कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - "प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक" to "संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक")
 
(20 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था।  
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; margin-left:5px; border-radius:5px; padding:10px;"
|-
|
[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]]
[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br />
[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी]
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कौऔं का वायरस<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br />
----
[[चित्र:4-crow-meeting.jpg|300px|right|border]]
<poem>
        एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था। "सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो! अगर इस दुनिया में ''सरवाइव'' करना है तो जान बचाने की आदत डाल लेनी चाहिए, तो जान बचाने के लिए... "


"सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो ! अगर इस दुनियाँ में ''सरवाइव'' करना है तो जान बचाने की आदत डाल लेनी चाहिए, तो जान बचाने के लिए... "
"ओ.के. डॅडी! हम समझ गए! इतना डिटेल में क्यों जा रहे हैं? सीधे-सीधे काम की बात बताइए, वो कौन सी आदत है?" बच्चे ने बात बीच में ही काटी।


"ओके डॅडी ! हम समझ गए ! इतना डिटेल में क्यों जा रहे हैं ? सीधे-सीधे काम की बात बताइए, वो कौन सी आदत है ?" बच्चे ने बात बीच में ही काटी।
"अबे ओ 'थ्री ईडियट्‌स' के 'रॅन्चो'!" कौआ 'प्रिंसीपल वायरस' की तरह ही दहाड़ा "चुपचाप बात समझने की कोशिश करो..." कौए ने बच्चों को ग़ुस्से से घूरा और फिर दूर से उनकी ओर आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया और आगे बोला-


"अबे ओ 'थ्री ईडियट्‌स' के 'रॅन्चो'!" कौआ 'प्रिंसीपल वायरस' की तरह ही दहाड़ा "चुपचाप बात समझने की कोशिश करो..."
"वो जो तुम दो पैरों पर चलता हुआ कौआ देख रहे हो। वो हमसे ज़्यादा चालाक कौआ है। कौए की इस नस्ल को 'आदमी' कहते हैं। अब जैसे ही ये पत्थर उठाने के लिए नीचे झुके तो तुमको फ़ौरन उड़ जाना चाहिए वरना गए जान से... समझ गये!"


कौए ने बच्चों को ग़ुस्से से घूरा और फिर दूर से उनकी ओर आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया और आगे बोला-
"लेकिन डॅडी! अगर वो आदमी पहले ही से हाथ में पत्थर छुपाकर ला रहा हो और हमें पत्थर मार दे तो?" थ्री ईडियट्‌स में से एक बोला और यह कहकर उड़ गया। उसके पीछे-पीछे कौआ और उसके दोनों बच्चे भी उड़ गये। साथ-साथ उड़ते हुए कौए ने अपने बच्चों से कहा-


"वो जो तुम दो पैरों पर चलता हुआ कौआ देख रहे हो। वो हमसे ज़्यादा चालाक कौआ है। कौए की इस नस्ल को 'आदमी' कहते हैं। अब जैसे ही ये पत्थर उठाने के लिए नीचे झुके तो तुमको फ़ौरन उड़ जाना चाहिए वरना गए जान से... समझ गये !"
"तुमको किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं है... कमबख़्तों! तुम इस आदत को अण्डे से ही लेकर आए हो।"
[[चित्र:Kauan-ka-virus.jpg|300px|right]]
        ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म होता है लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि कोई आदत कितने वक़्त में पड़ जाती है? तो जवाब है '23 दिन'ये इस क्षेत्र के विद्वानों का अध्ययन है कि 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। 


"लेकिन डैडी ! अगर वो आदमी पहले ही से हाथ में पत्थर छुपाकर ला रहा हो और हमें पत्थर मार दे तो ?" थ्री ईडियट्‌स में से एक बोला और यह कहकर उड़ गया।
        प्रशिक्षण की बात करें तो, बास्केटबॉल के खिलाड़ियों को, बॉल को बास्केट करने में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षकों का ध्यान इस बात पर होता है कि खिलाड़ियों को बॉल को बास्केट करने का 'अभ्यास' नहीं बल्कि बास्केट करने की 'आदत' पड़ जानी चाहिए या 'व्यसन' जैसा हो जाना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ियों से जब कहा जाता है कि बहुत ध्यान से बास्केट करें तो उनका प्रदर्शन ख़राब रहता है और जब वे लगातार अभ्यास कर रहे होते हैं, तब छुप कर उनका प्रदर्शन देखा जाता है तो वह बेहतर होता है।


