राज की नीति -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>राज की नीति<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | |||
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:नहीं !... क्योंकि तुम कभी वापस नहीं करोगे। तुमको कर्ज़ा देने का मतलब है पैसे डूब जाना। | :नहीं !... क्योंकि तुम कभी वापस नहीं करोगे। तुमको कर्ज़ा देने का मतलब है पैसे डूब जाना। | ||
:-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ? | :-क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे कर सकते हैं, मैं कुँवारा हूँ? | ||
:नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा | :नहीं !... क्योंकि तुमसे बेटी की शादी होने पर उसका और हमारा जीवननरकहो जाएगा। इससे अच्छा है कि वो ज़िंदगी भर कुँवारी रहे। | ||
:-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं? मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ। | :-क्या आप मुझे वोट दे सकते हैं? मैं इस बार के चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ। | ||
:-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | :-हाँ, हम तुम्हें वोट देंगे, चंदा देंगे और तुम्हारा ज़ोरदार स्वागत भी करेंगे। | ||
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ये वार्तालाप यहीं समाप्त हुआ। अब आगे चलें... | ये वार्तालाप यहीं समाप्त हुआ। अब आगे चलें... | ||
ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। | ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। | ||
भारतवासियों ने महात्मा गांधी को यदि नेता माना तो नेताजी सुभाष को भी गांधी जी के उम्मीदवार के ख़िलाफ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। नेहरू जी को नेता माना तो सरदार पटेल को भी प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा करोड़ों भारतवासियों के मन में आज भी है कि काश! पटेल बने होते प्रधानमंत्री...। आज भी दिल में कराह उठती है कि काश सरदार भगतसिंह को | भारतवासियों ने महात्मा गांधी को यदि नेता माना तो नेताजी सुभाष को भी गांधी जी के उम्मीदवार के ख़िलाफ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। नेहरू जी को नेता माना तो सरदार पटेल को भी प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा करोड़ों भारतवासियों के मन में आज भी है कि काश! पटेल बने होते प्रधानमंत्री...। आज भी दिल में कराह उठती है कि काश सरदार भगतसिंह को फाँसी न लगी होती। लाल बहादुर शास्त्री को ईमानदारी और पारदर्शिता का प्रतीक माना गया तो इंदिरा गांधी को लौह महिला का ख़िताब दिया गया। अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी जनता में अपनी अलग विशेषताओं से लोकप्रिय हो गये... लेकिन क्यों... क्या ख़ास बात है इन नेताओं में? जिसमें नेता के कुछ ख़ास गुण हों, वही नेता बनता है। | ||
कम से कम चार गुण तो मुख्य हैं- सबसे पहले तो वह 'जननेता' हो; उसके भाषणों में इतनी जान हो कि वह भाषण सुनने आई हुई भीड़ को वोटों में बदलने की शक्ति रखता हो। दूसरे वह 'राजनेता' हो; उसे संसदीय गरिमा का पता हो; पढ़ा लिखा हो और विद्वानों के बीच में कुछ बोलने की क्षमता रखता हो। तीसरे वह 'अच्छा प्रबन्धक' हो; उसका प्रबन्धन अच्छा हो और विपरीत परिस्थिति में भी सफल | कम से कम चार गुण तो मुख्य हैं- सबसे पहले तो वह 'जननेता' हो; उसके भाषणों में इतनी जान हो कि वह भाषण सुनने आई हुई भीड़ को वोटों में बदलने की शक्ति रखता हो। दूसरे वह 'राजनेता' हो; उसे संसदीय गरिमा का पता हो; पढ़ा लिखा हो और विद्वानों के बीच में कुछ बोलने की क्षमता रखता हो। तीसरे वह 'अच्छा प्रबन्धक' हो; उसका प्रबन्धन अच्छा हो और विपरीत परिस्थिति में भी सफल राजनीतिक गठजोड़ की क्षमता हो। चौथे वह 'कुशल प्रशासक' हो; उसे शासन प्रशासन आता हो। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि इन गुणों में कहीं भी त्याग करने की क्षमता, सत्य बोलना, भावुक या दयालु होना आदि नहीं है। | ||
