सुमतिनाथ: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:जैन धर्म कोश" to "Category:जैन धर्म कोशCategory:धर्म कोश") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 5: | Line 5: | ||
*भगवान सुमतिनाथ को वैशाख शुक्ल नवमी को पावन नगरी अयोध्या में दीक्षा की प्राप्ति हुई थी। | *भगवान सुमतिनाथ को वैशाख शुक्ल नवमी को पावन नगरी अयोध्या में दीक्षा की प्राप्ति हुई थी। | ||
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया था। | *दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया था। | ||
*20 वर्ष तक कठोर तप के बाद [[अयोध्या]] में ही [[चैत्र]] शुक्ल एकादशी को 'प्रियंगु' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई। | *20 वर्ष तक कठोर तप के बाद [[अयोध्या]] में ही [[चैत्र]] शुक्ल एकादशी को 'प्रियंगु' वृक्ष के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई। | ||
*[[जैन]] धर्मावलम्बियों के अनुसार सुमतिनाथ ने कई वर्षों तक मानव जाति को [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] और [[सत्य]] के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। | *[[जैन]] धर्मावलम्बियों के अनुसार सुमतिनाथ ने कई वर्षों तक मानव जाति को [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] और [[सत्य]] के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। | ||
*कथानुसार भगवान श्री सुमतिनाथ चैत्र शुक्ल एकादशी को ही [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त हुए।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Sumatinath|title=श्री सुमतिनाथ जी|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first=|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *कथानुसार भगवान श्री सुमतिनाथ चैत्र शुक्ल एकादशी को ही [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त हुए।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Sumatinath|title=श्री सुमतिनाथ जी|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first=|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
Line 17: | Line 17: | ||
[[Category:जैन तीर्थंकर]] | [[Category:जैन तीर्थंकर]] | ||
[[Category:जैन धर्म]] | [[Category:जैन धर्म]] | ||
[[Category:जैन धर्म कोश]] | [[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 13:42, 21 March 2014
सुमतिनाथ जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर थे। सुमतिनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा मेघप्रय की पत्नी रानी सुमंगला के गर्भ से मघा नक्षत्र में वैशाख शुक्ल अष्टमी को पावन नगरी अयोध्या में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था, जबकि इनका चिह्न चकवा था। भगवान सुमतिनाथ जी के यक्ष का नाम तुम्बुरव तथा यक्षिणी का नाम वज्रांकुशा था।
- जैनियों के मतानुसार सुमतिनाथ के गणधरों की संख्या 100 थी।
- चरम स्वामी इनके गणधरों में प्रथम गणधर थे।
- भगवान सुमतिनाथ को वैशाख शुक्ल नवमी को पावन नगरी अयोध्या में दीक्षा की प्राप्ति हुई थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया था।
- 20 वर्ष तक कठोर तप के बाद अयोध्या में ही चैत्र शुक्ल एकादशी को 'प्रियंगु' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार सुमतिनाथ ने कई वर्षों तक मानव जाति को अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
- कथानुसार भगवान श्री सुमतिनाथ चैत्र शुक्ल एकादशी को ही सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री सुमतिनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।
संबंधित लेख