उसके पीछे-पीछे कौआ और उसके दोनों बच्चे भी उड़ गये। साथ-साथ उड़ते हुए कौए ने अपने बच्चों से कहा-
      उदाहरण के लिए- हमने देखा है कि जब हम बिना ध्यान दिए दाढ़ी बनाते हैं तो रेज़र से कटने की संभावना कम होती है लेकिन बहुत ध्यान से अगर दाढ़ी बनाएँ तो लगातार ख़तरा बना रहता है और ग़लती हो ही जाती है। (काश ये प्रयोग मैं कर पाता लेकिन संभव नहीं हो सका क्यों कि मैं शुरू से ही दाढ़ी रखता हूँ)


"तुमको किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं है... कमबख़्तो ! तुम इस आदत को अण्डे से ही लेकर आए हो"
      दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है।
      यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' में बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref>


ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म होता है लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि कोई आदत कितने वक़्त में पड़ जाती है ? तो जवाब है '23 दिन'। ये इस क्षेत्र के विद्वानों का अध्ययन है कि 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। 
      गोलमॅन ने लिखा है कि एक बच्ची पानी में गिर गई और डूबने लगी; तभी एक आदमी भी कूद गया और उसे बचा लाया। उस आदमी ने बताया कि वो पता नहीं कैसे अचानक ही कूद गया जबकि उसे याद नहीं आया कि उसने बच्ची को पानी में गिरते देखा भी था या नहीं। यही ऍमिग्डाला का कमाल है जो संदेश आँखों को मस्तिष्क तक पहुँचाना था, वो इसने बीच में ही मस्तिष्क तक पहुँचने से पहले ही उड़ा लिया (धोनी के हॅलीकॉप्टर शॉट की तरह) और शरीर को हरकत दे दी।


प्रशिक्षण की बात करें तो, बास्केटबॉल के खिलाड़ियों को, बॉल को बास्केट करने में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षकों का ध्यान इस बात पर होता है कि खिलाड़ियों को बॉल को बास्केट करने का 'अभ्यास' नहीं बल्कि बास्केट करने की 'आदत' पड़ जानी चाहिए या 'व्यसन' जैसा हो जाना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ियों से जब कहा जाता है कि बहुत ध्यान से बास्केट करें तो उनका प्रदर्शन ख़राब रहता है और जब वे लगातार अभ्यास कर रहे होते हैं तब छुप कर उनका प्रदर्शन देखा जाता है तो वह बेहतर होता है।  
      ज़िंदगी भर हम आदतों के आधीन रह कर जीवन जीते हैं। कुछ कार्य आदत बना लेने से ही हो पाते हैं, जैसे कि पढ़ाई और कसरत। छात्रों को अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है लेकिन वे पढ़ाई को आदत बनाना नहीं सीख पाते, इसलिए सारी गड़बड़ होती है। शारीरिक व्यायाम की बात भी कुछ ऐसी ही है। अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक 'इरविंग वॉलिस' की किताब ''द बुक ऑफ़ लिस्ट्स''<ref>
[http://www.amazon.com/Peoples-Almanac-Presents-Book-Lists/dp/0688031838/ref=pd_sim_b_3 'द बुक ऑफ़ लिस्ट्स' लेखक- इरविंग वॉलिस आदि]</ref> में दुनिया भर की अनोखी सूचियाँ हैं और एक सूची उबाऊ कार्यों की भी है। सबसे उबाऊ कार्य वे माने गए हैं जो घरेलू कार्य हैं जैसे- झाड़ू-पौछा, कपड़े-बर्तन धोना आदि। (महिलाओं से क्षमा याचना क्योंकि अक्सर ये कार्य महिलाओं के हिस्से में ही आते हैं) दुनिया के सबसे उबाऊ काम फिर भी वे नहीं हैं जो अभी मैंने बताए बल्कि सूची में सबसे ऊपर 'कसरत' है।  


उदाहरण के लिए- हमने देखा है कि जब हम बिना ध्यान दिए दाढ़ी बनाते हैं तो रेज़र से कटने की संभावना कम होती है लेकिन बहुत ध्यान से अगर दाढ़ी बनाएँ तो लगातार ख़तरा बना रहता है और ग़लती हो ही जाती है (काश ये प्रयोग मैं कर पाता लेकिन संभव नहीं हो सका क्यों कि मैं शुरू से ही दाढ़ी रखता हूँ)।
        जिस तरह पान मसालों के विज्ञापनों में आता है कि "क्योंकि स्वाद बड़ी चीज़ है" या "शौक़ बड़ी चीज़ है" इसी तरह याद रखिए कि 'आदत' बड़ी चीज़ है। सिर्फ़ 23 दिन सुबह जल्दी उठ लीजिए फिर ज़िन्दगी भर अपने आप जल्दी उठेंगे।


दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है।
छात्रों को आने वाले इम्तिहानों के लिए ''बॅस्ट ऑफ़ लक !''


