भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई 2014: Difference between revisions

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टोंटा गॅन्ग का सी.ई.ओ. -आदित्य चौधरी


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          "बब्बू यार ! तू बेकार की बात मत किया कर... बबलू गॅन्ग पुलिस की तो सारी डिमान्ड पूरी करता है और तू हमेशा बहसबाज़ी में ही रहता है" इंस्पॅक्टर हाकिम सिंह टनकिया ने टोंटा गॅन्ग के सी॰ ई॰ ओ॰ बब्बू बॉस की बात अनसुनी करते हुए कहा।
इस पर बब्बू, अपना अंदाज़ बदल कर लॉजिक के साथ, बोला-
"बबलू तो मंत्री के साले की गोद में बैठा है सर जी! उसका गॅन्ग जितना क्राइम करता है ना, उससे आधा भी नहीं दिखता...। ... अच्छा, चलिए एक बात बताइये... बबलू गॅन्ग ने क्राइम करने से पहले कभी पुलिस को रिपोर्ट किया है... कभी नहीं ना ?... अरे भई, फर्ज बनता है कि नईं... अब पुलिस वाले क्या हराम की तनखा चीर रहे हैं जो कोई गॅन्ग उनको क्राइम करने से पहले बताएगा भी नहीं... अरे भई... ! आप क्राइम करने से पहले पुलिस को इन्फोर्म नहीं करेंगे तो बेचारे पुलिस वालों को कहाँ से पता लगेगा कि क्राइम कहाँ, कब और कैसे हुआ ? फॅक्ट की बात ये हैऽऽऽ कि क़रीब क़रीब सारे क्राइम पुलिस की नोलेज में ही तो होते हैं सर जी ! एक रेप ही तो है जिसकी इन्फोरमेसन पुलिस को नहीं होती। वैसे भी इसमें कोई बिजनिस तो है नहीं...एन्टरटेनमेन्ट ही तो है सर जी ! ... और इसे तो आपका स्टाफ़ भी कर लेता है... मेरा मतलब है कि कभी-कभी।"
          इस बार, इंस्पॅक्टर टनकिया ने बहुत ध्यान से बब्बू की बात सुनी और ठंडी आह लेकर बब्बू से बोला-
"क्या बात कही है बब्बू वाह ! तूने हमारा दर्द तो समझा... अब तू ही देख ले कि जनता तो बस ये सोचती है कि चोरी-डकैती हो जाती है और मुजरिम का पता नहीं चलता... अरे भाई अब वो ज़माना ही नहीं रहा... आजकल तो लोग पुलिस को बताए बिना ही वारदात करने चल देते हैं...... "तूने मदर इंडिया पिच्चर देखी थी... क्यों ?" इंस्पॅक्टर टनकिया ने बच्चों जैसी मासूमियत से पूछा।
          बब्बू ने अपनी एक भौं को ऊँचा उठाया, चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाकर और दाहिने हाथ को नचा कर कहा-
"क्यों नहीं देखी थी सर बिल्कुल देखी थी आखिर वो अपने मुन्ना भाई के मम्मी पापा की पिच्चर थी... कान्चा चीना... वाह जीओ मेरे संजू बाबा..."
          "हाँ-हाँ वही... मदर इंडिया में जब बिरजू डाकू बन जाता है तो सुक्खी लाला को पहले ही बता देता है कि उसकी लड़की की शादी के टाइम पर ही वो लाला की लड़की को उठाने आएगा... अब ये हुई ना मर्दों वाली बात... अरे भाई पुलिस को पहले से पता होना चाहिए कि तुम कब, कहाँ और किस टाइम पर वारदात करने वाले हो... ये क्या कि चाहे जब मुँह उठाकर चल दिए वारदात करने..." टनकिया ने अफ़सोस ज़ाहिर किया और थोड़ा रुककर फिर दार्शनिक अंदाज़ में बोला- "अगर क्रिमनल, पुलिस को बता कर क्राइम करे तो भई हम भी बीस तरह की फ़ॅसेलिटी दे सकते लेकिन क्या करें समझ में ही नहीं आता आजकल के नए लड़कों को... देख लेना सरकार को ही एकदिन ऐसा क़ानून बनाना पड़ेगा... हमें भी तो राइट ऑफ़ इनफ़ॉरमेशन का फ़ायदा मिलना चाहिए। जिसे देखो बलात्कार किए जा रहा है, आजकल... अगर यही लोग हमको कॉन्फ़िडेन्स में लेकर बलात्कार करने जाएँ तो बलात्कार की एक भी रिपोर्ट भी नहीं होगी... राज़ी-रिश्ते से बलात्कार करवाने की गारंटी पुलिस की हो जाएगी... लेकिन हमारी सुनता कौन है..."
