रामघाट, कोटवन

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रामघाट ब्रजमण्डल के कोटवन में शेरगढ़ से दो मील पूर्व में यमुना के तट पर स्थित है। इस गाँव का वर्तमान नाम 'ओबे' है। यहाँ बलदेव जी ने रासलीला की थी।

  • द्वारिका में रहते-रहते श्रीकृष्ण-बलराम को बहुत दिन बीत गये। उनके विरह में ब्रजवासी बड़े ही व्याकुल थे। उनको सांत्वना देने के लिए श्रीकृष्ण ने श्रीबलदेव को ब्रज में भेजा था। बलदेव जी ने चैत्र और वैशाख दो मास ब्रज में रहकर माता-पिता, सखा और गोपियों को सांत्वना देने की भरपूर चेष्टा की-

"द्वौ मासौ तत्र चावात्सीन्मधुं माधवमेव च । राम: क्षपासु भगवान् गोपीनां रतिमावहन् ।।"[1]

अंत में गोपियों की विरह-व्याकुलता को दूर करने के लिए उनके साथ नृत्य और गीत पूर्ण रास का आयोजन किया। किन्तु उनका यह रास अपने यूथ की ब्रजयुवतियों के साथ ही सम्पन्न हुआ।

"ततश्च प्रश्यात्र वसन्तवेषौ श्रीरामकृष्णौ ब्रजसुन्दरीभि: । विक्रीडतु: स्व स्व यूथेश्वरीभि: समं रसज्ञौ कल धौत मण्डितौ ।। नृत्यनतौ गोपीभि: सार्द्ध गायन्तौ रसभावितौ । गायन्तीभिश्च रामाभिर्नृत्यन्तीभिश्च शोभितौ ।।"[2]

उस समय वरुण देव की प्रेरणा से परम सुगन्धमयी वारुणी[3] बहने लगी। प्रियाओं के साथ बलदेव जी उस सुगन्धमयी वारुणी का पानकर रास-विलास में प्रमत्त हो गये। जल-क्रीड़ा तथा गोपियों की पिपासा शान्त करने के लिए उन्होंने कुछ दूर पर बहती हुई यमुना को बुलाया, किन्तु न आने पर उन्होंने अपने हल के द्वारा यमुना जी को आकर्षित किया। फिर गोपियों के साथ यमुना जल में जलविहार आदि क्रीड़ाएँ कीं।

  • आज भी यमुना अपना स्वाभाविक प्रवाह छोड़कर रामघाट पर प्रवाहित होती हैं। यमुना जी स्वयं विशाखा जी हैं। वे कृष्णप्रिया हैं तथा राधिका की प्रधान सहेली हैं। समुद्रगामिनी यमुना विशाखास्वरूपिणी यमुना जी का प्रकाश हैं। उन्हीं को बलदेव जी ने अपने हल की नींक से खींचा था, श्रीकृष्णप्रिया यमुना को नहीं।
  • श्रीनित्यानन्द प्रभु ब्रजमंडल भ्रमण के समय यहाँ पधारे थे। इस विहार भूमि का दर्शनकर वे भावविष्ट हो गये थे। यहाँ बलराम जी के मन्दिर के पास ही एक अश्वत्थ वृक्ष है, जो बलराम जी के सखा के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहीं वह रासलीला हुई थीं।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत /10/65/17
  2. श्रीमुरारिगुप्तकृत श्रीकृष्णचैतन्यचरित।
  3. वृक्षों मधुर रस

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