ये एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि यह स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मतिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref>
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और...


गोलमॅन ने लिखा है कि एक बच्ची पानी में गिर गई और डूबने लगी; तभी एक आदमी भी कूद गया और उसे बचा लाया। उस आदमी ने बताया कि वो पता नहीं कैसे अचानक ही कूद गया जबकि उसे याद नहीं आया कि उसने बच्ची को पानी में गिरते देखा भी था या नहीं। यही ऍमिग्डाला का कमाल है जो संदेश आँखों को मस्तिष्क तक पहुँचाना था वो इसने बीच में ही मस्तिष्क तक पहुँचने से पहले ही उड़ा लिया (धोनी के हॅलीकॉप्टर शॉट की तरह) और शरीर को हरकत देदी।
-आदित्य चौधरी
<small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small>
</poem>


ज़िंदगी भर हम आदतों के आधीन रह कर जीवन जीते हैं। कुछ कार्य आदत बना लेने से ही हो पाते हैं जैसे कि पढ़ाई और कसरत। छात्रों को अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है लेकिन वे पढ़ाई को आदत बनाना नहीं सीख पाते इसलिए सारी गड़बड़ होती है। शारीरिक व्यायाम की बात भी कुछ ऐसी ही है। अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक 'इरविंग वॉलिस' की किताब ''द बुक ऑफ़ लिस्ट्स''<ref>
|}
[http://www.amazon.com/Peoples-Almanac-Presents-Book-Lists/dp/0688031838/ref=pd_sim_b_3 'द बुक ऑफ़ लिस्ट्स' लेखक- इरविंग वॉलिस आदि]</ref> में दुनियाँ भर की अनोखी सूचियाँ हैं और एक सूची उबाऊ कार्यों की भी है। सबसे उबाऊ कार्य वे माने गए हैं जो घरेलू कार्य हैं जैसे झाड़ू-पौछा, कपड़े-बर्तन धोना आदि (महिलाओं से क्षमा याचना क्योंकि अक्सर ये कार्य महिलाओं के हिस्से में ही आते हैं)। दुनियाँ का सबसे उबाऊ काम फिर भी वे नहीं हैं जो अभी मैंने बताए बल्कि सूची में सबसे ऊपर 'कसरत' है।


जिस तरह पान मसालों के विज्ञापनों में आता है कि "क्योंकि स्वाद बड़ी चीज़ है" या "शौक़ बड़ी चीज़ है" इसी तरह याद रखिए कि 'आदत' बड़ी चीज़ है। सिर्फ़ 23 दिन सुबह जल्दी उठ लीजिए फिर ज़िन्दगी भर अपने आप जल्दी उठेंगे।
छात्रों को आने वाले इम्तिहानों के लिए ''बॅस्ट ऑफ़ लक !''
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और
आदित्य चौधरी
----
<references/>


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>


==बाहरी कड़ियाँ==
<noinclude>
{{भारतकोश सम्पादकीय}}
</noinclude>


==संबंधित लेख==


[[Category:नया पन्ना मार्च-2012]]


[[Category:सम्पादकीय]]
[[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:54, 15 July 2013

50px|right|link=| 20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश
20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी आदित्य चौधरी

कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी


300px|right|border

        एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था। "सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो! अगर इस दुनिया में सरवाइव करना है तो जान बचाने की आदत डाल लेनी चाहिए, तो जान बचाने के लिए... "

"ओ.के. डॅडी! हम समझ गए! इतना डिटेल में क्यों जा रहे हैं? सीधे-सीधे काम की बात बताइए, वो कौन सी आदत है?" बच्चे ने बात बीच में ही काटी।

"अबे ओ 'थ्री ईडियट्‌स' के 'रॅन्चो'!" कौआ 'प्रिंसीपल वायरस' की तरह ही दहाड़ा "चुपचाप बात समझने की कोशिश करो..." कौए ने बच्चों को ग़ुस्से से घूरा और फिर दूर से उनकी ओर आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया और आगे बोला-

"वो जो तुम दो पैरों पर चलता हुआ कौआ देख रहे हो। वो हमसे ज़्यादा चालाक कौआ है। कौए की इस नस्ल को 'आदमी' कहते हैं। अब जैसे ही ये पत्थर उठाने के लिए नीचे झुके तो तुमको फ़ौरन उड़ जाना चाहिए वरना गए जान से... समझ गये!"