          "सर ये सारी गड़बड़ी गब्बर सिंह के बाद हुई... उसने बिना पुलिस को इनफौरमेसन दिये ही डकैती डालना सुरू कर दिया ... मतलब कि जमाना ही खराब आ गया है सर जी। जनता भी चालाक हो गई है। पैसा-जेबर साथ लेकर नईं चलती है। अब देखिए! मैंने पिछली सर्दियों में हाईवे से मंसापुर तक की रोड का रात वाला ठेका डेढ़ लाख में लिया। तीन बस गुज़रीं और तीनों खड़ी करके लूटीं...लेकिन मिला क्या ? माल था कुल्ल सवा लाख के करीब का... हमने तीनों बसों का माल बापस किया और थाने से रक़म वापस ली... वापसी के पाँच हजार काट लिए दरोगा ने। बस के यात्रियों के पैर पकड़ कर उनसे कहा कि ये मत कहना कि तुम लुटे हो... कसमा-धरमी हुई तब जाकर जान छूटी। वो दिन और आज का दिन, टोंटा गैंग ने किसी बस पर हाथ नहीं डाला ... रोड की ठेकेदारी में बड़ा खतरा है आजकल..."
          "हाँ खतरा तो सब जगह है, अब तो पुलिस की नौकरी भी आराम वाली नहीं रही... क्यों भई ! एक बात बता, ये तुम्हारे गॅन्ग का नाम टोंटा गॅन्ग क्यों है? तेरे तो दोनों हाथ ठीक हैं। क्या तेरे पिताजी का एक ही हाथ था ?"
"अरे नईं सर ये बात नईं है... असल में मेरे दादाजी ने अपने एक हाथ की कुरबानी दी थी तो उसी से नाम पड़ गया।"
"क़ुर्बानी ? कैसी क़ुर्बानी ?"
"वो बात ये है सर कि एक बार वो भैंस चुराने में पकड़े गए थे। उनके एक हाथ में हथकड़ी लगी थी, हथकड़ी का दूसरा कड़ा सिपाही ने पहन रखा था। रास्ते में उनका मन भागने को कर आया... तो पास की ढकेल से गंडासा उठाकर उन्होंने अपना हाथ काटा और भाग गए..."
"अरे ! लेकिन वो सिपाही का हाथ काटकर भी तो भाग सकते थे...? अपना हाथ क्यों काटा ?"
"वो जमाना गांधीजी का था... अहिंसा की बातों ने जोर पकड़ रखा था... तो दूसरे का हाथ कैसे काटते ? इसी से हमारे गॅन्ग का नाम टोंटा गॅन्ग पड़ गया"
"वाह भई वाह धन्य हैं तेरे दादाजी, तुम तो ख़ानदानी बदमाश हो!"
बब्बू ने शरमा कर कहा-
"सब ईसुर की दया है... अब जो भी हैं आपके सामने हैं सर जी! अपने खानदान की इज्जत के लिए जितना हो सकता है करते हैं, बस नाम बचा रहे पुरखों का इतना ही हमारे लिए काफ़ी है। वेसे जमाना बदलता जा रहा है, अब वोऽऽऽ बात नईं है..."
          "हाँ यार ज़माना तो ख़राब है ही... चल छोड़, वो तो ठीक है...लेकिन एक बात बता कि तुम्हारे टोंटा गॅन्ग का हल्ला तो तीन ज़िलों में हो रक्खा है जिधर देखो, टोंटा गॅन्ग-टोंटा गॅन्ग... अब मंत्री जी जनपद का दौरा करने आ रहे हैं तो पईसा देने में तेरी मैया मर रही है ?... बाद में मत कहना कि तुम्हारे ही आदमी का एनकाउन्टर क्यों होता है... सोच ले...?" इंस्पॅक्टर मुद्दे पर आया।
शहर कोतवाली में टोंटा गॅन्ग के लीडर बब्बू बॉस को बुलाकर मंत्री जी के दौरे के लिए आर्थिक सहयोग की 'अपील' करते हुए इंस्पॅक्टर टनकिया, बब्बू से 'आर्थिक सहायता' की मांग कर रहा था ।
          "अरे सर जीऽऽऽ... हमने कब मना किया है... लेकिन एक बार हमारी भी तो सुनिए कि हम किस डेन्जर हालात में अपना बिजनिस चला रहे हैं ? अब आप ही बताइए ? एक हथियार तक की तो मदद मिलती नहीं है पुलिस से... हम छ: महीने से दो नाइन ऍम॰ऍम॰ मांग रहे हैं लेकिन आप हैं... कि हाँ करके ही नहीं देते ?" बब्बू बॉस ने कहा तो रूठने के अंदाज़ में लेकिन इंस्पॅक्टर की नो रॅस्पोंस, बॉडी लॅन्ग्वेज देखकर खिसियाहट वाली मुस्कुराहट दे कर रह गया।
          "अबे यार ! तू ये बता... कि पचास हजार में नाइन की पिस्टल देता कौन है आजकल... दो लाख का रेट चल रहा है... और तीन लाख में तो चाहे जितनी लेले... आर्मी की पेटी दिलवा दूँ ? एकदम फ़्रेश... पेटी बंद... बोल लेता है ?" इंस्पॅक्टर ने अनुभवी सेल्समॅन की तरह बब्बू को समझाया।
          बब्बू ने अपनी जेब से पान मसाला निकाल कर इंस्पॅक्टर की तरफ़ बढ़ाया फिर इंस्पॅक्टर की लापरवाह 'ना' को देखकर ख़ुद मुँह में डालते हुए बोला-
"अब तीन-तीन लाख की 'चीज' लेके क्या धंधा होगा साब ! इससे अच्छा तो सीतापुर या बाराबंकी से किराए पर ही उठा लेंगे... चलो छोड़ो सर जी ! हम तो सब कुछ कर लेंगे लेकिन पुलिस का भी हमारे लिए कोई फरज है कि नईं ?...