असल में राजनीति में 'राज' के साथ 'नीति' लगी हुई है। नीति आदमी तभी बनाता है; जब वह कुछ प्राप्त करना चाहता है। त्याग के लिए नीतियों की आवश्यकता नहीं होती। जब राज प्राप्त करना चाहते हैं तो राज के साथ में नीति लगाकर काम चलता है। अर्थ प्राप्त करना चाहते हैं तो अर्थ के साथ में नीति लगाते हैं, 'अर्थनीति' कर देते हैं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ध्येय था; मगध का राज्य प्राप्त करना। चाणक्य ने नीति बनाई तो 'चाणक्य-नीति' कहलाने लगी। कौटिल्य का अर्थशास्त्र बना; अर्थनीति बनी। | असल में राजनीति में 'राज' के साथ 'नीति' लगी हुई है। नीति आदमी तभी बनाता है; जब वह कुछ प्राप्त करना चाहता है। त्याग के लिए नीतियों की आवश्यकता नहीं होती। जब राज प्राप्त करना चाहते हैं तो राज के साथ में नीति लगाकर काम चलता है। अर्थ प्राप्त करना चाहते हैं तो अर्थ के साथ में नीति लगाते हैं, 'अर्थनीति' कर देते हैं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ध्येय था; मगध का राज्य प्राप्त करना। चाणक्य ने नीति बनाई तो 'चाणक्य-नीति' कहलाने लगी। कौटिल्य का अर्थशास्त्र बना; अर्थनीति बनी। | ||
अर्थ बहुत अर्थपूर्ण होता है: शासन के लिए; राज्य के लिए। इस संबंध में चाणक्य की तरह ही मैकियावेली<ref>Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (''Renaissance'' 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना</ref> ने भी अनेक नियम राजा या शासक के लिए बताए हैं। मैकियावेली ने लिखा है किसी भी व्यक्ति को शासक बनने से पहले आर्थिक मामलों में उदार होना चाहिए लेकिन शासन हाथ में आने पर उसका कृपण (कंजूस) हो जाना ही राज्य के हित में है, क्योंकि राज्य पैसों से ही चलता है। यदि राज्य प्राप्त करने के बाद राजा उदार हो जायेगा तो सारा ख़ज़ाना लुटा देगा और राज्य की व्यवस्थाएँ कमज़ोर पड़ जायेंगी। विदेशी ताक़तें क़ब्ज़ा कर लेंगी और आर्थिक मंदी आ जायेगी। इस तरह की नीतियाँ मैकियावेली ने अपनी किताब में लिखी हैं। मैकियावेली कोई जन-प्रिय लेखक नहीं रहा क्योंकि उसको क्रूर शासन से सम्बन्धित नीतियाँ बताने का आरोपी पाया गया। मैकियावेली का प्रभाव नीत्शे (Friedrich Nietzsche) पर पड़ा और नीत्शे का हिटलर पर। | अर्थ बहुत अर्थपूर्ण होता है: शासन के लिए; राज्य के लिए। इस संबंध में चाणक्य की तरह ही मैकियावेली<ref>Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (''Renaissance'' 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना</ref> ने भी अनेक नियम राजा या शासक के लिए बताए हैं। मैकियावेली ने लिखा है किसी भी व्यक्ति को शासक बनने से पहले आर्थिक मामलों में उदार होना चाहिए लेकिन शासन हाथ में आने पर उसका कृपण (कंजूस) हो जाना ही राज्य के हित में है, क्योंकि राज्य पैसों से ही चलता है। यदि राज्य प्राप्त करने के बाद राजा उदार हो जायेगा तो सारा ख़ज़ाना लुटा देगा और राज्य की व्यवस्थाएँ कमज़ोर पड़ जायेंगी। विदेशी ताक़तें क़ब्ज़ा कर लेंगी और आर्थिक मंदी आ जायेगी। इस तरह की नीतियाँ मैकियावेली ने अपनी किताब में लिखी हैं। मैकियावेली कोई जन-प्रिय लेखक नहीं रहा क्योंकि उसको क्रूर शासन से सम्बन्धित नीतियाँ बताने का आरोपी पाया गया। मैकियावेली का प्रभाव नीत्शे (Friedrich Nietzsche) पर पड़ा और नीत्शे का हिटलर पर। | ||
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-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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Latest revision as of 10:51, 11 February 2021
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश राज की नीति -आदित्य चौधरी -क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (Renaissance 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना
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