"लेकिन डॅडी! अगर वो आदमी पहले ही से हाथ में पत्थर छुपाकर ला रहा हो और हमें पत्थर मार दे तो?" थ्री ईडियट्‌स में से एक बोला और यह कहकर उड़ गया। उसके पीछे-पीछे कौआ और उसके दोनों बच्चे भी उड़ गये। साथ-साथ उड़ते हुए कौए ने अपने बच्चों से कहा-

"तुमको किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं है... कमबख़्तों! तुम इस आदत को अण्डे से ही लेकर आए हो।"
300px|right
        ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म होता है लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि कोई आदत कितने वक़्त में पड़ जाती है? तो जवाब है '23 दिन'। ये इस क्षेत्र के विद्वानों का अध्ययन है कि 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है।

        प्रशिक्षण की बात करें तो, बास्केटबॉल के खिलाड़ियों को, बॉल को बास्केट करने में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षकों का ध्यान इस बात पर होता है कि खिलाड़ियों को बॉल को बास्केट करने का 'अभ्यास' नहीं बल्कि बास्केट करने की 'आदत' पड़ जानी चाहिए या 'व्यसन' जैसा हो जाना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान खिलाड़ियों से जब कहा जाता है कि बहुत ध्यान से बास्केट करें तो उनका प्रदर्शन ख़राब रहता है और जब वे लगातार अभ्यास कर रहे होते हैं, तब छुप कर उनका प्रदर्शन देखा जाता है तो वह बेहतर होता है।

       उदाहरण के लिए- हमने देखा है कि जब हम बिना ध्यान दिए दाढ़ी बनाते हैं तो रेज़र से कटने की संभावना कम होती है लेकिन बहुत ध्यान से अगर दाढ़ी बनाएँ तो लगातार ख़तरा बना रहता है और ग़लती हो ही जाती है। (काश ये प्रयोग मैं कर पाता लेकिन संभव नहीं हो सका क्यों कि मैं शुरू से ही दाढ़ी रखता हूँ)

       दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है।
       यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है।[1]

       गोलमॅन ने लिखा है कि एक बच्ची पानी में गिर गई और डूबने लगी; तभी एक आदमी भी कूद गया और उसे बचा लाया। उस आदमी ने बताया कि वो पता नहीं कैसे अचानक ही कूद गया जबकि उसे याद नहीं आया कि उसने बच्ची को पानी में गिरते देखा भी था या नहीं। यही ऍमिग्डाला का कमाल है जो संदेश आँखों को मस्तिष्क तक पहुँचाना था, वो इसने बीच में ही मस्तिष्क तक पहुँचने से पहले ही उड़ा लिया (धोनी के हॅलीकॉप्टर शॉट की तरह) और शरीर को हरकत दे दी।

       ज़िंदगी भर हम आदतों के आधीन रह कर जीवन जीते हैं। कुछ कार्य आदत बना लेने से ही हो पाते हैं, जैसे कि पढ़ाई और कसरत। छात्रों को अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है लेकिन वे पढ़ाई को आदत बनाना नहीं सीख पाते, इसलिए सारी गड़बड़ होती है। शारीरिक व्यायाम की बात भी कुछ ऐसी ही है। अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक 'इरविंग वॉलिस' की किताब द बुक ऑफ़ लिस्ट्स[2] में दुनिया भर की अनोखी सूचियाँ हैं और एक सूची उबाऊ कार्यों की भी है। सबसे उबाऊ कार्य वे माने गए हैं जो घरेलू कार्य हैं जैसे- झाड़ू-पौछा, कपड़े-बर्तन धोना आदि। (महिलाओं से क्षमा याचना क्योंकि अक्सर ये कार्य महिलाओं के हिस्से में ही आते हैं) दुनिया के सबसे उबाऊ काम फिर भी वे नहीं हैं जो अभी मैंने बताए बल्कि सूची में सबसे ऊपर 'कसरत' है।

        जिस तरह पान मसालों के विज्ञापनों में आता है कि "क्योंकि स्वाद बड़ी चीज़ है" या "शौक़ बड़ी चीज़ है" इसी तरह याद रखिए कि 'आदत' बड़ी चीज़ है। सिर्फ़ 23 दिन सुबह जल्दी उठ लीजिए फिर ज़िन्दगी भर अपने आप जल्दी उठेंगे।

छात्रों को आने वाले इम्तिहानों के लिए बॅस्ट ऑफ़ लक !

इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और...

-आदित्य चौधरी
संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक


टीका टिप्पणी और संदर्भ