          "देख बब्बू ! आज तू कुछ देगा तो कल को नेता भी तो तेरी मदद करेगा... अरे शॅल्टर की ज़रूरत किस बदमाश को नहीं होती... ऐं ? बता तू ही बता... और फिर तू तो इलाक़े का माना हुआ एक अच्छा बदमाश है" इंस्पॅक्टर ने इस बार थोड़ा प्यार से समझाया।
          "सॅल्टर ? काहे का सॅल्टर कौन से जमाने की बात कर रहे हैं सर ! वो जमाना अब कहाँ? सॅल्टर तो मेरे बाप के जमाने में मिलता था। जब दामोदर सिंह भैयाजी अपनी जीप में बैठाकर हमारे बापू को ऍस पी के सामने से निकाल के ले गए थे... वो भी अपनी बीवी का ब्लाउज पेटीकोट और साड़ी पहना कर... और आपको मालूम है सिरी गोबिन्द मंदिर की चुराई मूर्ति उनके साथ में थी। मंदिर से सोने की मूर्ति चुराना कसाले के काम था... और बापू का साथ भी तो दिया था नेता जी ने... ये है रिकस ले के साथ देना" कहते-कहते बब्बू ख़यालों में खोने के एक्टिंग का अभ्यास जैसा करने लगा और थोड़ा रुककर फिर बोला-
"आजकल के नेता सॅल्टर कहाँ देते हैं... उनका सैल्टर तो पुलिस से भी मँहगा पड़ता है... उनके चुनाव के खर्चे में ही गॅन्ग की दम निकल जाती है। हम जैसे सीधे-साधे बिजनिसमॅन तो बस मर ही लेते हैं। अब आप ही बताइए कि गुल्लर भाई का पी॰ए॰ हमसे कह रहा था कि कोई 'व्यवस्था' करवा दो। कहाँ से करवाएँ व्यवस्था, लड़कियाँ कोई पेड़ पर लगती हैं क्या ? अरे भाई तुम ऍम॰ऍल॰ए॰ के पी॰ए॰ हो तुमको तो कम से कम इज्जत-सलीके से चलना चाहिए... तमाम रसियन मिल रही हैं... भरी पड़ी हैं बीस-बीस हजार में... पर नईं... पैसा तो दारू के लिए भी खर्च नहीं करना तो फिर व्यवस्था के लिए कहाँ से करेंगे।"
"अरे यार ये नौटंकी तो हमें भी मालूम है... अब सीधी-सीधी सुन ले... चंदा तो देना ही पड़ेगा"
"ठीक है सर जी ! जो हुकुम सरकार का... लेकिन हमारी सुनवाई भी तो होनी चाहिए ?"
"अच्छा... चल कह ले मन की... आज तेरी ही सुन लें... चल बोल !"
अब तो बब्बू पूरी तरह फ़ॉर्म में आ गया। गला साफ़ करके बोला-
          "सर बुरा मत मानिए...अब आपकी डिमान्ड भी तो थोड़ी टेढ़ी ही रहती है... ! आप चाहते हैं क्राइम भी वर्कआउट होना चाहिए और हिस्सा भी पूरा चाहिए... आधा माल भी बरामद करवा दें... एक-दो पुराने कारीगर लोंडों को गिरफ्तार भी करवा दें... साथ में आधे माल में से आपको आधा दे भी दें ?... अब पच्चीस परसेन्ट पर क्या बिजनिस होगा सर जी ! आपका तो गुडवर्क हो जाता है... हमारे बिजनिस का सबकुछ बॅड हो जाता है। हम तो परेसान हो गए हैं इस बिजनिस से सर जी ! ... इस बार वार्ड मेम्बरी से शुरू करने की सोच रहे हैं... दस-पंद्रह साल में विधायक बन ही जाएंगे।"
इतना कहकर बब्बू ने एक 'पॅकेट' मेज़ पर रखा और बाहर निकल गया।

आइए अब भारतकोश पर चलते हैं-
पिछले दिनों अपराधों से संबंधित अनेक समाचार, टी॰वी॰ और अख़बारों में आए। उन समाचारों से कुछ सवाल हम सब के मन में उठे। कुछ सवालों के उत्तर शायद इस संपादकीय से मिल जाएँ...


इस बार इतना ही... अगली बार कुछ और...
-आदित्य चौधरी
संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक