कृत्तिका नक्षत्र
कृत्तिका नक्षत्र एक तारापुंज है, जो आकाश में वृष राशि के समीप दिखाई पड़ता है। कृत्तिका को पौराणिक अनुश्रुतियों में दक्ष की पुत्री, चंद्रमा की पत्नी और कार्तिकेय की धातृ कहा गया है। कृत्तिका नाम पर ही कार्तिकेय नाम पड़ा है।
- नग्न आँख से प्रथम दृष्टि डालने पर इस पुंज के तारे अस्पष्ट और एक-दूसरे से मिले हुए तथा किचपिच दिखाई पड़ते हैं, जिसके कारण बोलचाल की भाषा में इसे 'किचपिचिया' कहते हैं।[1]
- ध्यान से देखने पर इस तारापुंज में छह तारे पृथक-पृथक् दिखाई पड़ते हैं। दूरदर्शक से देखने पर इसमें सैकड़ों तारे दिखाई देते हैं, जिनके बीच में नीहारिका[2] की हलकी धुंध भी दिखाई पड़ती है।
- इस तारापुंज में 300 से 500 तक तारे होंगे, जो 50 प्रकाशवर्ष के गोले में बिखरे हुए हैं।
- कृत्तिका तारापुंज के केंद्र में तारों का घनत्व अधिक होता है। चमकीले तारे भी केंद्र के ही पास स्थित होते हैं।
- इस नक्षत्र के देवता रवि को माना जाता है तथा स्वामी सूर्य व राशि शुक्र है।
- अग्नि का व्रत और पूजन इस नक्षत्र में किया जाता है।
- कृत्तिका तारापुंज पृथ्वी से लगभग 500 प्रकाशवर्ष दूर है।
- भारतीय ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सत्ताइस नक्षत्रों में यह तीसरा नक्षत्र है।
- इस नक्षत्र में छह तारे हैं, जो संयुक्त रूप से अग्निशिखा के आकार के जान पड़ते हैं।[1]
- गूलर के वृक्ष को कृतिका नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कृत्तिका नक्षत्र (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2015।
- ↑ Nebula