मल्लिनाथ: Difference between revisions
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*दीक्षा प्राप्ति के दो दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था। | *दीक्षा प्राप्ति के दो दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था। | ||
*इसके उपरान्त एक वर्ष तक दिन-रात कठोर तप करने के बाद भगवान मल्लिनाथ को मिथिला में ही [[अशोक वृक्ष]] के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई। | *इसके उपरान्त एक वर्ष तक दिन-रात कठोर तप करने के बाद भगवान मल्लिनाथ को मिथिला में ही [[अशोक वृक्ष]] के नीचे '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई। | ||
*मल्लिनाथ ने हमेशा [[सत्य]] और [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का सन्देश दिया। | *मल्लिनाथ ने हमेशा [[सत्य]] और [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का सन्देश दिया। | ||
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मल्लिनाथ जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर थे। मल्लिनाथ जी का जन्म मिथिला के इक्ष्वाकु वंश में मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अश्विनी नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम रक्षिता देवी और पिता का नाम राजा कुम्भराज था। इनके शरीर का वर्ण नीला जबकि चिह्न कलश था।
- भगवान मल्लिनाथ के यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी था।
- जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार मल्लिनाथ के गणधरों की कुल संख्या 28 थी, जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- मल्लिनाथ ने मिथिला में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दीक्षा की प्राप्ति की थी।
- दीक्षा प्राप्ति के दो दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था।
- इसके उपरान्त एक वर्ष तक दिन-रात कठोर तप करने के बाद भगवान मल्लिनाथ को मिथिला में ही अशोक वृक्ष के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- मल्लिनाथ ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का सन्देश दिया।
- फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को 500 साधुओं के संग इन्होनें सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री मल्लिनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।