमाया। पहले उनकी रुचि भौतिकशास्त्र में ज्यादा थी। लेकिन बाद में उन्होंने गणित पर शोध किया। मॉडर्न मेथमेटिक्स के क्षेत्र में गणितज्ञ हरीश चंद्र महरोत्रा के उल्लेखनीय कार्य ने विश्व का ध्यान उनकी तरफ खिचा। उन्हें उन्नीसवीं शदाब्दी का महान गणितज्ञ माना जाता है। भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 'पद्म भूषण' (1977) से अलंकृत किया था।

परिचय

हरीश चंद्र महरोत्रा का जन्म 11 अक्तूबर सन 1923 को उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध शहर कानपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रकिशोर था, जो ब्रिटिश भारत में अंग्रेज़ सरकार के अधीन सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। बचपन से हरीश चंद्र महरोत्रा का स्वास्थ्य अक्सर खराव रहा करता था।[1]

शिक्षा

हरीश चंद्र महरोत्रा बाल्यकाल से ही पढ़ने-लिखने में अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर में ही हुई। कानपुर से हाईस्कूल तक की शिक्षा हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गये। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट किया। इलाहाबाद से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान में शोध करने बंगलोर चले गए।

बड़े वैज्ञानिकों के साथ कार्य

प्रारंभ में हरीश चंद्र महरोत्रा का रुझान भौतिकशास्त्र की तरफ अधिक था। लेकिन आगे चलकर इनका रुझान विज्ञान से हटकर गणित की तरफ हो गया। बंगलोर में वे डॉ. होमी जहाँगीर भाभा से अत्यंत ही प्रभावित हुये। जहाँगीर भाभा और कृष्णन जैसे वैज्ञानिकों के द्वारा भी उन्हें बहुत प्रोत्साहन मिला। वे डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ इंग्लैंड के कैम्ब्रिज चले गए।

पाउली से मित्रता

वहाँ उन्होंने प्रोफेसर पॉल डिराक के मार्गदर्शन में अध्ययन किया और पी. एच. डी. की डिग्री हासिल की। लंदन के कैम्ब्रिज में उन्होंने महान वैज्ञानिक पाउली के कार्य में गलती को खोज निकाला। उसके बाद हरीश चंद्र महरोत्रा और पाउली दोनों गहरे दोस्त बन गये। इस दौरान वे महान गणितज्ञ हर्मन वेल तथा क्लाउड चेवेली से भी काफी प्रभावित हुए। इसी समय में वे आंड्रे विल के संपर्क में भी रहे। बाद में वे प्रिन्सटन विश्वविद्यालय चले गए। जहाँ इन्होंने इंस्टीटयूट फॉर एडवांस स्टडी में काम किया। प्रिन्सटन में ही उन्हें महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटाइन के साथ काम करने का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने सेमी-सिम्पल ली ग्रुप के निरुपण पर भी काम किया।[1]

मृत्यु

सफलता के शिखर पर पहुँच कर भी हरीश चंद्र महरोत्रा को कभी अहम नहीं हुआ। जीवन के अंतिम क्षण तक वह गणित की सेवा में लगे रहे। अपने मृदु स्वभाव के कारण छात्र इनसे अत्यंत ही प्रभावित रहा करते थे। हरीश चंद्र महरोत्रा की मृत्यु 16 अक्तूबर, सन 1983 को दिल का दौरा पड़ने के कारण हुई। जब वे अमेरिका के प्रिंस्टन, न्यू जर्सी में एक सम्मेलन में भाग ले रहे थे।

सम्मान व पुरस्कार

  • गणितज्ञ हरीश चंद्र महरोत्रा को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हुए। वे लंदन के रॉयल सोसाइटी के फ़ेलो से सम्मानित हुए। अमेरिका में गणित के प्रसिद्ध संस्थान द्वारा उन्हें 'कोल पुरस्कार' से पुरस्कृत किया गया।
  • वर्ष 1974 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा 'श्रीनिवास रामानुजन पदक' से भी अलंकृत किया गया।
  • प्रयागराज के प्रसिद्ध संस्थान 'मेहता रिसर्च इन्सटिट्यूट' का नाम परिवर्तित कर अब उनके नाम पर ही 'हरिश्चंद्र अनुसंधान संस्थान' रखा गया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 डॉ हरीश चंद्र का जीवन परिचय (हिंदी) nikhilbharat.com। अभिगमन तिथि: 21 सितंबर, 2021।

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