कंजा (पुल्लिंग)

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कंजा - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत करंञ्ज)[1]

1. एक कँटीली झाड़ी।

विशेष - इसकी पत्तियाँ सिरिस की पत्तियों से कुछ मिलती जुलती, कुछ अधिक चौड़ी होती हैं। इसके फूल पीले पीले होते हैं। फूलों के गिर जाने पर कँटीली फलियाँ लगती हैं। इनके ऊपर का छिलका कड़ा और कँटीला होता है। एक एक फली में एक से तीन चार तक बेर के बराबर गोल गोल दाने होते हैं। दानों के छिलके कड़े और गहरे खाकी धुएँ के रंग के होते हैं। लड़के इन दानों से गोली की तरह खेलते हैं। वैद्य लोग इसकी गूदी को औषध के काम में लाते हैं। यह ज्वर और चर्मरोग में बहुत उपयोगी होती है। अंग्रेज़ी दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है। इससे तेल भी निकाला जाता है जो खुजली की दवा है। इसकी फुनगी और जड़ भी काम में आती है। यह हिंदुस्तान और बर्मा में बहुत होता है और पहाड़ों पर 25000 फुट की ऊंचाई तक तथा मैदानों और समुद्र के किनारे पर होता है। इसे लोग खेतों के बाड़ पर भी रूंधने के लिये लगाते हैं।

पर्यायवाची - गटाइन। करंजुवा। कुवेराक्षी। कृकचिका। वारिणी। कंटकिनी।

2. इस वृक्ष का बीज।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 720 |

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