Difference between revisions of "आंग्ल-मराठा युद्ध द्वितीय"

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'''द्विताय आंग्ल-मराठा युद्ध''' 1803 - 1806 ई. तक चला। [[बाजीराव द्वितीय]] को अपने अधीन बनाने के पश्चात् [[अंग्रेज]] इस बात के लिए प्रयत्नशील थे कि, वे होल्कर, भोसलें तथा [[महादजी शिन्दे]] को भी अपने अधीन कर लें। साथ ही वे अपनी कूटनीति से उस पारस्परिक कलह और फूट को बढ़ावा देते रहे, जो [[मराठा]] राजनीति का सदा ही एक गुण रहा था। [[वास्को द गामा]] दूसरी बार 1502 में कालीकट आया था। कालीकट पहुँचने के कुछ ही महीनों के बाद उसने [[कोचीन]] में प्रथम [[पुर्तग़ाली]] फ़ैक्ट्री की स्थापना की नींव रख दी। [[लॉर्ड वेलेजली]] ने महादजी शिन्दे और भोंसले, जो उस समय दक्षिण के [[बरार]] में थे, को अपने-अपने क्षेत्र में लौट जाने को कहा। किन्तु महादजी शिन्दे और भोंसले ने अंग्रेज़ों के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। उनके इन्कार करने पर [[7 अगस्त]], 1803 को अंग्रेज़ों ने महादजी शिन्दे के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में पराजित शिन्दे ने [[30 दिसम्बर]], 1803 ई. को [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] की। भोसलें ने [[देवगाँव की संधि]] करके [[कटक]] का प्रांत तथा बरार अंग्रेज़ों को दे दिया। [[रघुजी भोंसले]] इस असफलता के पश्चात् राजनीतिक गतिविधियों से अलग हो गया। महादजी शिन्दे ने फ़रवरी, 1804 में [[बुरहानपुर]] की सहायक संधि पर भी हस्ताक्षर किया। अंग्रेजों ने [[दौलतराव शिन्दे]] की प्रतिरक्षा का आवश्वासन दिया। होल्कर को अंग्रेजों के साथ राजपुर घाट की संधि करनी पड़ी, परन्तु अंग्रेजों ने क्रमशः 1805 एवं 1806 ई. में शिन्दे व होल्कर के साथ संधि कर उनके कुछ क्षेत्रों को वापस कर दिया।
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*'''द्विताय आंग्ल-मराठा युद्ध''' 1803 ई. से 1806 ई. तक चला।
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*[[बाजीराव द्वितीय]] को अपने अधीन कर लेने के उपरांत [[अंग्रेज]] इस बात के लिए प्रयत्नशील थे कि, वे होल्कर, भोसलें तथा [[महादजी शिन्दे]] को भी अपने अधीन कर लेंगे।
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*इसके साथ ही वे अपनी कूटनीति से उस पारस्परिक कलह और फूट को बढ़ावा देते रहे, जो [[मराठा]] राजनीति का सदा ही एक गुण रहा था।
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*[[लॉर्ड वेलेजली]] ने महादजी शिन्दे और भोंसले, जो उस समय दक्षिण के [[बरार]] में थे, को अपने-अपने क्षेत्र में लौट जाने को कहा।
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*महादजी शिन्दे और भोंसले ने अंग्रेज़ों के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया।
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*उनके इन्कार करने पर [[7 अगस्त]], 1803 को अंग्रेज़ों ने महादजी शिन्दे के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
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*इस युद्ध में महादजी शिन्दे पराजित हुआ, और उसने अंग्रेज़ों के साथ [[30 दिसम्बर]], 1803 ई. को [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] की।
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*भोसलें ने [[देवगाँव की संधि]] करके [[कटक]] का प्रांत तथा [[बरार]] अंग्रेज़ों को दे दिया।
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*[[रघुजी भोंसले]] इस असफलता के पश्चात् राजनीतिक गतिविधियों से अलग हो गया।
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*महादजी शिन्दे ने फ़रवरी, 1804 में [[बुरहानपुर]] की सहायक संधि पर भी हस्ताक्षर किया।
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*अंग्रेजों ने [[दौलतराव शिन्दे]] की प्रतिरक्षा का आवश्वासन दिया।
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*होल्कर को अंग्रेजों के साथ 'राजपुर घाट की संधि' करनी पड़ी, परन्तु अंग्रेजों ने क्रमशः 1805 एवं 1806 ई. में शिन्दे व होल्कर के साथ संधि कर उनके कुछ क्षेत्रों को वापस कर दिया।
  
 
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Revision as of 05:54, 13 July 2011

  • dvitay aangl-maratha yuddh 1803 ee. se 1806 ee. tak chala.
  • bajirav dvitiy ko apane adhin kar lene ke uparaant aangrej is bat ke lie prayatnashil the ki, ve holkar, bhosalean tatha mahadaji shinde ko bhi apane adhin kar leange.
  • isake sath hi ve apani kootaniti se us parasparik kalah aur phoot ko badhava dete rahe, jo maratha rajaniti ka sada hi ek gun raha tha.
  • l aaurd velejali ne mahadaji shinde aur bhoansale, jo us samay dakshin ke barar mean the, ko apane-apane kshetr mean laut jane ko kaha.
  • mahadaji shinde aur bhoansale ne aangrezoan ke is adesh ko manane se iankar kar diya.
  • unake inkar karane par 7 agast, 1803 ko aangrezoan ne mahadaji shinde ke viruddh yuddh ki ghoshana kar di.
  • is yuddh mean mahadaji shinde parajit hua, aur usane aangrezoan ke sath 30 disambar, 1803 ee. ko surji arjunagaanv ki sandhi ki.
  • bhosalean ne devagaanv ki sandhi karake katak ka praant tatha barar aangrezoan ko de diya.
  • raghuji bhoansale is asaphalata ke pashchath rajanitik gatividhiyoan se alag ho gaya.
  • mahadaji shinde ne faravari, 1804 mean burahanapur ki sahayak sandhi par bhi hastakshar kiya.
  • aangrejoan ne daulatarav shinde ki pratiraksha ka avashvasan diya.
  • holkar ko aangrejoan ke sath 'rajapur ghat ki sandhi' karani p di, parantu aangrejoan ne kramashah 1805 evan 1806 ee. mean shinde v holkar ke sath sandhi kar unake kuchh kshetroan ko vapas kar diya.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh